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________________ ५४ अनेकान्त [वष १० लिये मेरा यही रास्ता ठीक है कि जो ईश्वरवाद- अराजकताका तांडव प्रलय तांडव ही होगा। विवेक, आत्मवादके रास्ते अधिक लाभ उठा सकते हैं उन्हें सयम, सहयोग, ये तीन तत्व मनष्यमें होनेपर भी उसी राह चलाना चाहिये, जो अनीश्वरवाद- इतने व्यापक और गम्भीर रूपमें नहीं हैं कि आज अनात्मवादके सहारे अधिक लाभ उठा सकते हैं अराजकताकी स्वतन्त्रताको पचा सकें। यही बात उन्हें उसी राह चलना चाहिये। और दोनों पक्षोंके अनात्मवाद अनीश्वरवादके अराजकवादके बारेमें दुरुपयोगको रोकनेकी पूरी कोशिश करना चाहिये। है। बड़ा मुन्दर है यह अराजकवाद, और धन्य हैं अनीश्वरवाद अनात्मवाद आदि आध्यात्मिक वे जो इसीके सहारे मानवता कायम रख सके हैं पर अराजकवाद है। अराजकवाद बहुत ऊची व्यवस्था ऊंचे दर्जेकी यह धन्यता जिनको नहीं मिल पाई उन्हें है। आज राज्यके नामपर लाखों करोड़ों आदमी ईश्वरवाद या आत्मवादका बोझ उसी तरह उठाना गुलछरे उड़ा रहे है और उत्पादक श्रमके बिना ही पड़ेगा जिस प्रकार आजका अधन्य मनुष्य सरकारव्यवस्थाके नामपर जनताकी कमाईका मक्खन का बोझ उठाये हुए है। उसकी सेवा सरकार उठा हड़प रहे हैं, ब्यवस्थाके लिये नौकर रक्खे गये देनेमें नहीं है किन्तु सरकार बदलने या सरकार आदमी व्यक्तिके सिरपर सवार है, महायुद्ध खून- सुधारनेमे है। खच्चर आदिका दौर-दौरा है, रिश्वतखोरी जनताका साधन साध्य विवेक मांस चीथ रही है। इसकी अपेक्षा यह कितना अच्छा बुद्धिवादका समर्थक होनेपर भी बहुतसे उग्रहै कि दुनियामें कोई सरकार न हो, सब लोग अपने बुद्धिवादियोंके बारेमे मेरी यह शिकायत है कि मनष्योचित विवेक और संयमसे सहयोगी बनकर धर्मवादियोंकी तरह वे भी इकतरफा बहुत झुक जाते काम करें, न किसीको किसीकी धौंस सहना पड़े न हैं और अंतिम साध्यको भूल जाते हैं। धमेवादी जब किसीको हुजर सरकार कहना पड़े, न दर्जनों करोंके देखता है कि अमुक आदमी ईश्वरवादी नहीं है या रूपमें अपनी कमाई लुटवाना पड़े। अराजकवादका अमुक धार्मिक क्रियाकांड नहीं करता तब वह उसे यह कितना सरल सुन्दर चित्र है । इसमें भी सन्देह बेकार बेजिम्मेदार नीतिहीन आदि समझ लेता है, नहीं कि इसी दिशामें आगे बढ़नेपर मनुष्यका इसी तरह द्धिवादी जब देखता है कि अमुक आदमी वास्तविक विकास होसकता है। सैकड़ों आदमी ऐसे ईश्वर या आत्मा मानता है भावनाकी खुराकके रूपमे मिल सकते हैं जो अराजकवादी युगमें भी अपनी कुछ क्रियाकांड करता है तो यह भी उसे मूढ़ बेकार मनुष्यता कायम रख सकते हैं । इसलिये बुद्धिवादी आदि समझ लेता है, वह यह नहीं देखना चाहता की तरह अराजकवादीभी कह सकता है कि हम एक कि इनका उपयोग यह किस रूपमें करता है। सरकारके बदले दूसरी सरकार देकर एक बुराईके अन्तिम साध्यको भूलकर दोनों ही साधनमें अटक बदले दूसरी नहीं दे सकते, हम तो सिर्फ तीन चीजें कर रह जाते हैं। देना चाहते हैं विवेक, संयम और सहयोग । सरकार- हमारा पथ सच्चिदानन्दमय होना चाहिये । सत्की शृंखलासे मुक्त होकर मनुष्य इन्हीं तीनोंके सहारे का सार चित् है चित्का सार आनन्द । ईश्वरवाद अअपना घर बनानेके लिये स्वतन्त्र होगा। नीश्वरवाद,आत्मवाद अनात्मवाद आदि सब चित्के अराजकवादके ऐसे सरल सुन्दर निर्दोष सन्देश- विलास हैं, चित्के बाद आनन्द है, चिद्विलासका को पाकर भी आज हम राज्यसंस्थाको हटा नहीं मूल्य आनन्द-प्रापकताकी दृष्टिसे है । मैं ईश्वरवादसकते, क्योंकि राज्यसंस्थाके तांडवकी अपेक्षा आज अनीश्वरवाद,दोनों हीराहोंसे आनन्दकी प्राप्ति मानता
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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