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________________ २६२ अनेकान्त । वर्ष १० चन्द्रगुप्तका प्रधान अमात्य हुआ और उसने अर्थ- -काबुल, हेगत, कन्दहार और कलात-चन्द्रगुप्त शास्त्रकी रचना की। चन्द्रगुप्तने सारे भारत देशको को सौप दिय। इमप्रकार सीधे हिन्दुकुश तक चन्द्रसंगठित किया और नवीन शासनप्रणालीको बुनि. गुप्तका साम्राज्य विस्तृत हो गया। नंदोंका पूरा याद डाली। उसके दरबारम रहनवाले यूनानी दूत साम्राज्य पहले ही चन्द्रगुपके अधिकारमें आ चुका मेगास्थनीजने अपनी पुस्तक इडकामे तत्कालीन था। सुगष्ट में उसका राष्ट्रिक पुष्यगुप्त वैश्य शासनव्यवस्था, सैन्यसंघटन, रातिरिवाजों तथा उसकी ओरसे शासनकर रहा था । दक्षिणमें चन्द्रगुपकी जीवनचर्या आदिके सम्बंधमे विस्तृत कर्णाटक प्रान्तमें तो उसकी मृत्यु ही हुई थी। इम सुचनाएं दी है। वह पुस्तक यद्यपि नष्ट हो चुकी है प्रकार चन्द्रगुप्त सुसंगठित भारतका प्रथम सम्राट पर अन्य लेखकोंकी कृतिगमें उसक जा उद्धरण बना। इतना विस्तृत साम्राज्य तो मुगल औरंगजेबका मिलत है उनसे चन्द्रगुल और उसकी शासनव्यवस्था भी न था। आदिके सबंधमें श्रच्छो जानकारी प्राप्त हाती है। सधिको स्थायी बनाने के लिये चन्द्रगुप्त और सेल्यूकस निकाटोरकी चढ़ाई और हार सेल्यूकसके बीच वैवाहिक संबंध भी हुआ। यूनाना लेखक इस सम्बन्धक विषयमे स्पष्ट नहीं लिखत सिकन्दरकी मृत्यु ( ३२३ ई० पू०) के अनंतर किन्तु पौराणिक अनुश्रुति इसका समर्थन करती है।' उसके सेनापति आपसमें लड़ते भिड़ते रहे । उनमें चन्द्रगुप्तने भी भेंट में अपने ससुरको ५०० हाथी से अपने सभी प्रतिद्वन्द्वियोंके विरुद्ध सफल होकर दिये, यूनानियोंने जिनका उपयोग अपनी पिछली सेल्यूकस पश्चिमी और मध्य एशियाका सम्राट बन लड़ाइयोंमे किया। इसी समयसे भारतको राजगया और उसने सीरियाको अपनी राजधानी धानी पाटलिपुत्रमे यूनानियोंका एक दूत रहने लगा। बनाया। वह सीरियाका सम्राट् कहलाता था। चन्द्रगप्तके समय में मेगास्थनीज उस पदपर विजयी होनेके नाते उसने निकाटोर या विजेताकी अधिष्ठित था। उपधि प्रहण की थी। __ चन्द्रगुप्त मौर्य के सिक्के सिकन्दरके पैर पलटते ही भारतके जिन पश्चिमी __एलनकी ब्रिटिश म्यूजियमके भारतीय सिकोंकी प्रदेशोने चागपके नायकत्वमें स्वाधीनता प्राप्त कर मचीक दमर प्रकारके पचमार्क सिक्के जिनपर पांच ली थी और अब जो चन्द्रगुप्तके अखिल भारतीय चिन्ह मिलते हैं, मौर्यकालीन मिक्के है। ये मार साम्राज्यके अंग बन चुके थे, उन्हें फिर वापस उत्तर भारत और पाकिस्तानमें पेशावरसे मेदनीपुर अपने माम्राज्यमें मिलाने के लिये सेल्यूकसने लगभग नक प्राप्त होते हैं। इनमें ६०./. चांदी है जो अर्थ३०५ ई० पू० में बड़ी सेनाके साथ भारतपर चढ़ाई शास्त्र अनुसार कार्षापणकी तौल है। इन सिकों में कर दी। इधर चन्द्रगुप्त भी अब तक अच्छो तक अच्छी तरह से जिन सिकोपर पहाड़ी पर अर्धचन्द्र चिन्ह तरह जमचका था और सदा सावधान भी रहता था। अतिप य ही अकित है व अवश्य ही चन्द्रगुप्तक सिक्के है। नसकी विशाल और व्यवस्थित सनान यूनाना पालकी में प्राप्त चन्द्रगुप्तके महलक सेनाकं दिल दहला दिये और विजेतासेल्यूकस चन्द्रगुप्तके सामने विजित होकर आया। पीछे १. चन्द्रगप्तस्तस्य सुतः पौरसाधिपतेः सुताम् ।। दोनों पक्षों में संधि होगई और संधिको शतोंके सुलूवस्य तथोद्वारा गावनों बौद्धतत्पर। ॥ भविष्यअनुसार सेल्यकसने अपने साम्राज्य चार प्रान्त, पुराण २१६४३ । पेरोपिनीसेडी, एरिया, एखोमिया और गदरोसिया २ एलनः एश्यटडिया पृ० सा।
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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