________________
अनेकान्त
४३४
[ वर्ष १० यक्ष आदि भारतकी मौलिक जातियों श्री, हो, धृति, वाली यक्षिणियोंको क्रमश: तीर्थकारोंकी शासनबुद्धि, कीति, लक्ष्मी, काली, दुगो, पार्वती. कुष्मांडिनी देवियां कहा गया है। गौरी, पद्मावती, चक्रेश्वरी आदि अनार्य देवियों जिनशासनके रक्षक देवी-देवता होनेके कारण
और कुबेर गणेश, कार्तिकेय, वरुण, वैश्रमण, यम, ही जैनागम, पूजापाठ और प्रतिष्ठा-ग्रन्धों में श्रर्हत. धरणेन्द्र और रुद्रको हासिल (प्राप्त) है वह वैदिक बिम्ब-प्रतिष्ठा एवं महाअभिषेक आदि उत्सवोंके पार्योके माननीय देवता इन्द्र, वायु, अग्नि, ब्रह्मा समय इन यक्ष-यक्षणियों; श्री, ही भादि देवियों आदि देवताभोंको हासिल नहीं है।
वरुण, कुबेर, आदि दशों दिशाओंके क्षेत्रपालोंकी नाग-नागनियों और उनके अधिपति धरणेन्द्र पूजा-आराधना करनेका भी विधान किया गया है अथवा फणोन्द्रको सदा अईन्तोंका परम उपासक माना तीर्थंकरोंकी मूर्तियाँ बनाते समय इनकी मूर्तियाँ गया है। जब कभी अर्हन्तों और उनके शासनपर बनानेका उल्लेख है। प्राचीन जिनभगवानकी कोई उपसर्ग हाहै तो धरणेन्द्र सदा उनका सहा
प्रतिभाओं में जगह-जगह दायें-बायें यक्ष और यक्षयक हुआ है। सातवें तीर्थ कर सुपार्श्वनाथ और णियोंकी आकृतियां बनी हुई मिलती हैं। २३ वें तीर्थंकर पाश्वनाथकी मूर्तियोंके शिरोपर मोहनजोदडोकी साक्षीबहुधा जो सपेफण बने हुए मिलत हवे इस बातके इस परिचयसे भली-भांति सिद्ध है कि जैनप्रमाण है कि वे नागजातिके महापुरुष थे। इसके संस्कृतिका यच, गधर्व, नाग आदि भारतकी प्राचीअलावा अन्य जैन मूर्तियोंके दायें बायें भी सर्पफण
नतम जायिोंसे बहुत घनिष्ठ सम्बध रहा है। इस धारी नाग लोग खड़े हुए मिलते हैं, जिससे स्पष्टतया
परसे स्वभावतः यह निष्कर्ष निकलता है कि यदि सिद्ध है कि नागलोग अर्हन्तोंके उपासक थे।
उपयुक्त जातियों की सभ्यताके कोई प्रागैतिहासिक गोमख, २ महायक्ष, ३ त्रिमुख, ४ यक्षेश्वर, केन्द पुरातात्विक खोज-द्वारा प्रकाशमें लाये ५ तुम्बर, ६ पुष्ष, ७ वरनंदि, ८ श्याम, अजित,
गये, तो उनमें जैन संस्कृतिक चिह्न अवश्य ही मिलने १० ब्रह्म, ११ ईश्वर, १२ कुमार, १३ कार्तिकेय
चाहिये । इस तथ्य की जाँच करने के लिये आइये सिंध (चतुमुख), १४ पाताल, १५किन्नर, १६ किंपुरुष,
काएठे के मोहनजोदड़ो और रावी-काएठेके हडप्पाके (गरुड), १७ गंधर्व, १८ खगेन्द्र, १६ कुबेर, २०
पुराने नगरोंकी ओर चलें, जिनके ५००० वर्ष पुराने वरुण, २१ भ्रकुटि, २२ सर्ववाहन (गोमेद), धरणेंद्र
ध्वंसावशेष भारतीय सरकारके पुरातत्त्व-विभागऔर २४ मातंग नामवाले यक्षोंको क्रमशः ऋषभ
द्वारा सन् १९२२-२६ में भूगर्भसे निकालकर प्रकाश आदि चौवीस तीर्थ करोंका शासन-देवता माना
में लाये गये हैं और जिनकी सोई हुई सभ्यताका गया है। और १ चक्र श्वरी,२ रोहिणी, ३ प्रज्ञप्ति, ४
श्रीजॉनमार्शल डायरेक्टर-जनरल भारतीय पुरावाखला, ५ पुरुषदत्ता, ६ मनोवेगा (मोहिनी), ७ काली. ८ ज्वालामालिनी, महाकाली (भ्रकुटि),
तत्त्व-विभागने 'Mohenjodaro and Indus १० मानवी (चामुडा), ११ गौरी, (गोमेदिका) १२
civilisation' नामक तीन बृहन् पुस्तकों में सवि. गांधारी (विद्य मालिनी), १३ वैरोटी, १४ अनन्त- स्तार दिग्दर्शन कराकर संसारके इतिहासज्ञोंका मती (विज भिणी), १५ मानसी. १६ महामानसी. ध्यान भारतकी प्राचीनतम प्रागैतिहासिक सभ्यता१७ जया (विजया), १८ अजिता (तारादेवी), ११ की ओर श्राकर्षित किया है। अपराजिता, २० बहुरूपिणी, २१ चामुडा, २२ यथपि दुर्भाग्यवश उपर्युक्त नगरों में कोई कमांडिनी,२३ पद्मावती और २४ सिद्धायिका नाम- ऐसी बिल्डिंग जिसे हम असंदिग्धरूपसे देवालय