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वीरसेवामन्दिरके चौदह रत्न
(१) पुरातन-जैनवाक्य-मृची-प्राकृत के प्राचीन ६. मूल-प्रन्योंकी पद्यानुक्रमणी, जिसके साथ - कादिग्रन्योमें
उद्धत पर पद्योकी भी अनुक्रमणी लगी हुई है । सब मिलाकर २५३५३ पद्य-वाक्योंकी सूी। संयोजक और सम्पादक मुख्तार श्रीजुगलकिशोरजो गवेषणापूर्ण महत्वको १७० पृष्ठको प्रस्तावनासे अलंकृत, हा• कालीदास नाग एम. ए., डा.जिट के प्राक्कथन (Fortword) और डा. ए. एन. उपाध्याय एम. ए., डी. लिट की भूमिका (Introduction) से विभूषित है, शोध-बोजके विद्वानोंके जिये अतीय उपयोगी, बा साहज,
मजिद। () श्राप्न-परीक्षा-श्रीविद्यानन्दाचार्यको स्वोपज्ञपटरीक अपूर्वकृति, भाप्तोंकी परीक्षा द्वारा ईश्वर-विषयके सुन्दर
सरस और मजीव विवेचनको लिए हुए, न्यायाचार्य पं. दरबारीलालजी के हिन्दी अनुवाद तथा प्रस्तावनादिसे
युन, सजिल्द । (३) न्यायदीपिका-न्याय-वि.की मुन्दर पोथी, न्यावाचार्य पं० दरबारीलालजीके संस्कृत रिप्पण, हिन्दी अनुवाद,
विस्तृत प्रस्तावमा और अनेक उपयोगी परिशिष्टोंमे अलंकृत. सजिषद ।। (४) स्वयम्भम्नांत्र-समन्तभद्रभारतीका अपूर्व ग्रन्थ, मुख्तार श्रीजुगलकिशोरजीके विशिष्ट हिन्दी अनुवाद छन्दपरि
चय, समन्तभद-परिचय और भक्तियोग, ज्ञानयोग तथा कर्मयोगका विश्लेषण करती हुई महत्वको गवेषणापूर्ण
प्रस्तावनामे मुशोभित । (५) स्तुतिविपा-स्वामी समन्तभद्रको मनोखी कृति, पापों के जीतने की कला, मटीक, सानुवाद और श्रीजुगलकिशो
मुख्तारकी महत्वकी प्रस्तावनाये अलंकृत सुन्दर जिलद-साहित । (६) अध्यात्मकमलमानए-पंचाध्यायोकार कवि राजमस्तकी सुन्दर माध्यास्मिक रचना, हिन्दीअनुवाद-सहित भोर मुख्तार श्रीजुगलकिशोरकी सोमपूर्ण विस्तृत प्रस्तावमा भूपित। ...
... ) (७) युक्त्यनुशासन-तत्वज्ञानमे परिपूर्ण समन्तभद्रकी असाधारण कृति, जिसका अभी तक हिन्दी अनुवाद नहीं
हुआ था। पुख्तार श्रीक विशिष्ट हिन्दी अनुवाद और प्रस्तावनाहिसे अलंकृत, मणिर' ... 1) (E) श्रीपुरपाश्वनाथस्तोत्र-प्राचार्य विद्यानन्दरचित, महतको स्तुति, हिन्दी अनुवादादि सहित। ... (1) शामनचनुम्बिशिका-(तीर्थ परिचय)-मुनि मदनकोतिको १३ वी शताब्दीको सुन्दर रचना, हिन्दी
अनुवादित सहित। (१०) ससाध-स्मरण-मंगलपाठ-श्रीवीर बद्धमान और उसके बाद के २१ महान् प्राचार्योंके १५७ पुण्य स्मरणोंका
__ महत्वपूर्ण संग्रह, मुख्तारधीके हिन्दी अनुवादादि-सहित। ... (११) विवाह-ममुद्देश्य-मुख्तारखीका लिखा हमा विवारहका मप्रमाण मार्मिक और साविक विवेचन ... ) (१२) अनेकान्त-रस-लहरी-अनेकान्त मे गृढ गम्भी विषयको अतीव सरलतासे सममने-समझानेकी जी,
मुख्तार श्रीजुगलकिशोर-लिखित । (१३) अनिन्यभावना -श्रापद्मनन्दो प्राचार्य की महत्वकी रचना, मुख्तारीके हिन्दी पचानुवाद और भावार्थ
सहित। (१४) तत्त्वार्थमूत्र-(प्रभाचन्द्रीय)-मुख्तारीके हिन्दी अनुवाद तथा ग्यास्याम युक्त नोट-ये सब तन्य एक साथ लेनेवालों को ३७॥) की जगह १०) में मिलेंगे।
व्यवस्थापक 'वीरसेवामन्दिर-ग्रन्थमाला' अहिसा मन्दिर विल्डिंग १, दरियागंज, देहली