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________________ २२६ সনকাল वर्ष ११ सूत्रपाठके नामसे उल्लेखित किया जाता है। उसपर एवं विशेषार्थोके द्वारा विषयका रोचक ढंगसे सर्वार्थसिद्धिभाष्यवादको बना और भाष्यकी टीकायें भी लिखी गई है। के आधारपर स्पष्टीकरण किया गया है, जिससे जिज्ञासु श्वेतांबरसूत्रपाठमें अनेक पाठ-भेद देखे जाते है जबकि दिग- पाठक उक्त सूत्रग्रन्थके रसका भली भांति आस्वादन कर म्बर समाजमें एकही सूत्र पाठ प्रमाण माना जाता है, उसी सकते है। पर सर्वार्थसिद्धि आदि अनेक टीकायें लिखी गई है। इस ग्रन्थकी प्रस्तावनामें शास्त्रीजीने पं. फूलचन्द्र __ जी सिद्धान्तशास्त्रीकी तत्वार्थसूत्रके कर्ता गर्दपिच्छाचार्य प्रस्तुत ग्रन्थकी यह नवीन टीका प्रकाशित हुई है। है उमास्वाति नही, इस कल्पनाको मान देते हुए उसे पुष्ट पंडित कैलाशचन्दजी सिद्धान्तशास्त्रीने इसे विद्यार्थियों करनेका प्रयत्न किया है। पंडितजीका यह प्रयत्न अभि और स्वाध्यायप्रेमियोके लिए खासकर तैयार किया है। नन्दनीय है, पुस्तककी छपाई सफाई सुन्दर है। टीका समयोपयोगी और संक्षिप्त है और उसमें शंका समाधान परमानन्द जैन www सन्तश्री वर्णी गणेशप्रसादजीका तीसरा पत्र श्रीयुत महाशय पण्डित जुगलकिशोरजी योग्य इच्छाकार। आपके स्वास्थ्यका समाचार पढ़कर प्रसन्नता है हुई। मेरा तो यह विश्वास है जिनके निर्मल परिणाम होते है उनका संसार बन्धन छूट जाता है यह तो कोई बात नही आत्मा अनन्त शक्तिशाली है-अपनी भूलसे इतस्ततः भ्रमण कर रहा है यह सर्व मोहराजका विलास है जिस दिन उस पर विजय प्राप्त कर लिया आपही में परमात्मा है-लोककी कथा छोड़ो, जो आप द्वारा मार्मिक सिद्धान्न प्रतिपादन किया जाता है वे इतने पराजित मोहसे हो गए है जो उस तरफ देखते ही नहीं-यदि उस तरफ १ बार ही दृष्टि दे देवें तब १ दिनमें आपके साहित्यका उद्धार हो सकता है परन्तु बात तो कुछ विपरीत हो रही है-अब समयने पलटा खाया है आप अपने जीवनमें अपनी इच्छाकी पूर्ति देखकर निराकुल परलोककी यात्रा करेंगे-यदि बाबू छोटेलाल जी साहब सब तरफसे दृष्टि संकोच कर इस ओर ही लगादें तब अनायास यह कार्य हो जावे परन्तु कहे कौन-यह देश दरिद्र है अतः मै इस विषयको यहां व्यवहारमें नही लाता-जिन बड़े आदमियोंसे आशा है वे मुझे सुधारक कहकर टाल देते है अत मै अकिंचित्कर कोटिमें आगया हैं। आ० सुदि २ सं० २००९ आ० शु० चि० गणेश वर्णी दुःखद वियोग !! यह लिखते हुए दुःख होता है कि बीरशासन जयन्तीके दिन जिन पूज्य आचार्य श्री सूर्यसागरजीका 'आरोग्य कामना' दिवस सारे भारतमें मनाया गया था उनका डालमियां नगरमें श्रावण वदी अष्टमीकी रात्रि को १२ बजकर २० मिनट पर समाधिपूर्वक स्वर्गवास हो गया है। आचार्य सूर्यसागरजी जैन समाजके ही नहीं | किंतु भारतके अध्यात्म योगी थे। बड़े प्रभावशाली थे और अध्यात्म शास्त्रके प्रेमी थे। साथ ही वस्तुस्थितिके स्पष्ट वक्ता थे। आप अन्त तक सचेष्ट रहे और पंच नमस्कार मंत्र का उच्चारण करते हुए दिवंगत हुए। आपके इस दुःखद वियोगसे वीर-सेवा-मंदिर परिवार दुःखित चित्त हुआ हार्दिक भावना करता है कि आपको परलोकमें सुख-शान्ति की प्राप्ति हो।
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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