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________________ किरण ११-१२ हर्षकोत्तरि और उनके ग्रन्थ ४०७ ट्रों में महाप्रति इविड ही थे। सिन्धु घाटीकी खुदाईसे जिस सस्कृति-श्रमण संस्कृतिको धक्का दिया। श्रमण सभ्यताके अवशेष मिले हैं उसके विधाता द्रविड़ और याज्ञिक संस्कृतिक संघर्षके प्रकीर्णक उल्लेख थे, ऐसा विद्वानों का मत है। ब्राह्मण और उपनिषद प्रन्थों में मिलते हैं। श्रमण पार्योसे ठीक पहलेकी जाति होनेसे वेदोंमें संस्कृतिक सूचक अहन, श्रमण मुनयः वातवसनाः इनकी विविध जातियों का उल्लेख मिलता है सो व्रात्य महाव्रात्य आदि शब्द वैदिक साहित्यमें पाये कह चुके हैं। इनसे ही मोधे सघर्ष होने की घटनाएं जाते हैं। श्रमणोंके प्रतिनिधि ऋपभदेव, अजितनाथ, वेद और पश्चात् कालीन माहित्यमें है। आर्योंन अरिष्टनेमिका उल्लेख भो वेदोंमें है। मालम होता वेदोंमे दस्यु, अनास, मृध्रवाक् अयज्वन्, अकर्मन्, है कि इस श्रमण संस्कृति के उपासक द्रविड जाति अन्यत्रत वादि घृणा पूण शब्दोंसे इन्ही अनार्या का और उसके पर्वको जातिके लोग रहे हैं जिनकी उल्लेख किया है। आर्यो ने इन से पथक बने रहनेके पूजा उपासना' दाशनिक मान्यता कमसिद्धान्त, लिए 'वभेद' बनाया। पुनर्जन्म आत्माकी पयोयें होना सभ्यता आदि श्रमण सस्कृतिके अनुरूप ही है। यह संस्कृति ___एक सुझाव चारों तरफ भारतमें फैली थी। तामिल भाषाके वैदिक साहित्य सारे भारतके सांस्कृतिक प्राचीन साहित्य इससे प्रभावित थे। अब तक उस इतिहासका प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता, क्यों संस्कृतिकी परिचायक पुरातत्वादि सामग्रीका ठीक कि वह एकदेशीय अर्थात् विशेषकर पंजाब, देहली अनुसन्धान नहीं हुआ । सिन्धु घाटोको के आस पासका साहित्य है। तथा वह उस याज्ञिक खुदाई से जो कुछ प्रकाश पड़ा है तथा गंगाघाटी की मस्कृतिके उपासकोंको कृति है जो दूसरी संस्कृति खुदाईसे जो प्रकाश पड़ेगा, ये दोनों अवश्य ही के उत्कर्षके प्रति अति असहिष्ण थे। उन्होंने भारत भाग्नय द्रविड़ आदि द्वारा उपास्य श्रमण संस्कृतिके मध्यभाग और पूर्वभागमें प्रचलित अहिंसक पर प्रकाश डालेंगे। (श्रमण) हर्षकीर्तिसरि और उनके ग्रन्थ (ले०-श्री अगरचन्द नाहटा) दिगम्बर कविराजमल्लने 'छन्दो विद्या' नामक भारमल्लक गुरु श्रीक सम्बन्धमें ग्रन्थकार राजमल्ल छन्द विषयक ग्रन्थ श्वे. राजा भारमल्लक लिये ने मंगलाचरण के पश्चात् तीसरे पद्यमें ही प्रकाश बनाया था जिसकी एक मात्र प्रति देहलीके दिग- डाला है। उक्त पद्य इस प्रकार है:म्बर सरस्वती भंडारमे उपलब्ध हुई है। अनेकान्तके श्रासीनागपुरीयपट्टनिरतः साक्षात्तपागच्छमान, सम्पादक श्री जगलकिशोरजी मख्तारने उसका विस्तृत परिचय कई वर्ष पूर्व अनेकान्तमें एवं तद सरिः श्री--प्रभुचन्द्रकीतिरवनी मूर्द्धाऽभिपेको गणी। नन्तर 'अध्यात्मकमलमार्तण्ड' की महत्वपर्ण तत्पट्ट विह मानसूरिर भवत्तस्यापि पट्टेधुना, प्रस्तावनामें प्रकाशित किया है। उक्त प्रन्थमें राजा संसम्रादिव राजते सुरगुरुः श्रीहर्षकीर्तिमहान् ॥
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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