SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किरण २] अनेकान्त दशनावरण, मोहनीय और अन्तरायरूप घातिया पत्नीका नाम दुर्गा था। उससे दो पुत्र हुए । चक्रमेन कर्मो के विनाशसे जो अनन्त चतुष्टयरूप आत्मनिधि और मित्रमेन । चक्रसेनकी स्त्रीका नाम कृष्णावती था की समुपलब्धि होती है उमका वणन है। माथ ही, और उसमे केवलसेन और धर्मसेन नामके दो पुत्र बाह्यमें जो समवसरणादि विभूतिका प्रदर्शन होता है हुए । मित्रसेनकी धर्मपत्नीका नाम यशोदा था उसस वह सब उनके गुणातिशय अथवा पुण्यातिशयका भी दो पुत्र उत्पन्न हुए थे। उनमें प्रथम पुत्रका नाम महत्व है-वे उस विभूतिमें सर्वथा अलिन अंत- भगवानदास था, जो बड़ा ही प्रतापी और संघका रीक्ष विराजमान रहते हैं और वीतरागविज्ञानरूप अधिनायक था । और दूसरा पुत्र हरिवंश भी धर्मआत्मनिधिक द्वारा जगतका कल्याण करते है- प्रेमी और गुणसम्पन्न था। भगवानदासकी पत्नीसंसारके दुम्बी प्राणियोंको दुम्बने छुटकारा पाने का नाम केशरिद था, उससे तीन पुत्र उत्पन्न हुा. और शाश्वत मुग्व प्राप्त करनका सुगम मागे थे-महासेन, जिनदाम और मुनिमुव्रत । मंघाधिप बतलाते है। भगवानदासने जिनन्द्र भगवान्की प्रतिष्टा करवाई कविन इम पाठकी रचना आचाय जिनसेनकं थी और संघराजकी पदवीको भी प्राप्त किया था। आदिपुगणगत 'ममवसरण विपयक कथनको दृष्टि वह दान-मानमें करण के समान था। इन्हीं भगवानमे रग्बत हुए की है । प्रस्तुत ग्रन्थ दिल्लीक बादशाह दासकी प्रेरणाम पंडित रूपचन्द्रजीने प्रस्तुत पाठको जहांगीरके पुत्र शाहजहांक राज्यकालमे, संवत् १६६२ रचना की थी। पांडे रूपचन्द्रजीने इस ग्रन्थप्रशस्तिम के आश्विन महीने के कृष्णपक्षम, नवमी गुरुवारके -:. दिन, सिद्धयागम और पुनवसनक्षत्रम समान हशा एक है । इम जातिका अधिकतर निवास बुन्देलखण्डम है; जैसा कि उसके निम्न पद्यम स्पष्ट है: पाया जाता है। यह जाति विक्रमकी १२ वी में १४ वा श्रीमल्संवत्सरेऽस्मि बरतनुनयविक्रमादित्यराज्ये शताब्दी तक बब समृद्ध रही है। इसके द्वारा प्रतिष्ठित ऽतीते दृगनंदभद्राशुक्रतपरिमित(१६६२)कृष्णपक्षषमास । मूर्तिया १२०२ मे १२४७ तककी पाई जाती है। ये प्राचीन देवाचार्यप्रचार शुभनवर्माता सिद्धयोगे प्रसिद्धं । मृतिया महावा, इतरर, पपोरा, शाहार और नाबई श्रादि पानर्वस्वित्पुडस्थ (?) समवमृतिमह प्राप्तमाता समाप्ति ॥३४ के स्थानाम उपलब्ध होती हैं जिनपर प्रतिष्ठा करने-कराने श्रादिका समय मा अकित है। इसके द्वारा निर्मित अनेक ___ ग्रन्थकर्ताने इस पाठक बनवानेवाले श्रावकके शिवरवन्द मन्दिर भी यत्र तत्र मिलत है, जो उम जानिकी कुटुम्बका विस्तृत परिचय दिया है। जो इम धर्मनिष्टाके प्रतीक है, अनेक ग्रंथोका निर्माण भी किया श्रोर प्रकार है: कराया गया है। मं० १५४० मे श्रावण वदि १० को मूलमंघान्तर्गत नन्दिसंघ बलात्कारगण, मर- मलसघ मरस्वति गच्छके भ० जिनचन्द्र के प्रशिष्य भ• स्वतिगच्छके प्रसिद्ध कुन्दकुन्दान्वयमे वादीरूपी भवनकर्कातिके ममय गोलापूर्व जातिक साह सानातिक मुपुत्र हगांक मदको भेदन करनवाले सिंहकीति हुए। पपाने कर्मक्षय निमित्त उत्तरपुराण लिया था। यह ग्रंथ उनके पट्टपर धर्मकीर्ति, धमकीतिक पट्टपर ज्ञान- नागौर मंडार में सुरक्षित है । इन मब उल्लेखोमे दम जातिभूषण और ज्ञानभूपणके पट्टपर भारतीभूषण की महत्ता और ऐतिहासिकताका भली-भाति परिजान हो तपस्वी भट्टारकोंके द्वारा अभिवन्दनीय विगतदूषण जाता है । अाज भी इममें अनेक प्रनिनि विद्वान और भट्टारक जगत्भूपण हुए। इन्हीं भट्टारक जगद्भूपण- श्रीमान पाये जाते हैं। अन्वेषण होनेपर इस जातिके की गोलापूर्व' आम्नायमे दिव्यनयन हुए । उनकी विकाम आदि पर भी विचार किया जा सकता है। चंदेरी और गोलापूर्व जाति जैनसमाजकी ४ उपजातियोमेसे उसके श्राम-वास स्थानोंमें भी इस जाति के अनुयायी रहे है।
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy