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________________ किरण ११ खण्डगिरि-उदयगिरि-परिचय ८९ (ङ) त्रिशूल गुफा - इस गुफाके बरामदेमें एक त्रिशूल उत्कीर्ण है, इससे इसका वही नाम प्रसिद्ध हो गया है । यह भी मध्यकालकी है। इसकी दीवालोंपर २४ तीर्थंकरोंकी मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। इसके सामने एक मन्दिर है । खण्डगिरिको अन्य गुफाएं खंडगिरि पर्वतपर, परकालीन गुफाओंमें निम्नलिखित उल्लेखनीय है : (क) खंडगिरि (खंडित पर्वत) गुफा -- जिसका समय अनिश्चित है, दो खंडकी है और पर्वतपर चढ़ते हुए सबसे पहिले यही मिलती है । (ख) ध्यानधर- इस गुफाका दूसरा नाम शंखगुफा है। संभवतः यह गुफा मध्यकालीन है। मूलतः यह गुफा एक गह्वर-जैसी थी पर इसके अग्र भागकी दीवाल और बरामदेके स्तम्भोके गिर जानेसे यह एक बड़े खुले कमरेके रूपमें परिणत हो गयी है। इसकी बाई दीवालपर सात अक्षर शंख-लिपिके उत्कीर्ण है । (ग) नवमुनि गुफा – यह गुफा भी संभवतः मध्यकाल की है। इसकी दीवालपर नौ तीर्थंकरोंकी पद्मासन मूर्तियां उत्कीर्ण है । और उनके नीचे यक्षणी देवियां हैं। मूर्तियोंके साथ तीन छत्र और दो चमरेन्द्र है। मूर्तियोंके नाम आदिनाथ, अजितनाथ, संभवनाथ, अभिनन्दन नाथ, वासुपूज्य, पार्श्वनाथ, और नेमिनाथ है। इनके अतिरिक्त पार्श्वनाथ और आदिनाथकी दो और मूर्तियां है। यहां चार शिलालेख भी हैं, जिनमें एक दसवी शताब्दीका उद्योतकेशरीके शासनकालके अठारवें वर्षका है। दूसरा श्रीधर नामक एक विद्यार्थीका है । तीसरा विजो (विद्या) विद्यार्थीका, जो आचार्य खल्ल शुभचन्द्रका शिष्य था । शुभचन्द्रको आचार्य कुलचन्द्रका शिष्य लिखा है और चौथा अस्पष्ट है । (घ) बारह मुखी गुफा —— यह भी मध्यकालकी है । इस गुफा में तेईस पद्मासन और एक खड्गासन तीर्थंकरोकी मूर्तियां यक्षिणी देवियोंकी मूर्तियों सहित है । गुफाके बाहर बरामदे में बाईं और दाहिनी तरफ बड़ी २ दो बारहभुजी मूर्तियां देवियोंकी है। जिनके मस्तकपर आदिनाथ और महावीरकी मूर्ति है। इनमें एक चक्रेश्वरीकी मूर्ति है और दूसरी सिद्धायिनीकी। यहां एक छोटी-सी मूर्ति खड़े हुए दिगम्बर मुनिकी है, जिनके हाथमें पिच्छि है, और कमंडल सामने रखा है । इस गुफाके सामने एक आधुनिक छोटा चैत्यालय है । नोट – इस लेख से सम्बन्ध रखनेवाले जो ९ फोटो चित्र साथ में पू० ' एसा उल्लेख है वहां वह लेखमें उल्लिखित 'ई० पू०' का वाचक है। (च) ललाटेन्दुकेशरी गुफा ( मध्यकालीन ) – मूलतः यह गुफा दो मंजिलकी थी किंतु उनका अग्र भाग और दीवालोंका कुछ भाग गिर गया है। दीवालोंपर तीर्थंकरोंकी मूर्तिया उत्कीर्ण हैं, जिनमें आदिनाथ और पार्श्वनाथकी सविशेष रूपसे प्रदर्शित की गयी हैं । गुफाके पीछे की दीवालपर तलभाग से ३०-४० फीटकी ऊंचाईपर कई दिगम्बर मूर्तियोंके ऊपरके भागमें एक ग्यारहवीं शताब्दीका खंडित शिलालेख अशुद्ध संस्कृत भाषामें पांच पक्तियोंमें उत्कीर्ण है, जिसमें लिखा है कि, उद्योतकेशरीके शासनके पांचवें वर्षमें श्री कुमारपवंतपर जीर्ण जलाशय और मन्दिरोंका जीर्णोद्धार करा कर २४ तीर्थंकरोंकी मूर्तिया स्थापित कराई। श्रीपार्श्वनाथके मन्दिर 'जसनन्दी ......' इस शिला लेखमें पर्वतका नाम कुमारगिरि लिखा है किन्तु खारवेल के शिलालेखमें कुमारीगिरि लिखा गया है । (छ) ललाटेंदुकेशरी गुफाके निकट पहाड़की दीवालपर, जिसका बहुत-सा भाग गिर गया है, १०-१२ फुट ऊपरमें दो मूर्तियां आदिनाथकी और एक अम्बिकाकी तीनों मूर्तियां खड्गासनमें उत्कीर्ण है (चित्र ९) । इनका समय आठवींनवमी शताब्दी है । जैनमूर्ति-कलामें अम्बिका (नेमीनाथhi यक्षिणी) को बहुत महत्व प्राप्त है और इसकी मूर्ति प्रायः सर्वत्र पाई जाती है । खंडगिरिके ऊपर राजा मंजू चौधरी ( परवार) के मन्दिरमें (चित्र नं० ८) अम्बिकाकी प्राचीन दो मूर्तिया बड़ी सुन्दर और कालापूर्ण हैं । इसी प्रकार खंडगिरिके निकटवर्ती कई ग्रामोंमें भी मने अम्बिकाकी मूर्तियो के दर्शन किये हैं। इस देवींके साथ दो बालक और आम्रफलयुक्त शाखा या वृक्ष रहते हैं । यह देवी सिंह-वाहिनी है । कलकता, ता० २५-२-१९५२ लगे है उनमें चित्र विषय की सूचनाके साथ जहाँ ''०
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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