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फिरम २]
निवासी थे। इसी प्रकार भारतीय इतिहासमें प्रसिद्ध जगत सेठ के पूर्वज यहीसे बंगाल गये थे।
दिगंबर संप्रदायका नागौर से सम्बन्ध कितना प्राचीन है? यह ठीक ज्ञात नही, पर १६ वी शताब्दीसे, भट्टारकजीकी नही यहां स्थापित होनेसे, तो निश्चित ही है। भट्टारकजीके भंडारके भलीभांति अवलोकनसे इस सम्बन्धमें विशेष जानकारी प्रकाशमें आपगी, ऐसा संभव है।
कई वर्षोंसे यहांके भट्टारकजीका सरस्वती महार बहुत महत्वपूर्ण होने की बात सुनता आया हू । बीचमें एक बार नागौर जानेपर उसके अवलोकनका प्रयत्न भी किया था और दिगम्बरसमाजके मूलियोसे भी मिला था पर वहा उस समय भट्टारकजीके न होने और भंडार सील-मोहरबन्द होनेसे सफलता नही मिल सकी थी। उसके पश्चात् पंडित परमानंद जी भी वहां पधारे थे पर फिरभी भंडारका यथावत् अवलोकन अबतक किसीके द्वारा नहीं हो सका ।
नागौरके मट्टारकीय भंडारका अबलोकन
युगपरिवर्तनकी लहरने लोगोंकी मनोवृत्तियोमे थोड़े ही वर्षोंमें बड़ी क्राति उत्पन्न कर दी है। जो व्यक्ति प्राचीन ज्ञानभडारोको प्रकाशमें लाना आवश्यक नही समझते थे, आज उनकी भावनायें ऐसा परिवर्तन आया है कि उन्हें भंडारोंको प्रकाशमें लाना बहुत आवश्यक प्रतीत होने लगा है। श्वेतांबर संप्रदाय इस सम्बन्धमे काफी वर्षोंसे सजग है। इसीलिए ५० वर्ष पहले मी श्वेतावर ग्रंथोंकी सूची अच्छी प्रकाशित हो सकी ओर पाश्चात्य विद्वानो द्वारा श्वेताबर साहित्यका अच्छा अध्ययन खोज रिपोर्ट व प्रकाशन संभव हो सका । पर दिगम्बरसमाजमे अभीभी दिगम्बर साहित्यको सूची प्रकाशित करनेका भी प्रयत्न नही नजर आया। कई वर्ष पूर्व प्रो० हीरालालजीके प्रयत्नसे डा० हीरालालजी रामबहादुर द्वारा संपादित होकर कारजा आदि सी. पी के दो तीन सग्रहालयोका लाग प्रकाशित हुआ था एवं जैनसिद्धान्तभवन आराकी सूची और प्रशस्तिसंग्रह एवं ऐलक पन्नालालसरस्वती भवन बम्बई की सूची और प्रशस्तिएँ प्रकाशित हुई है। भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा दो वर्ष हुए कन्नड़ प्रान्तीय दिगंबर भंडारोंकी सूची' प्रकाशित हुई है । 'अनेकान्त' में देहली आदिके कुछ सरस्वती भंडारोंकी सूचियाँ छपी थी, पर जैसाकि आवश्यक था निरंतर प्रयत्न नही हुआ। करीब २५ वर्ष पूर्व पं० नाथूरामजी प्रेमीने दि० जैन ग्रन्थ और धन्यकर्ता नामक सूची प्रकाशित की थी। उसके बाद दि० साहित्यकी समय सूची नहीं छपी।
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जयपुरकी महावीरतीर्थक्षेत्र कमेटीका इस ओर प्रयत्न
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विशेषरूपसे उल्लेखनीय है। तीनचार वर्षोंसे श्री कस्तूरचन्दजी कासलीवाल निरंतर यही काम कर रहे है। उन्होंने आमेरके मट्टारकजीके भंडार और महावीरतीय क्षेत्रके भंडारकी सूची तैयार कर प्रकाशित की और इसके बाद प्रशस्ति संग्रहको भी प्रकाशित कर दिया, जो एक महत्वपूर्ण कार्य है। अभी भी वे जयपुरके अन्य संग्रहालयों की सूचियोंके बनाने में संलग्न है। दो महीने हुए नागौर आकर भट्टारकजीके भंडारको भी ऊपर २ से देखकर वे एक लेख द्वारा इसके महत्व सम्बन्धमें प्रकाश डाल चुके है। इससे इस संग्रहालयको शीघ्र देखनेकी मेरी भी उत्सुकता बड़ी और मुनि पुम्यविजयजीके नागौर पधारनेके प्रसंगसे वहां मैं भी जा पहुंचा। गत पौष शु० १५ को मुनिश्री गोगोलाबसे नागौर पहुंचने वाले थे, अतः शु १४ की रात्रि को ही में यहां पहुंच गया और मुनिधीके सामने जानेपर उपाध्याय विनवसागरजीने सर्वप्रथम यही कहा कि हम रास्तेमें सोच ही रहे थे कि नाहटाजी आजायें तो भट्टारकजी का संग्रह देखा जा सके। आप आ ही गए—अच्छा हुआ । भट्टारकजीके भंडारके अवलोकनका प्रबन्ध होसके तो ठीक हो भोजनके अनंतर तत्काल स्थानीय पारसमलजी खजानचीको लेकर में दिगम्बरसमाजके मुखिया श्री रामदेवजीसे मिला तो उन्होने भट्टारकजीसे मिलकर भडारके अवलोकनका समय निश्चित करलेनेके लिए कहा। बहाते हम सीधे भट्टारकजी के यहां पहुंचे और उनसे मिलने पर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। मेरे वहां भंडारके लिए अवलोकन करने के आनेकी ही सूचना उन्हें सेठ वृद्धिचंदजी द्वारा जयपुरमे मिल चुकी थी अतः उन्होंने बड़े प्रेमसे भडार दिखानेकी तत्काल स्वीकृति दे दी। इतना ही नहीं, उन्होने कई विशिष्ट हस्तलिखित ग्रंथ जो बाहिर रखे हुए थे, मंगवाकर मुझे दिखाये जिनमें पहली सं० २०३४ को लिखी गोमट्टसारकी सचित्र प्रति थी। दूसरी प्रति स्वर्णाक्षरी सचित्र कालिकाचार्य कपाके मध्यपत्र थे। तीसरी प्रति गीता सचिन थी। और भी कई प्रतिये दिखाने लगे तब मैंने निवेदन किया कि आपके भडारका अवलोकन मुनि पुण्यविजयजी एवं उपा० विनयसागरजी आदि मुनिमंडल भी करना चाहते है इसलिए में आधे घंटे में उन्हें लेकर आता हूँ, तब सभी मिलकर स्थिरतासे भडार देखेंगे । उस समय आपके पास जयपुरसे पं० सतीशचन्द्रजी जो कि भंडारकी सूची बनानेके लिए भट्टारकजी के साथ आये थे, बैठे हुए थे । भट्टारकजीने कहा--पंडितजीको सूची बनाने के लिये लाया हूँ । कार्य शीघ्र ही प्रारम्भ होगा । जाप सूची बनानेके बाद आते तो ज्यादा अच्छा होता। मैंने कहा