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जोधपुर इतिहासका एक प्रावरित पृष्ठ (जोधपुरको मुसलमान अधिकारीसे वापिस लेनेवाला-गवहीया तेजा)
(श्री अगरचन्द नाहटा) जिस प्रकार जैनाचार्योंका इतिवृत्त पट्टावलियों, प्रति- घरपर रखी हुई बतला देते है। कोई जातीय इतिहासका मालेखों, ग्रंप प्रशस्तियों, लेखन पुष्पिकाओं व प्रबन्धसंग्रहों में प्रेमी खोज करे तो कुछ महत्त्वपूर्ण जानकारी हाथ लगने
और रास काव्य, गीतादिमें पाया जाता है उसी प्रकार जैन व प्रकाशमें आनेकी सभावना है। खेद है वैसा जातीय इतिधावकोंके वंशको नामावली व इतिहास वंशावलियों आदिमें हासका प्रेमी व्यक्ति अभी नजर नहीं आता । पाया जाता है। पर अभी उनकी ओर विद्वानोंका जैसा समाजमें ऐसी वंशावलियां हंगी पर उनके सम्बन्धमें चाहिए ध्यान नहो गया, फलतः (जातीय) बहुत सी महत्वपूर्ण अभीतक कहीं प्रकाश डलाया गया नजर नही आया अतः बातोंसे हम अपरिचित से है।
दि० विद्वानोंसे अनुरोध है कि वे उनकी शोध पर इतिवृत्त
प्रकाशमें लावें। हमारे पूर्वजोंने इतिवृत्तको सुरक्षित रखनेका काम कुलगुरु, महात्मा व भाटोंके सुपुर्द किया था । वशावली
भाटोंके पासको प्राचीन वंशावलियां देखनेका तो लिखते रहने के लिये हजारों लाखों रुपये ओसवाल समाज
मुझे अवसर नही मिला । उन्होंने तो उसकी गोप्यताके
लिये साकेतिक लिपिका आविष्कार भी वर्षोसे कर लिया है। के इन लोगोंके दान व सत्कारमें खर्च होते थे पर खेद है जिस साहित्य रक्षाके लिए उन्होंने लाखो रुपये खर्च कर
अतः साधारण व्यक्ति बही पास पड़ी रहे तो भी उसे पढ ऐसी सुन्दर व्यवस्था की थी हमने उसकी सर्वथा सुधि
नहीं सकते । पर जैन यतियो व महात्माओ व यथेरणी द्वारा विसार दो है। फलतः हमारे पूर्वजोंके कार्य-कलापों एवं
लिखित कतिपय वंशावलिया हमारे संग्रहमें एवं अन्यत्र भी
प्राप्त है। इनमे सबसे प्राचीन ज्ञात वशावली बड़ौदाके कीर्ति-गाथाओंसे हम सर्वथा अपरिचित से है। इसीलिये
म्यूजियममे सुरक्षित है जिसका कुछ हिस्सा नष्ट हो गया है। उनके कार्यों द्वार, हमें जो प्रेरणा मिलनी चाहिए थी वह
यह कपड़े पर लिखी हुई है और १६ वी शतीके अन्त की है। नहीं मिली।
इसका थोड़ा सा परिचय मै ओसवालके एक अंक में प्रकाशित . इन वंशावलियोंसे कभी कभी ऐसी महत्त्वपूर्ण राजकीय
कर चुका है। इससे परवर्ती वंशावलिया हमारे संग्रहमें घटनाओंका परिचय मिलता है जिनका उल्लेख राजकीय है जिनमें कपड़े पर लिखित दो वशावलियां ही सबसे प्राचीन ख्यातों आदिमें भी नही पाया जाता । अत. इनका महत्व प्रतीत होती है। प्रथममें लेखन सं. १६१२ लिखा नआ है। ओसवालादि वशके इतिवृत्तके साथ भारतीय इतिहासकी
दूसरी इसके कुछ बाद की है पर है वह भी १७ वी शतीकी । दृष्टिसे भी है। वंशावला लेखनका कार्य अब बन्द सा हो
१८-१९-२० शतीकी लिखित तो कई वंशावलियां रहा है। कुलगुरु महात्मा इसको छोड़ रहे है। भाट लोग कभी
| मेरे सग्रहालयमें है। ये सभी उपकेश (कवला) गच्छीय कभी आ जाते हैं और पुत्र पुत्री व विवाहादिको नाष यतियोकी लिखित हैं। अभी उनको सांगोपांग देखने व लिख कर ले जाते है पर उनका पूर्व जैसा अब आदर नहीं जा
आदर नहा उनपर प्रकाश डालनेका सुअवसर तो नही आया पर रहा, अतः वे भी थोड़े दिनोंमें इस पेशेको छोड़ देंगे, ऐसा ,
सरसरी तौरसे देखनेपर उनसे कई महत्त्वपूर्ण बातोंवर्तमान स्थितिसे सहज अनुमान लगाया जा सकता है।
का पता चला, जिनमेंसे एकको प्रस्तुत लेखमें प्रकाशित पुरानी वंशावलियां असावधानी व कहीं भाटोंके आपसी किया जा रहा है। बटवारे आदिके कारण नष्टप्रायः हो चुकी है। उनके कुछ वर्ष हुए हमारे संग्रहके एक गुटकेमें जोधपुरके आधारसे विलिखित नई बहिया ही भाट व कुलगुरुओं- तेजा गदहीया व उनके वंशजोको प्राप्त दाना माफीके के पास देखी जाती है । पूछ ताछ करने पर पुरानी बहियां परवानोंकी नकल पाई गई थी, जिसे मै “ओसवाल" वर्ष भरती (पूरी लिखी जा चुकने) हो जानेसे व जीर्ण हो जानेसे १६ अं. ३ में प्रकाशित कर चुका हूं। मूल परवाना सं.