SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 458
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किरण ११-१२] भद्रबाहु-निमित्तशास्त्र ४१४ युद्धस्थलीय-वायु-विषयक निमित्तज्ञान यदा सपरिघा सन्ध्या पूर्वो वात्यनिलो भृशम् । पूर्वस्मिन्नेव दिग्भागे पश्चिमा वध्यते चमः।।५३।। ___ अथ-यदि प्रात: अथवा सायंकालकी सध्या परिघ - सहित हो-सूर्यको लॉघती हुई मेघोंकी पंक्तिसे युक्त हो-और उस समय पूर्वका वायु अतिवंगसे चलता हो तो पूर्व दिशामे ही पश्चिम दिशाका सेनाका वध होता है ।। ५३ ।। यदा सपरिघा संध्या पश्चिमा वाति मारुतः । अपरस्मिन् दिशो भागे पूर्वा सा बध्यते चमः।५४/ अर्थ- यदि संध्या सपरिघा हो-सूर्यको लॉघती हुई मेघ पंक्तिसे युक्त हो-और उस समय पश्चिम पवन चले ता पूर्व दिशा में स्थित सेनाका पश्चिमदिशामे बध होता है ।। ५४ ॥ यदा सपरिघा सध्या दक्षिणा वाति मारुतः । अपरस्मिन्दिशो भागे उत्तरा वध्यते चमूः॥ ५५ ।। अर्थ-यदि संध्या सपरिघा हो-सूर्यको लॉघती हुई मेघपंक्तिसे युक्त हो और उस समय दक्षिण का वायु चलता हो तो उत्तरकी सेनाका दक्षिण दिशामें बध होता है ।। ५५ ।। यदा सपरिघा संध्या उत्तरो वाति मारुतः । अपरिस्मन् दिशा भागे दक्षिणा वध्यते चमूः ॥५६॥ ___ अर्थ-यदि संध्या परिघ-सहितहो-सूर्यको लांघती हुई मेघपंक्तिसे युक्त हो और उस समय उत्तरका पयन चले तो दक्षिणकी सेनाका उत्तर दिशामें वध होता है ।। ५६ ॥ प्रशस्तस्तु यदा वातः प्रतिलोमोऽनुपद्रवः । तदा यान् प्रार्थयेकामांस्तान प्राप्नोति नराधिपः॥५७ । अर्थ-जब प्रतिलोम वायु प्रशस्त और उपद्रवरहित हो तो राजा जिन कार्योंको चाहता है वे उसे प्राप्त होते है अर्थात् राजाको उसके अभीष्टको सिद्धि होती है ॥ ५७ ॥ यप्रशस्ता यदा वायुर्नाऽभिपश्यत्युपद्रवम् । प्रयातस्य नरेन्द्रस्य चमूः हारयते सदा ॥५८ ॥ अर्थ-यदि वायु अप्रशस्त हो और उस समय कोई उपद्रव दिखाई न पड़ता हो तो युद्ध के लिये प्रयाण करनेवाले राजाकी सेना सदा पराजित होती है ॥ ५ ॥ तिथीनां करणानां च मुहुर्तानां च ज्योतिपाम् । मारुतो बलवान्नेता तस्माद्यत्रैव मारुतः ॥५६॥ अर्थ-तिथियों, करणों, मुहूर्तो' और ज्योतिषियों ( ग्रह - नक्षत्रादिकों ) का बलवान नेता वायु है अत: जहां वायु है वहीं उनका बल समझना चाहिए ।। ५६ ॥ वायमानेऽनिले पूर्व (३) मेघास्तत्र समादिशेत् । उत्तरे वायमाने तु जलं तत्र समादिशेत् ॥६०॥ अर्थ-यदि पूर्वदिशामें पवन चले तो उस दिशामें मेघोंका होना कहना चाहिये और यदि उत्तर दिशामें पवन चले तो उस दिशामें जलका होना कहना चाहिए ।। ६०॥
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy