SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 152
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कविता कुंज पठन क्योंकर हो? प्रथम तो 'पठनं कठिन' प्रभो । सुलभ पाठक-पुस्तक जो न हो। हृदय चिन्तित, देह सरोग हो, पठन क्योकर हो तुम ही कहो ? -- युगवीर वह क्यों न निराश हो ? प्रबल धैर्य नहीं जिस पास हो, हृदय में न विवेक-निवास हो । न श्रम हो नहि शक्ति-विकाश हो, जगतमें वह क्यों न निराश हो ? -युगवीर सुखका उपाय ? जगके पदार्थ मारे, वर्त इच्छानुकूल जो तेरी-- तो तुझको सुख होवे, पर ऐमा हो नही मक्ता ॥१॥ क्योकि परिणमन उनका शाश्वत उनके अधीन ही रहता। जो निज-अधीन चाहै वह व्याकुल व्यर्थ होता है ॥२॥ इससे उपाय सुखका सच्चा 'स्वाधीन-वृति है अपनी-- राग-द्वेप-विहीना', क्षणमें मब दुख हरती जो ।।३।। - युगवीर wwwwwwwwwra... w विधि क्या कर सकता है? विधिका विधान किनके अर्थ ? जीवनकी औ' धनकी आशा जिनके सदा लगी रहती। विधिका विधान सारा उनहीके अर्थ होता है । विधि क्या कर सकता है ? उनका, जिनकी निगशता आशा । भय - काम - वश न होकर, जगमे स्वाधीन रहते जो ॥ -- युगबीर -- युगवीर
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy