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________________ ३३२ ] अनेकान्त बड़ी देन दे सकते हैं वह यही आदर्श है और यह दन हम तब ही दे पायेंगे जब न केवल हमारी भूमि और हमारे औद्योगिक यन्त्र विशाल धन धान्यकी सरिताक ही स्रोत बन गये होंगे वरन् उनमें कार्य करने वाले श्रमिक और कृषक भी इसी आदर्शसे प्रेरित होंगे। उस स्वर्णिम युगकी स्थापना के लिये हमें अनथक परिश्रम करना है, और अनेक प्रकारके आयोजन करने हैं । किन्तु इन सब प्रयासों और आयोजनों की शर्त यह है कि शिल्पिक शिक्षा और आध्यात्मिक शिक्षाकी खाई पट जाये । संस्कृत वह सेतु हैं जो इस ग्वाईको वीरसेवा - मन्दिरको प्राप्त सहायता हाल में वीरसेवा मन्दिरको उस बड़ी महायताके अलावा जो बाबू छोटेलालजी और बाबू नन्दलालजीने अपनी स्वर्गीय माता श्रीमती मानकंवरजीकी श्रोरमं देहली में वीरसेवा मन्दिरकी बिल्डिग के लिये ज़मीन खरीदने के वास्ते भिजवाई है, दूसरी जो खास सहायताएँ ( अनेकान्त सहायता के अतिरिक्त ) प्राप्त हुई है व इस प्रकार हैं : १००१) सेठ भगवानदास जी जैन बीड़ी वाले सागर (वाणश्री गणेशप्रसाद जीकी जयन्तीके अवसर पर ) । १०००) सिंघई कुन्दनलालजी जैन सागर ( वर्णी श्री गणेशप्रसादजीकी ७६ वीं वर्षगांठ के अवसर पर ) । १००१) सेठ छडामीलालजी जैन फीरोजाबाद ( चि० पुत्र विमलकुमारके विवाहकी खुशी में ) । ५१) ला० सुमेरचन्दजी जैन, दरियागंज देहली (गृह प्रवेशकी खुशी में ) अधिष्ठाता 'वीर सेवा मन्दिर' संरक्षकों और सहायकों से प्राप्त सहायता water संरक्षकों और सहायकोंसे प्राप्त सहायताका जो विवरण गत किरण नं० ४-५ में प्रकाशित किया गया था और जिसका योग (२२४) था, उसके बाद जो और सहायता प्राप्त हुई हैं उसकी तनसील इस प्रकार है१०००) बाबू नन्दलालजी सरावगी कलकत्ता २५१) बाबू छोटेलालजी जैन कलकत्ता २५१) सेठ मांगीलाल पांड्या कलकत्ता [ किरण पटाता है और इसी दृष्टि आधुनिक जगत में उसक' शिक्षा दीक्षाका आपको प्रबन्ध करना है । यह हर्षकी बात है कि इस दिशामें पहला ग कृष्णकी लीलाभूमि सौराष्ट्र में उठाया गया था और इसका अगला कदम भगवान शिवकी इस पुनीत आर ऐतहासिक नगरी में उठाया जायेगा। मुझे विश्वास है। कि इन दो महाविभूतियोंकी ऐतिहासिक छाया में आरम्भ होने वाला यह कार्य फलेगा और फूलगा । नवभारत टाइम्ससे १०) बा ऋषभचन्द्रजी जैन ( B. R. C. ) कलकत्ता १०१) ला० रतनलालजी जैन मादीपुरिया देहली १०१) बा० घनश्यामदास बनारसीदासजी कलकत्ता १०१) बा० बद्रीदासजी सरावगी कलकत्ता १०६) वा० वंशीवर जुगलकिशोरजी कलकत्ता १०९) बा० सुरेन्द्रनाथ नरेन्द्रनाथ जी कलकत्ता १०१) बा० फलचन्द्र रतनलालजी कलकत्ता १०१) बा० धनंजयकुमारजी जैन कलकत्ता १०१) बा० राजेन्द्रकुमारजी जैन न्यू देहली १०१) ला० मक्खनलालजी मोतीलाल जैन 'ठेकेदार देहली १०१) ना० उदयराम जिनेश्वरदामजी जेन सहारनपुर योग २६६२) पूर्णांग ७८८६) अधिष्ठाता 'वीर सेवा - मन्दिर' सेवाएँ समर्पित कीं जबसे वीरसेवा मन्दिरका ग्राफिस सरसावासे देवली आया है तभीसे वीरसेवा मन्दिरने अपना प्रचार विभाग व खोज-विभागको दृढ़ बनाने का निश्चय किया है । इस दृष्टि हमने जैन समाजके प्रसिद्ध २ विद्वानोंसे सम्पर्क स्थापित किया है। हमें प्रसन्नता है कि हमारे निवेदन करने पर प्रचार विभागकी दृढताके हेतु श्री पं० बाबूलालजी जैन जमादारने अपनी सेवाएँ 'वीरमेवामंदिर' को समर्पित कर दीं। और आपने प्रचार विभागका कार्य प्रारम्भ कर दिया । राजकृष्णा जैम व्यवस्थापक- वीरसेवा-मन्दिर
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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