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________________ अनेकान्त वाहद भार्या शिवदेवि सुत सोम-जनप्राहढलाखूलाले (नं०६२) प्रणमन्ति नित्यम्। मूर्तिका शिर नहीं है। बाकी सर्वाङ्ग सुन्दर भावार्थ:-जैसवाल वंशमें पैदा होनेवाले है। यह प्रतिमा चिन्हको देखकर पुष्पदन्तकी साह पोने उनकी धर्मपत्नी यशकरी उनके पुत्र नायक प्रतीत होती है। करीब २॥ फुट ऊँची खड्गासन शाह शान्तिपाल-वील्हे-माल्हा-परमे-महीपाल मही- है। पाषाण काला तथा चमकदार है। पालके पुत्र श्रीराने संवत् १२०३ के माघसुदी १३ लेख-संवत् १२०७ माघ बदी 5 जैसवालान्वये को बिम्बप्रतिष्ठा कराई। साहु तनस्तत्सुताः श्रीदेव-नूकान्त-भूपसिह प्रणमतथा जैसवाल वंशमें पैदा होनेवाले शाह ति नित्यम् । वाहड़ उनकी धर्मपत्नी शिवदेवी उनके पुत्र सोम भावार्थ:-जैसवाल वंशमें पैदा होनेवाले जनप्राहड़-लाग्वू-लाले इन्होंने मंवत् १२०३ माघ साहु तन उनके पुत्र श्रीदेव-नूकान्त-भूपसिंहने सुदी १३ को बिम्बप्रतिष्टा कराई। मंवत् १२०७ के माघ वदी ८ को बिम्बप्रनोट:-यह मति एक वंशके दो भिन्न प्रतिष्ठा- तिष्टा कराई। पकोंने प्रतिष्ठित कराई। (नं०६३) • (नं० ६०) मृतिका शिर धड़से अलग है। अवगाहनासे मत्तिका सिर्फ एक घुटना मय आसनके उप- पता चलता है कि मूर्ति विशाल थी । चिन्हसे लब्ध है। बाकी हिस्से नहीं है। लेख करीब आधेसे प्रतीत होता कि पति अपनी प्रतीत होता है कि प्रतिमा ऋपभदेव तीर्थकरकी है। ज्यादा खण्डित होगया है। चिन्ह घोड़ाका है । लेख-संवत् १२१० वैशाख सदी १३ ग्रहपत्यन्वये करीब १।। फुट ऊँची पद्मासन है। पाषाण काला है। साह श्रीसाद भार्या मना तयोः सुत साहु शीले भार्या रूपा लेख-संवत् १२०३ गोलापूर्वान्वये साहुपद्म माहु- तयोः सत देवचन्द्र एते प्रणमन्ति नित्यम् । भावार्थ:-गृहपति वंशमें पैदा होनेवाले साह भावार्थः गोलापूर्व वंशमें पैदा होने वाले साहु साद उनकी धर्मपत्नी मना उनके पुत्र साहु शीले पद्म तथा साहु णाल्हन"." मंवत् १२०३ में यह उनकी पत्नी रूपा उन दोनोंके पुत्र देवचन्द्र इन्होंने विम्वप्रतिष्ठा कराई। संवत् १२१० के वैशाख मुदी १३ को यह बिम्ब (नं०६१) प्रतिष्ठित कराई। दोनों ओर इन्द्र खड़े है। आधे पैरोंके अतिरिक्त (नं०६४) बाकी हिस्सा खण्डित है । शिलालेख जोड़कर मतिका शिर नहीं है। बाकी सर्वाड सन्दर लिया गया है । करीव ५ फुट ऊँची खड्गासन है। है । चिन्हको देखकर मुनिसुव्रतकी प्रतीत होती पापाण काला है। है। करीब ३ फुट ऊँची पद्मासन है। पद्मापाण लेख-साह दवचन्द्र प्रणमन्ति नित्यम् । काला है। भावार्थ-साहु देवचन्द्र जिनविम्ब प्रतिष्ठित लेख-संवत् १२८८ माघ सुदी १३ गुरौ प्रख्यातकराके प्रतिदिन नमस्कार करते हैं। वंशे गोलापूर्वान्वये साहुरासल सुत साद गृहपतिवंशे . नोट:-मूर्तिमें संवत तथा तिथि नहीं दिये साहु श्रामदेव-हामरमल मुत पण्डित श्रीमालधन तथा गये है। साहु निकट सुत साहु सीहालहाणरस्तत्पुत्र जनपति णाल्ह........
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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