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अनेकान्त
[किरण ११
है । ऐतिहासिक खोजोंका ठीक परिचय प्राप्त करनेके लिये ८. देहलीके तोमर-चंशी तृतीय अनंगपालकी खोजके, 'अनेकान्त' में प्रकाशित उन लेखांको देखना चाहिए द्वारा अन्व तोमर-वंशी राजाओं और चौहान वंशी राजाओं जिनकी सूची निर्माणकार्य अन्तर्गत आगे दी गई है की वंशावली तथा समयका सम्बन्ध ठीक घटित हो जाता
और उन अन्य की प्रस्तावनाओं को भी देखना चाहिए जो है और इतिहासकी कितनी ही भूल-भ्रांतियां दूर हो वीरसेवामन्दिरसे प्रकाशित हुए हैं और जिनकी भी एक जाती हैं। सूची भीगे दी गई है। यहां उदाहरणके तौर पर अथवा
(ग) तात्त्विक अनुसन्धान द्वारा तत्वविषयकी सैकड़ों संकेतरूपमें कुछ थोड़ी-सी खोज-सम्बन्धी बातों को ही नाचे
बातों पर नया प्रकाश डाला गया है। इसमें दर्शन, ज्ञान नोट किया जाता है :
और चरित्र तीनों विषयकी बातोंका समावेश है। इस १. स्वामी समन्तभद्रके एक और परिचय पद्यकी
अनुसन्धान कार्यका पूरा परिचय प्राप्त करनेके लिये उन देहली-पंचायती मन्दिरके एक पुराने जीर्ण-शीर्ण गुटके
तात्त्विक लेग्वोंको देखना होगा जो आगे निर्माणकार्यक परमे खोज, जिसमें ममन्तभद्रके दस विशेषणोका उल्लेग्व अन्तर्गत दी हुई लेख-सूची में समाविष्ट हैं और 'अनेकान्त' है। उनमें से प्राचार्यादि चार विशेषणांके अतिरिक्त दैवज्ञ,
में प्रकाशित हो चुके हैं; जैसे सेवाधर्मदिग्दर्शन, सकामभिषक, मांत्रिक, तांत्रिक, प्राज्ञामिद्ध अ सारस्वत धर्ममाधन. स्व-पर-वैरी कौन ? वीतरागकी पूजा क्यों? ये छह विशेषण नये ही प्रकाशमें पाए हैं।
पुण्य-पाप-व्यवस्था, भक्तियोगरहस्य, अनेकान्तरमलहरी, २. 'रत्नकरण्डश्रावकाचार' देवागमयादिग्रन्थाके कर्ता श्रीवीरका सर्वोदय तीर्थ और वीरशासनकं कुछ मूलसूत्र स्वामी समन्तभद्रकी कृति है, ऐसा अनुसन्धान-प्रधान इत्यादिक । साथ ही स्वयम्भूस्तोत्र, युक्त्यनुशासन, प्राप्तपुष्ट प्रमाणों के आधार पर सुदृढ़ निर्णय करके विवादको परीक्षा और समीचीनधर्म-शास्त्रादि तात्त्विक ग्रन्थोंके अनुशान्त किया गया।
वादों और उन सानुवाद ग्रन्थोंकी अधिकांश प्रस्तावनाओं३. प्रचलित गोम्मटसार-कर्मकाण्ड का प्रकृतिसमुत्कीर्तन के
को भी देखना होगा जिनका निर्माण वीरसेवामन्दिरमें अधिकार त्रुटिपूर्ण है। उसमें प्राकृतके कुछ गद्यसूत्र छूटे
हुआ हैं। ऐसा होने पर ही मन्दिरके तात्विक अनुसंधानोंहुए हैं जो कि मूडबढीकी ताडपत्रीय प्रतिमें पाये जाते हैं,
का यथेष्ट एवं ठीक पता चल सकेगा । यहाँ विवेचनको न कि 'कर्मप्रकृति' वाली कुछ गाथाएँ छूटी हुई है। गद्य
साथमें लिये बिना चलते रूपमे कुछ लिख देना ठीक सूत्रोंकी खोज-द्वारा टिपूर्ति होकर तद्विषयक विवाद की
नहीं होगा। शान्ति हुई।
निर्माण कार्य ४. गहरे अनुसन्धान-द्वारा यह प्रमाणित किया गया ७. निर्माणकार्य में, अनुवादकार्यको छोड़कर जिसे कि 'मन्मतिसूत्र' के कर्ता सिद्धसेन दिगम्बर थे तथा अलगसे ग्रहण किया गया है, ग्रन्थों, लेखों तथा कविताओंसम्मतिसूत्र, न्यायावतार और द्वात्रिंशिकाओके कर्ता एक का रचनाकार्य, सामग्रीका संकलन और ग्रन्थोंकी प्रस्ताही सिद्धसेन नहीं, तीन या तीनसे अधिक हैं। साथ ही वनाओं, परिशिष्टों, विषयसूचियों तथा प्रकाशकीय वक्तव्यों उपलब्ध २१ दुनिशिकाओंके कर्ता भी एक ही मिद्धमेन प्रादिकी सृष्टिका कार्य शामिल है। इस दिशाम वीरसेवानहीं।
मन्दिरमं जो कार्य हुआ है उसकी रूपरेखा इस प्रकार है:५. कल्याणमन्दिरके कर्ता सिद्धसेन दिवाकर नहीं१. समीचीनधर्मशास्त्र ( रस्नकरण्ड ) का प्रामाणिक और न वह श्वेताम्बरकृति है।
अनुवाद प्रस्तुत करनेके लिए उसके सम्पूर्ण शब्दोंकी एक ६. उपलब्ध 'तिलोयपण्णती' यतिवषमकी तिलो- ऐसी सूची तैय्यार की गई जिससे यह मालूम हो सके कि यपण्णत्तीसे भिन्न नहीं और न वह धवलादिके बादकी उन शब्दोंका समन्तभद्रके दूसरे ग्रन्थोंमें कहां पर किस कृति है।
अर्थको लेकर प्रयोग हुआ है। ७. 'मोक्षमार्गस्य नेतार' इत्यादि पद्य तत्त्वार्थसूत्रका २. स्वामी समन्तभद्रके उपलब्ध सभी ग्रन्थोंका मंगलाचरण है।
प्रकारादिक्रमसे एक शब्दसंग्रह 'समन्तभद्र-भारती-कोश' के