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________________ किरण] मौर्य साम्राज्य का संक्षिप्त इतिहास ३६६ राज्य मांगा और अशोकने उसकी प्रार्थना स्वीकृत यह ठीक नहीं है। जैन ग्रन्थोंसे विदित होता है कि कर सम्प्रतिको राज सौंप दिया। दूसरा मत यह है मंप्रति उज्जयिनी और पार्टीलपत्र पर एक साथ हो कि सम्प्रतिको जन्म लेते ही पितामह अशोकसे राज्य गज करता था और वह समूचे भारतका स्वामी मिल गया था और तीसरे मतके अनुसार उसे था। ऊपर हम यह भी देख आये हैं कि बौद्धग्रन्थ कुमारभक्ति में उज्जयिनीका राज्य मिला था। अस्त. पाटलिपुत्र में उसका अभिषिक्त होना कहते हैं। इतना तो निश्चयपूर्वक ज्ञात किया जा सकता है मम्प्रति और जैनधर्म कि सम्प्रति प्रारंभसे ही युवराज था। जैन श्राचार्य सुहस्तिने धर्मोपदेश देकर सम्प्रति हिन्द पुराणों का क्रम इससे भिन्न है और वह का जन बनाया। इमके बाद सम्प्रतिने जैनधर्मक जैन और बौद्ध ग्रन्थोंसे विपरीत है। वायु पुगण प्रचारके लिये वही और उतना ही कार्य किया कुनालको अशोकका उत्तराधिकारी कहता है और जितना अशोकने बौद्धधर्मके प्रचारके लिये किया कुनालक बेटे का नाम बन्धुपालित तथा बन्धुपालितक था। वह भी अशोकके समान धर्मविजयी राजा उत्तराधिकारीका नाम इन्द्रपालित बताता है। था। और उसने उत्तर पश्चिमके अनार्य देशों में विष्णुपुगणम अशोकके बाद सुयशका नाम है और प्रचारक भेजे तथा वहां जैन विहार स्थापित और उसके राज्यके वष आठ कहे है जिन्हे अन्य कराय। इसी परंपराके अनुसार पीछे आचार्य पुराणों में कुनालके गज्यवर्ष कहा गया है। इसी कालक वहो मंदश लेकर शकोंके बीच पहुंचे थे। पुगणमे सुयशक बाद अशोकके पाते दशरथका मम्प्रतिन मैकड़ो स्मारक और मदिरोंका निर्माण गज्य कहा गया है और उसके बाद मम्प्रतिका। कराया था। पटना मग्रहालयमें प्रविष्ट होते ही मत्स्यपुराणमें भी दशरथके बाद सम्प्रतिका नाम बाएं ओर दर्शकोंको नग्न प्रतिमाका एक धड़ है । बौद्ध-डौतहास लेखक तारानाथ कुणालको दिखाई देता है जो निश्चित ही किमी जैन तीर्थकर अशोकका उत्तराधिकारी और उनके बेटे को की प्रतिमाका ण्डित भाग है। इस प्रतिमा पर विगताशोक लिखता है। स्वगीय डाक्टर काशीक वही कांच-जैमा चमकदार पालिस है जो प्रमाद जायसवाल ने पुराणोंक प्राधारपर अशोकक प्रियदर्शी गजा अशोकके स्तंभों तथा मौयकालीन पीछे कुणालका गज्य और उसके पीछे अशोक अन्य शिल्पा पर है। चूकि यह पालिस मौययुगदोनों पौत्रों, दशरथ और सम्प्रतिका क्रमशः गजा की अपनो विशेषता है-उसके साथ आई और होना स्वीकार किया है। पर वह जैन और बोद्ध उमौके साथ समाप्त होगई-इसलिये उक्त प्रतिमाअनुश्रनियोंके सवथा विपरीत पड़ता क्योंकि उनके खंडके मोयकालीन होनेमे कोई संदह नही रह अनुसार अशोकक बाद सीधा सम्प्रतिका राज्यकाल जाता है। यह प्रतिमा अशोकके शिल्पोंकी भांति श्रा जाता है । म्वीकृत गणनाके अनुमार अशोकका चूनारक पत्थरको है। उसपर आज भी चमकनेवाली मत्य २३२ ई० पू० में हुई और जैनगणना के अनु- यह पालिस काई मसालेकी पालिस नहीं है बल्कि मार वही संप्रतिके राज्याभिषेकका समय है। इस पत्थरका घोंटकर ही इतना चिकना और चमकदार प्रकार दोनों गणनाएं यहां आकर मिल जाती है। बना दिया गया है कि वह आज भी कांच जैसा कुछ विद्वानोंका मत है कि अशोकके बाद चमकता है। उक्त प्रतिमाका क्रमांक ८०३८ हे और साम्राज्यक दो टुकड़े हो गए थे। दशरथपूर्वका राजा यह २ फुट २।। इच उची है। यह सन १९३७ में हुआ और सम्प्रति पश्चिमीयाने अवन्ती का । पर विहार प्रान्तके कुमराहर गांव से प्राप्त की गई थी।
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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