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उस ओर मोहरा
हत हुए देखती है।
ब्रह्माजनदासकाएक अज्ञातरूपक काव्य
!३१७ मोहराया राज्य होजानेकी बावको सुनकर निवृत्ति प्रवेश नहीं होने देनेको भाज्ञा करता है। बिना विश्राम लिये हो रवाना हो जाती है । भागे आते उस ओर मोहराय अपने राज्य की मार संम्हाला हुए विप्रपुरी में यज्ञ होते हुए देखती है। जिसमें बलशान कर रहा है। विवेककी याद आतेही उसको पतिकोम पटुकों द्वारा बींधे हुए घेचारे बकरोंका याजनक रश्य उत्पक होता है। विवेकके कार्यकलापोंको बानेके लिये देख, "मोहकी पुत्री 'मारिएका पदापर यहाँ हो जानेसे दंभ, कहागम, ( कंजूसी) पाखादि तोंको भेजता मेरा यहां रहमा नहीं होसकता" इस प्रकार विचारकर है। विवेककी सुधि प्राप्त कर वे लोग पुण्यरंगपारणको निवृत्ति बहाँसे प्रयास करदेती है। नये-नये देशों में रहते जाते है, किन्तु ज्ञानतलारसके निप्रइसे प्रवेश नहीं होनेसे हुए एयोंके अन्दर मौवाजीवकी पहिचानके अभाव में अनेक दंभ अतिरिक्त सभी वापिस लौट आते हैं। भफिर वेष प्रकारसे होता हुमा जीव-जंहार देख अपने रहनेके योग्य बदलकर पका वृत्तान्त प्राप्तकर मोहरायको जानता है। स्थानको कहीं न देख वह और भागे गमन करती है। जिसमें विवेककी नगरी और उसके परिवारका विस्तारसे फिरते-फिरते प्रबचनपुरीको प्राप्त करती है। सुन्दर नगर वर्णन करनेके बाद मोहरायको जीतने के लिए विवेककी और बारमाराम बनको देख विवेक कुमार की प्रेरणा सेशम- उसके मन्त्रीके साथ हुई बातचीत, मन्त्रीके बुखानेपर गुरु दम नामक वृषकी छाया में बैठ जाती है। वहार विमन- जोशीके द्वारा प्रवचनपुरीके राय अरिहन्तके सांपत सदुपबोध कुलपतिको वन्दन करके निवृत्ति विवेककृमारके सुख देशकी स्त्री श्रद्धाकी पुत्री सयमीका विवाह कर देनसे पादिके सम्बन्ध प्रश्न करती है। विमनोधके लक्षणों- शत्रसके विनाशका विवेकको दर्शाया हुभा उपाय, को देख वह अत्यानंदित हो जाता है और विवेक कुमारको दो स्त्रियोंके पतिको होने वाले दुखका विवेकका मन्त्रीके अपनी सुमति नामकी अपनी पुत्रीके साथ विवाह करके एवं साथ किया हुया विचार, सुमतिके द्वारा कुलीन और प्रकुअरिहंत । के अतिशयोंका वर्णन करके, उनकी तुष्टीको बीन स्त्रियोंका भेद दर्शाया जाकर पतिको की हुई प्रेरणा, प्राप्त करनेसे कार्य-सिदिका सूचन किया गया है। राजाको आज्ञासे मन्त्रीने जिनराजके पास संयमश्री की निवृत्ति कुलपतिके वचन दयमें धारण कर पुत्रवधु
मगनी करनेके लिए भेजे हुये शुभाध्यवसाय विशिष्टसुमतिको साथ ले प्रबचन-नगरी में जाकर सदगुरुके माधार ये समस्त समाचार सुनाकर दंभ मोहरायसे समाधान पर रहती है। वहाँ विवेककुमारको अपना वीवक पराभव
MUT THE THE करता है। मोहरायको चिंतातुर देख उसका बड़ा पुत्र थोर पुत्रके अश्वासनको दर्शाकर अरिहन्त प्रभुकी भारा- कामकुमार अपना शौर्य दिखाकर युबके लिये माज्ञा धना करने के लिए प्रोत्साहित करती है। विवेक कुमार मगता मोहराय इसको शिक्षा देकर भाज्ञा देता है। माताकी प्रशंसा करके इसमाज्ञाको मान देकर मरिहन्त कामकुमार अपने परिवारके साथ प्रयाण करता है। वह प्रभुकी सेवा में लग जाता है। अवसर भानेपर मोहरायके त्रिलोकीमें सर विजय प्राप्त करता है। मोमें प्रमदोहका वर्णन करती है। नगरपति मोहरावसे भयभीत को सावित्रीको स्वीकार कराके, बैकुण्ठपुरीके नायक विष्णुको बने हुए जनोंको मुकिदुग में बसाने के लिये नया मार्ग- गोपियों द्वारा वश कराकर, कैलाशपति शंकरको पातीके रथक तरीके उनके साथ रहने के लिए विवेकको भाशा करती साथ जोपकर, गौतम भादि अषियों को एक-एक स्त्री है। विवेककुमार स्वामीके वचनोंको कार्यमें खाता है, अंगीकार कराकर मोहराबकी माज्ञाको भारोपित करता भम्यजन मुकिमार्गका अनुसरण करते हैं। विवेकके है। कामकुमार यहाँसे पुरयरंगपाटणको रेश्य बनाकर वीरचरित्रसे प्रसस होकर परिहन्तराय उसको उत्तम जन्म- प्रयाण करतापाटनमें सदर पहुँचतेही विवेक उससमय वाले देशोंमें पुण्यरंगपाटणका रामा बना देते हैं। तस्व. युदनकर, संयमश्री के साथ विवाह करनेके बाद भवचिंतन रूपी पहनस्ति पर सवार होकर विवेकराय बग- सरोचित युद्ध करने के लिए अपने इडा-मित्र विचारको अबग सुखासनों पर बैठी हुई निवृति और सुमतिको बनाता है। इसी अवसरपर अरिहन्तरायकी भोर भेजे हुए साथ कर पारम्बर पूर्वक वहां प्रवेश गवारे। विवेककी विशिष्ट (राभाध्यवसाय)माकर विवेकको वहाँ पहुँचने के माझा प्रवृत्त होतेही पाखंडीके प्रायडित होजाते हैं। बिगता है विवेकराम अपने मित्र विचारको प्रजाकी हाम-वबारको मुसार विवेकराप किसी अपरिचिवको सम्हासकाने तथा अपने पीछे बचाने की सिलापन देखन