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किरण २]
नागौरके भट्टारकीय भंडारका अवलोकन
अतः निश्चय नहीं हो सका। रात्रिको फिर इकट्ठे होनेकी बात भट्टारकों एवं आर्याओंसे सम्बन्धित ऐतिहासिक गीत भी थी। सेठ रामदेवजी व चौवरी जी आदिकी भावना प्रशस्त है। मिले है, जो अभी तक मेरी दृष्टिमें दिगम्बर साहित्यमें भट्टारकजीने कहा यहां तीन भंडारहै। हमारे अवलोकनार्थ तो अज्ञातसे है । मैने कुछ गीतोके नोट्स लिये पर अभी एक खोला गया है। एक तो अभी सीलबन्द है। भंडारों- समयाभावसे वे पूरे नही लिए जा सके । उनका तो के सूचीपत्र बनानेके रजिस्टर छपे हुए जयपुरसे लाये वे दिखाए एक छोटासा संग्रहग्रन्थ ही निकल जाना चाहिए। तो इनमें ३-४ बातोका विवरण और होना चाहिए था वह श्वेताम्बर साहित्यमें ऐसे हजारों गीत मिलते है पर दिगम्बर यथास्थान लिखते समय सम्मिलित कर लेनेके लिए पण्डितजी साहित्यके लिए यह नवीन चीज ही होगी। यह गीत समसे कह आया हूं। सूची बनानेका काम शीघ्र ही प्रारम्भ हो कालीन होनेसे ऐतिहासिक दृष्टिसे महत्वपूर्ण होते. है। जाय तो ठीक है क्योंकि बनते-बनते भी कई महीने लग जावेंगे शिलालेखो एवं प्रशस्तियोके समान ही इनकी प्रामाणिकता सूची बनने पर समय मिला तो फिर एक बार आकर में सूची व उपयोगिता है। अभी ३-४ गुटकोमे ही ये करीब २०-२५ संशोधन करा आऊंगा।
ही मिले है। खोजने पर सम्भव है और भी मिलें। ___ अभी तो १॥ दिन में मैने एव मुनिमण्डलने ३-४ दिनो में इस भंडारमें आमेरभंडारकी भाति अपभ्रंश ग्रन्थोंको जो कुछ देखा उसीके नोट्सके आधारसे नवीन ज्ञातव्य व प्रचुरता विशेषरूपसे उल्लेखनीय है। बहुतसे ग्रन्थ जो अपने अनुभव प्रस्तुत लेख द्वारा प्रकाशमें ला रहा हूं। पहली आमेर भंडार में है उनको कई प्रतियां यहा मिली है, जो बड़ी पेटीके निरीक्षण तक ही मै वहां था और मेरा काम प्राचीनता व पाठ-भेदोंकी दृष्टिसे महत्त्वकी है। भंडारमे मुख्यतःगुटकोके निरीक्षण करनेका रहा। पत्राकार प्रतिया मुनि प्राकृत एव संस्कृत साहित्य भी अच्छा है । श्वेताम्बर महाराज देख रहे थे, मैने तो थोडीसी देखी है । गुटकोंमें विविध एवं जैनेतरग्रन्थ भी कई अच्छे हैं । यहा कतिपय फुटकर सामग्री रहती है अत देखनेमे समय अधिक लगता अपभ्रंश आदिके अद्यावधि अज्ञात ग्रन्थोकी सूची देकर ही है फिर भी मैने २००-२५० गुटकोंको देख लिया है। उससे लेख समाप्त करूंगा और शीघ्र ही सूची तैयार करनेका पुन. अनुभव हुआ कि १७ वीसे १९ वी शतीके वे लिखे हुए है। अनुरोध करूंगा। कई प्रसिद्ध अपभ्रश ग्रन्थोके संस्कृतमें पूजापाठ, व्रतकथा, राम व गीत आदि, फुटकर रचनाओंका लिखित टिप्पण भी मिले है जो विशेषरूपसे उल्लेखनीय है। इनमें अच्छा संग्रह है। भट्टारक-परम्पराकी ३५ श्लोकों मूल ग्रन्थोंके साथ उन्हे प्रकाशित करनेपर ग्रन्थोंको समवाली पट्टावलीका बड़ा प्रचार रहा प्रतीत होता है, वह लगभग झनेमें बड़ी सुगमता उपस्थित होगी। टिप्पण वाले कुछ ग्रन्थ १५ गुटकोंमे लिखी हुई मेरे अवलोकनमें आई। दो गुटकोमे ये है-(१) सुदसनचरिउ (२) पउमचरिउ आदि। उससे भिन्न २० एव ३३ श्लोकोंकी पट्टावली भी लिखी थी।
अज्ञात ग्रन्थ' मै वर्षोंसे दि० साहित्यमे ऐतिहासिक सामग्रीकी कमीका
(१) नेमिरास, पद्य १३९, कवि भाऊ, सम्वत् १६८१ अनुभव कर रहा था । श्वेताम्बर सम्प्रदायके विद्वानोने
लिखित। ऐतिहासिक साहित्य-निर्माणकी ओर बड़ा ही ध्यान रखा
(२) चेतन पुदगल धमात, पद्य १३४ हैं। है वैसा साहित्य तीर्थमालाएँ, पट्टावलियाँ, ऐतिहासिक
(३) जगरूपविलास, जगरूप, राजस्थानी (४) बारह प्रबन्ध व काव्यादि ऐमे ग्रन्थ तो दिगम्बर साहित्यमें
खड़ी शास्त्र, पं. महीराज कृत, भाषा (५) कृपणपचीसी, निर्माण ही नही हुए-वे इस ओर उदासीन रहे।
(कल्ह), (६) सरस्वतीलक्ष्मीसंवाद, मंडलाचार्य श्रीभूषण, पर इस भंडारके देखनेसे मेरी धारणामे कुछ परिवर्तन
भाषा, (७) मंडलाचार्य श्रीभूषणबावनी (धर्मचन्द्र); (८) अवश्य हुआ।यहां ग्रंथोंकी लेखन-प्रशस्तियां बहुत महत्वकी है।
नेमिश्वरचरित्र,जिनदेवपुत्र दामोदर,अपभ्रश , (९) चन्द्रप्रभु. कई प्रशस्तिया फुटकर पत्रोमें लिखीहुई ग्रन्थोंके साथ जुड़ी हुई है वे पूरे पृष्ठ या २-१ पत्र तक ही है। बहुतसी ग्रन्थसे संलग्न १. इनमें नेमिरास, चन्द्रप्रभचरित (दामोदर), है, उनमें भी कई २-२॥ पत्रोंतक की बड़ी है । भट्टारक- सम्पक्त्वकौमुदी, तत्वार्थसुखबोधटीका, सभवनाथचरित और परम्पराके आचार्योंके समय, श्रावकोके इतिवृत्त, धर्मप्रेमकी पाण्डवपुराण आदि कितने ही ग्रन्थ ऐसे हैं जो अन्यत्र भी
-सम्पादक परिचायक होनेसे ये प्रशस्तियाँ बड़े महत्वकी है। कुछ गुटकोमें पाये जाते हैं।