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________________ अनेकान्त [वर्ष १० मनुष्यमात्र एक सुसंस्कृत कुटुम्बके समान बन जायगा उसी तरह धर्मका भी क्रम विकास मानता तब ये सब धर्म उठा दिये जायेंगे। 'नया संसार में हूं। प्राचीनताके कारण किसी धर्मको मैंने ऐसा चित्रण किया है। यह चित्रण ऐसा ही महत्व नहीं देता बल्कि अगर कोई दूसरा है जैसे कि कुछ लोग यह कल्पना करते हैं कि एक कारण न हो तो प्राचीनतासे अविकास की ही दिन मनुष्यमात्र सुसंस्कारोंसे इस प्रकार स्वयं शा- कल्पना करता हूं। जब कोई कहता है कि मेरा धर्म सित हो जायगा कि शासन-संस्थाकी जरूरत ही सबसे प्राचीन है तब मैं सोचता हूं कि क्या इस न रहेगा। इसाप्रकार यह भी कल्पना की जासकती आदमीका धम इतना अधिक अविकसित है कि है कि एक युग ऐसा आयगा जब मनुष्य अपने सबसे प्राचीन कहा जासके । साधारणत: एक क्षेत्र में संयम आदिके कारण ऐसा बीमार न होगा जिसके धमे जितना पुराना होगा करीब-करीब उतना युगलिये हास्पटिल डाक्टर वैद्य आदिकी जरूरत रहे। बाह्य (आउट आव डेट ) होगा । इसलिये मैं ये सब अच्छी कल्पनाएँ हैं, इनको आदर्श मानकर धर्मोकी आलोचना करता हूं, जो बातें युगबाह्य आगे बढने में प्रगति ही होती है। फिर भी जब तक हो गई है अवमर पर उनको युगबाह्य बताता हूं, मनुष्यका उतना विकास नहीं हो पाया है तब तक जैसे सब धमि अतिशयवाद अलौकिकताएँ हैं शरीर-चिकित्साओंका रहना, शासन-तंत्रका रहना उनका विरोध करता हूं, उनकी भौगोलिक मान्यअनिवार्य है। क्रान्तिके विस्फोटके समय, पुरानी ताओंको हटाता हूं. धर्मक्रियाओंमें जो दोष हैं उन्हें मंस्था नष्ट होनेपर और नई संस्था न आने तक दूर करना चाहता हूं, सर्वज्ञवाद आदिके सिद्धांत भले हा ऐसा मालूम हो कि अब धर्म-संस्था और जो विकास रोकनवाले और अहंकार बढ़ानेवाले हैं शासन-संस्था आदि नष्ट होगई पर थोड़े ही समय उनका खंडन करता हूं। मतलब यह कि सर्वधर्ममें वह किसी-न-किसी रूपमें फिर आजायगी। समभावी होनेपर भी धर्मोकी आलोचनासे डरता 'नया संसार' में बताई हई सीमा तक जब तक नहीं हूं। सिर्फ निष्पक्षताका खयाल रखता हूँ। मनुष्यका विकास नहीं होता तब तक किसी न कोई शास्त्र मेरे लिये प्रमाण नहीं है, यह तो कहा किसी तरहकी धर्म संस्था रहेगी। ही करता है । मैं इस दुनियाको ही महाशास्त्र धर्म-संस्थाका विकास मानता हूँ | मेरा कहना है६. विकासबादके आधारसे मैं धर्मोका अध्य- भाई पढ़ले यह संसार । यन करता हूं । जहाँ जिस युगमें मनप्यका जितना खुला हुआ है महाशास्त्र यह शास्त्रोंका आधार । विकास हुश्रा होता है उस युगमें पैदा होनेवाला एतना होनेपर भी में राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध, धर्म भी वैसा ही विकसित होता है। जंगली युगका जरथुस्त, ईमा, मुहम्मद, माक्म आदिका सन्मान धर्म भी जंगली ढंगका होगा और वैज्ञानिक युगका करता हूं, उनकी पूजा करता हूं, उनकी मूर्ति बनाकर धर्म भी वैज्ञानिक ढंगका होगा। इसलिये मेरी दृष्टि- रख लेता हूं। इसका कारण यह है कि उन्हें अपने से न तो कोई धर्म पूर्ण सत्य होता है न सदा जमानेका युगप्रवर्तक मानता हूं और मानता हूं कि सर्वत्रके लिये उपयोगी । वह अपने देश कालकी मानव विकासके इतिहासमें उनकी सेवाओंका मांग पूरी करता है, और उस युगमें जैसी बौद्धिक एक विशिष्ट स्थान है, उनने मानवको एक मंजिल सामग्री उपलब्ध होती है उसी तरह वह बनता ऊपर चढ़ाया है भले ही वह मंजिल आजकी मंजिल- . है। मैं मानव जातिका क्रम विकास मानता हूं से नीची हो । जार्ज स्टिफेसनने जो रेल-एंजिन
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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