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________________ अनेकान्त विष १० दुसरेथे दास और दस्यु जो कि आर्येतर जातिके थे। है । इमलिये वैदिक कालकी तिथिके निण्यके ये नगरोंमें रहने वाले लोग थे। वेदों में इनके बड़े लिये हमारे पास सुरक्षित पक्ष भाषा विज्ञान और बड़े नगरों ( पुरों) का उल्लेख है। इनमेंसे जो पुरातत्व ही है। कुछ विद्वान श्रा का भारत में व्यापारी थे वे परिण कहलाते थे; जिनसे आर्योको आना नहीं मानते। वे इन्हें यहींका निवासी मानते अनेक अवसरोंपर युद्ध करना पड़ा था। ऋग्वेद हैं। पर उनका यह कथन आनुमानिक है। माववंशमें दिवोदास और पुरुकुत्सका उन पुरोंके स्वामियोंविज्ञान और भाषाविज्ञानके अध्ययनसे उनका से युद्धका वर्णन है। ऋग्वेद में ७-१८ में दिवो- यह मत पृष्ट नहीं होता। दासके पौत्र सुदासद्वारा एक शत्रदलके पराजय. पार्यो से पूर्वके भारतीय का वर्णन है। उसमें निम्न लिखित जातियोंका उल्लेख है- तुर्वसु, मत्स्य, भृगु, द्रा, पक्थ, आर्योके बाहरसे आनेकी घटना कोई कल्पित मलानस, अलिनस, शिव, विषाणिन, वैकणे नहीं है तथा उसका उल्लेख भी वेदों तक ही सीमित अनु, अज, शिघ्र और यनु । इन जातियों के नहीं। वह ऐसी घटना है जिसकी ध्वनि बाद के सम्बन्धमें विद्वानोंको बहत कम मालूम है। श्री साहित्य में भी मिलती है । संस्कृन पराणों में असुरों की उन्नत भौतिक सभ्यताका तथा बड़े-बड़े प्रासाद हरितकृष्ण देवने इनमें से बहुत कुछ जातियों और नगर बनानेकी कलाका उल्लेख है। ब्राह्मण की पहचान मिश्रदेशी रिकार्डोसे की है उनके उपनिषद और महाभारत अति परवर्ती साहित्यकथनानुसार ये १२ वीं ई० पूर्व-की मध्य एशिया में इन असुरोंकी अनेक जातियोंका उल्लेख है जैसे की जातियाँ है तथा कुछ द्रविड़ोंकी सजातीय तथा कालेय, नाग आदि । ये सारे भारतमें फैले थे। कछ आर्योंकी सजातीय हैं। इनके अनेक स्थानोंपर बड़े २ किले थे। युधिष्ठिरके वेदरचनाकी पूर्ववर्ती तिथि यदि इन घटनाओं- राजसूय यज्ञका मण्डप इसी असुर जातिके मय के भासपास मानी जाय तथा उत्तरवर्ती तिथि नामक व्यक्तिने बनाया था। महाभारत और पुगअवेस्ताके प्राचीन भागोंकी रचना ७ वी ई. पूर्व णोंमें ब्राह्मण क्षत्रियोंके साथ अनार्य नाग और व अखेमनियन राजाओंक प्राचीन फारसी- दासोंकी शादीके अनेक उल्लेख मिलते है। ये मे लिखे गये अभिभलेखोंकी तिथि ई० पूर्व शान्तिप्रिय, उन्नतिशील तथा व्यापारी थे। अपन -जिनसे वैदिक भाषाका बहुत कुछ मिलान होता इन उपायोंसे ये भौतिक सभ्यतामें बड़े चढ़े थे। है-मानी जाय तो हम वेदरचनाका समय १० वीं इसा पर्व कह सकते है। इसी समय आर्य लोग मम आयं श्रार अनार्य संस्कृतियोका संमिश्रण होंमें भारत आये थे। मिश्र और चाल्डियाक इनपर भौतिक सभ्यतासे पिछड़ी पर युद्धप्रिय प्रागितिहास और इतिहासकी घटनाकी तुलना- एवं उद्यमशील तथा समृद्ध भाषासे सम्पन्न आर्य में आर्योंके आनेकी घटना कोई बहुत प्राचीन नहीं जातिने आक्रमण किया। उन्हें भौतिक सभ्यता के वैठती। कछ विद्वान आकि मांगमनकी बात वैभव सखमे पली सकुमार अनार्य जातिको जीतना ज्योतिष गणनाके अनुसार बहुत सुदूर प्राचीन कठिन मालूम नहीं हुआ और बड़ी सरलतासे उसे कालमें ले जाते हैं पर यदि उस ज्योतिष गणनाकी उन्होंने वशमें कर लिया। आयोंके भारतमें दो व्याख्या वैज्ञानिक अनुसंधानोंके आधारपर की प्रवल आक्रमण हुए, ऐसा विद्वानोंका कहना है। जाय तो प्रायोंके मानेका समय बहत बाद बैठता आर्य लोग प्रायः झडों (ग्रामों) मे आये थे तथा
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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