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वीरसेवामन्दिरके चौदह रत्न पुरातन-जनवाक्य-सूची--प्राकृतकं प्राचीन ६४ मूल-ग्रन्थोकी पद्यानुक्रमणी. जिसके साथ 6८ टीकादिग्रन्याम उद्धत दूसरे प्राकृत पद्योकी भी अनत्रमणी लगी हई है। मब मिलाकर २५३५३ पद्य-वाक्योकी मूची। मयोजक ओर मम्पादक मुख्तार श्रीज गलकिशोरजीकी गवेषणापूर्ण महत्त्वकी १५० पृष्ठकी प्रस्तावनाग अलकृत, डा० कालीदास नाग एमप, डी लिट के प्राक्कथन ( Foreword) और डा० ए एन उपाध्याय एम ए.डी लिट की भमिका ( Introduction) मे विभूपिन है, गोध-बोजके विद्वानोक लियं अतीव उपयोगी. बटा माटज मजिल्द (प्रस्तावनादिका अलगम मल्य ५ ) ) आप्तपरीक्षा--श्रीविद्यानन्दाचार्यकी म्वापज्ञमटीक अपूर्वकृति, आप्ताकी परीक्षा-द्वारा ईश्वर-विषयके मुन्दर मग्म और मजीव विवेचनको लिा हुए. न्यायाचार्य प. दरबारीलालके हिन्दी अनुवाद तथा प्रस्तावनादिम युक्न मजिल्द ) न्यायदीपिका--न्याय-विद्याकी मुन्दर पाथी. न्यायाचायं प० दरबारीलालजीक मस्कृतटिप्पण, हिन्दी अनवाद, विस्तन प्रस्तावना और अनक उपयोगी पर्गिशष्ठोसे अलकृत. जिल्द ) स्वयम्भूस्तोत्र--समन्तभद्रभागतीका अपूर्व ग्रन्थ मुन्नार श्रीजगलकिशोरजीके विशिष्ट हिन्दी अनुवाद, छन्दपरिचय समन्तभद्र-परिचय और भक्तियोग ज्ञानयोग तथा कर्मयोगका विश्लेषण करती हई महत्वकी गवेषणापुणं प्रम्नावनामे मृगोभित । ) स्तुतिविद्या--म्वामी ममन्तभद्रकी अनोखी कृति. पापांक जीतनकी कला, मटीक, मानबाद ओर थीजुगलकिशोर मम्नारकी महत्वकी प्रस्तावनामे अलकृत. मुन्दर जिन्द-महित ।
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) ) अध्यात्मकमलमार्तण्ड-पचाध्यायीकार कवि गजमल्लककी मुन्दर आध्यात्मिक रचना, हिन्दीअनुवाद-महिन आर मम्तार धीजुगलकिशोरकी खोजपूर्ण विस्तृत प्रस्तावनाम पित।
. ) ) यक्त्यनशासन-तत्वज्ञान परिपुर्ण ममन्नभद्रकी अमाधारण कृति, जिसका अभी तक हिन्दी अनवाद नही हुआ था । मन्नार श्रीक विशिष्ट हिन्दी अनुवाद और प्रस्तावनादिम अलकृत, जिल्द । ) श्रीपुरपाश्र्वनाथस्तोत्र---आचार्य विद्यानन्दचिन, महत्त्वकी स्तुनि, हिन्दी अनुवादादि महिन। .. ॥)
शासनचतुस्त्रिशिका--(तीर्थ-परिचय)--मनि मदनकीनिकी १३वी शताब्दीकी मृन्दर रचना, हिन्दी अनवादादि-पहित। .) सत्साध-स्मरग-मंगलपाठ--श्रीवीर बद्धमान आर उनक वादक -१ महान् आचायकि १३७ पुण्य म्मरणों का महत्त्वपूर्ण सग्रह, मुम्नाग्धीकं हिन्दी अनवादादि-महिन। .) विवाह-समद्देश्य--मम्ताग्दीका लिखा हुआ विवाहका मप्रमाण मार्मिक ओर तात्विक विवेचन .. ) :) अनेकान्त-रस-लहरी--अनकान्न जैग गृह गभीर विषयको अतीव मलता में समझने-समझाने की कजी,
मुम्नार श्रीजगलकिशोर-लिखित। १) अनित्यभावना-श्रीपद्मनन्दी आचार्यकी महत्वकी रचना, मुन्नारश्रीकं हिन्दी पद्यानुवाद और भावार्थ
गहित। १४) तन्वार्थसूत्र (प्रभाचन्द्रीय )--मम्नाग्थीक हिन्दी अनुवाद तथा व्याख्याग युक्त नोट-- मब ग्रन्थ एममाथ लेनेवालो को ३॥) की जगह ३०) म मिलेंगे ।
व्यवस्थापक 'वीरसेवामन्दिर-ग्रन्थमाला'
सरसावा, जि. सहारनपुर ।