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________________ विषय-सूची ३३२ ૩૩૨ mmm लेखकों और कवियोंसे श्री वर्द्धमान-स्तवनम्" ३०५ वीर मेयामंदिर को प्राप्त महायता समंतभद्र वचनामृत-[युग वीर मंग्क्षकों और महायकामे प्राप्त सहाता नाजिनदासका एकजात रूपक काव्य-अगरचंद नाहटा ३१३ महाकवि रहधू-पं. परमानंद जैन शाम्बी ३११ ब्रह्म जिनदास -[पं० परमानंद जैन शास्त्री ३३३ संस्कृतका अध्ययन जातीय चेतनाके लिये ३२६ माहित्य परिचय और ममालांचन-परमानंद जैन ३३४ आवश्यक-[ राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रमादजी ३२६ श्रादर्श विवाह ३३६ भ्रम निवारण जैन समाजके मुलभूत सिद्धान्तोंका छ इतिहासका अनेकान्त वर्ष ११ किरण ७-८ में विरोध और प्रचार करने वाला तथा पुरातत्त्व शिलालेखा आदिका मामंजम्य' नामका डा. हीरालालजी नागपुरका जो लेख परिचय कराने वाला प्रमुग्ध पत्र 'अनेकाम्त' जैन समाजक बिना किसी पम्पादकीय टिप्पणीक छपा है उसमे अनेकांत लेखकों व कहानीकारको और कवियांसे अपनी रचनाएँ पाठकोंको ऐमा भ्रम हो गया है कि क्या अनेकान्तके भंजनेके लिये श्राह्वानन करता है। . संचालक भी उस लेग्बकके मन्तव्यास सहमत हैं । इम अतः लंग्वक कहीनीकार और कवि बन्धु माहित्यिक विषयमे यह स्पष्ट कर देना श्रावश्यक है कि अनेका संद्धान्तिक, रचनाएँ अनेकान्तमें भेजकर जैनधर्मके प्रचार मंचालक उस लेग्वकके मन्तव्यास सहमत नहीं है जो व प्रसारमं अपना पूर्ण सहयोग देनेकी कृपा करें। विद्वान् डा. साहयक लेखका संयत भाषामें प्रामाणिक व्यवस्थापक-अनेकान्त उत्तर दंगे वह अनेकान्तमें प्रकाशित कर दिया जायगा। १ दरियागंज देहली। व्यवस्थापक-'अनेकान्त' अनेकान्तकी सहायताके सात मार्ग (.)अमेकान्तके 'संरच-तथा 'सहायक'बममा और बनाना। (१) स्वयं भनेकान्तके ग्राहक बनना तथा दूसरोंको बमाना । () विवाह-शादी धादि दानके अवसरों पर अनेकान्तको अच्छी सहायता भेजमा तथा भिमवाना। (.)अपनी पोरसे दूसरोंको अनेकान्त भेट-स्वरूप अथवा फ्री मिजवाना; जैसे विद्या-संस्थानों, बायरियों, सभा-सोसाइटियों और जैन-मजैन विद्वानोंको। (१) बिचाथियों मादिको बनेकान्त अर्थ मूल्यमें देनेके खिते २२), २.) भादिकी सहायता भेजना।२१)की ___ सहायता को अनेकान्त अर्धमूल्यमें भेजा जा सकेगा। (1)भनेकाम्तके प्राहकोंको मच्छे ग्रन्थ पहारमें देना व्या दिनाना। (.)ोकहितकी साधनामें सहायक मछे सुन्दर लेख लिखकर भेजना तथा चित्रादि सामग्रीको प्रकाशनार्थ जुरामा। सहायतादि भेजने तथा पत्रव्यवहारका पता:मोर-स प्राहक बनानेवाले सहायकोंको मैनेजर-'अनेकान्त' 'भनेकान्त' एक वर्ष तक भेंट वीरसेवामन्दिर, अहिंसा मन्दिर बिल्डिंग स्वरूप भेजा जायगा। १, दरियागंज, देहली
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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