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________________ Regd. No: D, 397 स्वाध्याय और शानदानका शुभयोग मादा भाम लिये मूल्यम मार्ग रियायत श्रीबीरशासनजयन्ती और दशलवणपर्वकै उपलपमें पीरसेवामन्दिरने सर्वसाधारणको स्वाध्याय और शास्त्रदानका उत्तम अवसर प्रदान करनेके लिये अपने द्वारा प्रकाशित निम्न प्रन्योंका मूल्य भादों मासके लिये पौना कर दिया है। जो सज्जन इन सब प्रन्योंका पूरा सेट एक साथ खरीदना चाहेंगे उनके लिये और भी रियायवकी गई है. उन्हें १५) ० के ये सब अन्य १०) १० में ही दे दिये जाएंगे। प्रतः स्वाध्याय-प्रेमियों और शास्त्रदानके हकोंको इस शुभयोगसे शीघ्र ही लाभ उठाना चाहिये, और प्रचारादिके लिये अधिक संख्यामें ग्रन्थ मंगाकर संस्थाको दूसरे। उत्तम प्रन्योंके प्रकाशनका अवसर देना चाहिये:..आप्तपरीक्षा-श्री विद्यानन्दाचार्यको अपूर्व कृति, स्वोपशटीका, हिन्दीअनुवाद, प्रस्तावनादिसहित सजिल्द ) ..स्तुदिविद्या-स्वामी समन्तमद्रकी अनोखी कृति, पापोंको जोतनेकी कला, सटीक, सानुवाद और श्री जुगलकिशोर मुख्तारकी महत्वको प्रस्तावनासे भलकृत, सुन्दर जिल्द-सहित । । अध्यात्म कमलमार्तण्ड-पंचाध्यायीकार कवि राजमल्लको सुन्दर रचना, हिन्दी अनुवादसहित प्रोस मुख्तार श्री जुगलकिशोरकी विस्तृत प्रस्तावमासे भूषित । ५. स्वयम्भूस्तोत्र-समन्तभद्रभारतीका अपूर्व प्रन्थ मुख्तारश्रीके विशिष्ट हिन्दी अनुवाद, छन्द-परिचय और महत्वको प्रस्तावनासे सुशोभित । १. श्रीपुरपार्श्वनाथस्तोत्र-प्रा०धियानन्दरचित, हिन्दी अनुवादादिसहित । ६. शासनचतुस्त्रिशिका-(तीर्थपरिचय) मुनि मदनकोतिको सुन्दर रचना, हिन्दी अनुवादादिसहित सत्साधु-स्मरण-मंगलपाठ-श्रीवीरवर्द्धमान और उनके बादके २१ महान चाचार्यों के १३७ पुण्य स्मरणोंका महत्वपूर्ण संग्रह, मुख्नारश्रीके हिन्दी अनुवादादि सहित । विवाह-समुद्दश्य- मुख्तारभीका लिखा हुआ विवाहका सप्रमाण मार्मिक और तात्विक विवेचन | अनेकान्त-रस-बहरी-अनेकान्त जैसे गूढ-गंभीर-विषयको अतोष सरखतासे समझने-समझानेको कुम्जी, मुख्तारधी जुगलकिशोर-लिखित । .. अनित्य-भावना - श्रापभनन्दी प्राचार्यको महत्वकी रचना, मुख्तारश्रीके हिन्दी पणानुवाद और भावार्थसहित)। 1. तत्त्वार्थसूत्र (पभाचन्द्रीय)-मुख्तार श्रीके हिन्दी अनुवाद तथा ग्यख्यासे युक्त । ग्याप३. बाग्मेवामन्दिा प्रमाला नोट-स्वयम्भूस्तोत्रको छोड़कर, जिसको प्रस्तावना छपनो अभी बाकी है, और सब प्रन्थ तय्यार हैं। सेटके खरीददारोंको स्वयम्भूस्तोत्र बाउको भेजा जायगा । जो उसे न लेना चाहें ये सेटके अन्य सब प्रन्थ ) में ले सकेंगे। प्रकाशक-परमानन्द जैन शास्त्री, वीरसेवा मन्दिर ७/३३ दरियागंज देहली, मुद्रक-अजितकुमार जैन शास्त्री, अकलक प्रेम, सदरबाजार, देहली।
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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