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________________ किरण ११-१२] भद्रबाहु-निमित्तशास्त्र ४१७ अर्थ-इस प्रकार पवनों और उनके शुभाशुभ फलको जान कर भिक्षावृत्तिवाले साधुओंको चाहिए कि वे जहां बाधारहित प्रशस्त स्थान देखे वहीं निश्चितरूपसे निवास करें॥ ३६ ॥ आहारस्थितयः सर्वे जङ्गमाः स्थावरास्तथा । जलसंभवं च सर्व तस्यापि जनकोऽनिलः ॥ ३७ ॥ अर्थ-जंगम और स्थावर सब जीवोंकी स्थिति आहारपर निर्भर है-सबका आधार आहार है-वह सब आहार जलसे उत्पन्न होता है और उस जलको भी उत्पन्न करनेवाला वायु है ॥ ३७ ।। सार्वकालिक वायुका लक्षण सर्वकालं प्रवक्ष्यामि वातानां लक्षणं परम् । आपाढीवत्तत्साध्यं यत्पूर्व सम्प्रकीर्तितम् ॥३८॥ ____ अर्थ-अब पवनोंका सार्वकालिक उत्तम लक्षण कहूँगा, उसे पूर्वमें कहे हुए प्राषाढी पूर्णिमाके समान सिद्ध करना चाहिए ॥ ३८ ॥ पूर्ववातो यदा तूर्ण सप्ताहं वाति कर्कशः । स्वस्थाने नाऽभिवत् महदुत्पद्यते भयम् ॥३६॥ प्राकार-परिखानां च शस्त्राणां च समन्ततः । निवेदयति राष्ट्राणां विनाशं तादृशोऽनिलः ॥४०॥ ___ अर्थ-पूर्व दिशाका पवन यदि कर्कशरूप धारण करके अतिशीघ्र गतिसे चले तो वह स्वस्थानमें वाके न होनेकी सूचना देता है और उससे अत्यन्त भय उत्पन्न होता है उस प्रकारका पवन कोट-खाइयों, शस्त्रों और राष्ट्रोंका सब ओरसे विनाश सूचित करता है ॥ ३६, ४०॥ सप्तरात्र दिनाञ्च यः कश्चिद्वाति मारुतः । महद्भयं हि विज्ञ यं वर्ष वाऽथ महद्भवेत् ॥४१॥ ___ अर्थ-किसी भी दिशाका वायु यदि साढ़े सात दिन तक लगातार चले तो उसे महान भयका सूचक जानना चाहिए अथवा उसके कारण अतिवृष्टि होती है ॥४१॥ पूर्वसंध्यां यदा वायुरपसव्यं प्रवर्तते । पुरावरीधं कुरुते यायिनां तु जयावहम् ॥ ४२ ॥ अथ-यदि वायु अपसव्यमार्गसे पूर्वसंध्याको वातान्वित करता है तो वह पुरके अवरोधकाघेरेमें पड़ जानेका-सूचक है । उस समय यायियों-युद्धयात्रियों की विजय होती है ॥ ४२ ॥ पूर्वसंध्यां यदा वायुः सम्प्रवाति प्रदक्षिणः । नागराणां जयं कुर्यात्सुभिक्ष यायिविद्रवम् ॥४३॥ अर्थ-यदि वह वायु प्रदक्षिणा करता हुआ पूर्वसंध्याको व्याप्त करे तो उससे नागरिकों (स्थायी) की विजय होती है, सुभिक्ष होता है और चढ़कर आनेवाले यद्धयात्रियोंको लेनेके देने पड़ जाते हैं अथात् उन्हें भागना पड़ता है ।। ४३ ॥ मध्याह चार्द्धरात्रे वा तथा वास्तमनोदये । वायस्तुणं यदा वाति तदाऽवृष्टिभयं रुजम् ॥ ४४ ।। अर्थ-यदि वायु मध्याह्नमें, अर्धरात्रिमें तथा सूर्यके अस्त भौर उदयके समय शीघ्र गतिसे चले तो अनावृष्टिका भय और रोग उत्पन्न होते हैं ॥४४॥
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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