________________
पण्डितप्रवर टोडरमल्लजीकी स्वहस्त लिखित प्रतिपरसे संशोधित
मोक्षमार्गमका शक पाठकोंको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि आचार्यकल्प ५० टोडरमल्लजीके मोक्षमार्गप्रकाशककी स्वहस्त-लिखित प्रतिसे मिलानकर उक्त ग्रन्थ उनकी स्वहस्त-लिखित कृतियोंके चित्रों तथा श्री १०५ पूज्य शुल्लक गणेशप्रसादजी वर्णीक प्राक्कथन और ऐतिहासिक महत्वपूर्ण प्रस्तावनाके साथ 40 परमानन्दजी शास्त्रीके सम्पादकत्वमें वीरसेवामन्दिरकी ओरसे छप रहा है। यह महत्वपूर्ण संस्करण पूज्य श्री १०५ क्षुल्लक चिदानन्दजी महाराजकी प्रेरणासे छपाया जारहा है और वह उनकी इच्छानुसार पाठकोंके लिये लागत मूल्यमें प्राप्त हो सकेगा । अतः ग्राहक महानुभाव अपनी प्रति अभीसे रिजर्व करालें।
___अहिंसाका महत्व भारत सदासे अहिंसात्मक संस्कृतिका केन्द्र तुलनात्मक रूपसे मांसाहारसे शाकाहार अधिक रहा है। आज यहाँ फैले हुए मांस और मदिराके उपयोगी सिद्ध हो । जो लेखक महाशय हिन्दी प्रचारको रोकनेके लिये और पुन: अहिंसा धर्म भाषामें सुन्दर व उपयोगी लेख फुलस्केप साइजके
और शाकाहारका प्रचार करनेके लिये इस समितिने २० पेजों में सितम्बर १९४६ के अन्त तक लिख कर निर्णय किया है कि सर्वसाधारणको शाकाहारकी मेजेंगे, उसमें सर्वोत्तम लेखकको २५१) दो सौ उपयोगिता बतानेके लिये सरल-सुबोध और प्रभा- इक्यावन रुपयेका पुरस्कार भेंट किया जावेगा। वशाली साहित्य प्रकाशित कराया जाय, जिसमें
नोट-लेखोंका निर्णय निम्नलिखित सज्जनोंका एक बोर्ड करेगा१ श्री १०५ क्षुल्लक गणेशप्रसादजी वर्णी न्यायाचार्य, २ पं० जुगलकिशोरजी मुख्तार प्रधान संपादक 'अनेकान्त', ३ श्री० जयभगवानजी एडवोकेट, पानीपत ४ ५० कैलाशचन्द्रजी शास्त्री प्रधानाध्यापक, स्या० विद्या. काशी
५ पं० हीरालालजी 'कौशल' साहित्यरत्न, न्यायतीर्थ, देहली लेख भेजनेका पता
जैना वाच कम्पनी, सदर बाजार, देहली।
लालमन्दिरजी, देहली। नोटः-जो सज्जन इस विषयका साहित्य आदि उपयोगी वस्तुएं भेजनेकी कृपा करेंगे, हम उनके अत्यन्त आभारी होंगे।
संशोधन अनेकान्तकी गत किरणमें पृष्ठ ३० पर 'Thinkers की जगह Thinless और पृष्ठ ३४ पर दो जगह Electron के स्थानपर Election तथा Ion के स्थान पर Iow गलत छप गया है अतः पाठक अपनी अपनी प्रतिमें उसे सुधार लेनेकी कृपा करें।
-प्रकाशक ।
जैन अहिंसा प्रचारक समिति