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मेरी भावना
अपने इतिहास और अनुवादोंके साथ मुख्तारश्री जुगलकिशोरजी 'युगवीर' की सुप्रमिद्ध मब सस्करणोंमे वीरसेवा-मन्दिरको शीघ्र ही परिचित रचना 'मेरी भावना' अबतक संकडो सस्करणो-द्वारा लाखो कगाएँ जिन्हे उन्होंने प्रकाशित किया-कराया हो अथवा जो की तादादमे छप चुकी है। वह इतनी लोकप्रिय हुई है कि उनके परिचय में आए हो। किसी भी सस्करणकी सूचना अंग्रेजी, उर्दू, गुजगती, मराठी, कनडी, बगला और सम्कृत भेजते ममय उसके माथ (१) सस्करणकी प्रति-सख्या, आदि अनेक भाषाओमें उसके अनुवाद होचुके है। अनेक (२) प्रकाशकका नाम-पता, (३) प्रकाशित कराने वालेका लिपियोमे वह छप चुकी है। मुख्तार साहबकी ओरमे नाम-पता. (6) प्रकाशनका मन-मवन और (५) मूल्य, (यदि उसके छपानेके लिये कोई खास प्रतिबन्ध न होनके कारण कुछ हो) इन सब बातोकी सूचना रहनी चाहिये और बह चाहे जिमके द्वारा छोटी पुस्तिका, ट्रैक्ट, चार्ट, कार्ड, सबसे अच्छी बात तो यह होगी कि उस-उस सस्करणकी कैलेण्डर आदि अनेक रूपोमे छपाई गई है। मन्दिर-मकानो एक-एक प्रति ही वीरसेवा मन्दिर सरमावाको भेज दी अथवा की दीवारो, खिडकियोके काँचो तथा पर्दो आदिपर भी भिजवा दी जाये। जिन पुस्तको, पत्रो अथवा ग्रन्थ-मग्रही अंकित की गई है, और अगणित सग्रह-ग्रन्थो तथा पत्रोमे मे 'मेरी भावना'को पूर्णरूपमे उद्धृत अथवा सग्रहीत किया उसे अपनाया गया है। फोनोग्राफके रिकामे भी वह गया है उनके तथा प्रकाशकोके नामादिक भी प्रकाशनभरी गई है। रेडियो-द्वारा भी अनेकबार उच्चरित हुई है। वर्ष, प्रति-मस्या और मूल्यके माथ आने चाहिये। इस लाखोकी संख्याम देशी-विदेशी जनता उसका नित्य पाट भावनाके प्रचार और उपयोग-विषयकी अन्य कोई खास करती है। अनेक स्कूलो, विद्यालयो, पाठशालाओं और सूचना यदि वे दे मके तो उसे भी देना चाहिये, जिससे यह सभा-सोसाइटियोमे वह प्रारम्भिक प्रार्थनादिके रूपमे मालम हो सके कि कहाँपर किस प्रकाग्मे वह उपयोग बोली जाती है। कुछ मिलो के मजदूर भी उमे काम प्रारम्भ लाई गई अथवा लाई जाती है। करनेसे पहले मिलकर बोलते हैं। इससे उक्त भावनाकी जो मज्जन 'मेरी भावना के पृथक् मम्करणो , मग्रहलोकप्रियता एव महनाको बनलानकी जरूरत नहीं रहती। ग्रन्थों और अनुवादोकी एकनाक प्रति वीग्मेवामन्दिरको
ऐसी लोकोपकारिणी भावनाका उत्तम कागजपर एक गीत निम्न पते पर भिजवाएँगे तथा उक्त परिचयादिक भेजविशिष्ट संस्करण निकालनेके लिये हालमे वीग्मेवा- नेमे अपना पूर्ण सहयोग प्रदान करेंगे उनके शुभ नाम प्रकाशको मन्दिर सरसावाने अपना विचार स्थिर किया है। हम आदि के नामोके माथ पुस्तकके इम विशिष्ट संस्करणमे दिये सस्करणमे 'मेरी भावना के निर्माणका और उसके प्रचार तथा जावंगे और उन्ह इस संस्करण की एक-एक प्रति भी भेट प्रसारका पूरा इतिहास रहेगा। साथ ही, वे सब अनुवाद की जायगी। भी रहेगे जो अनेक भाषाओम अबतक मुद्रित या प्रस्तुतहोचुके
व्यवस्थापक 'वीरसेवामन्दिर-ग्रंथमाला' है। अत 'मेरी भावना के प्रेमियो, अनुवादको, प्रकाशको और प्रचारकोमे सादर निवेदन है कि वे कृपया इस भावनाके उन
मरमावा, जि. सहारनपुर
संशोधन गत किरणके ८१वें पृष्ठ कालम द्वितीय की : ०वी पक्तिमे जो 'जितशत्र या जितारि छपा है उसमें 'या जितारि' के स्थान पर पाठक (जितारिपुत्र) ऐसा ब्रेकटके भीतर पाठ बनालेने की कृपा करं
-प्रकाशक