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प्रकाश
उपसंहार
पुरातन जैन शिल्प का संक्षिप्त परिचय उपरोक्त पंक्तियों में कराया गया है। इससे हमें भली भांति ज्ञात हो जाता है कि पुरातन कालमें जैन संस्कृति भारत के कोने कोने में अपना प्रभाव जमाये हुये थी और जैनोंके लिये वह युग सम्मान एवं गौरवका
युग था ।
भारत के सभी सांस्कृतिक केन्द्रों का अभी पूर्ण अध्ययन नहीं हो पाया है और न उन स्थानों की
"प्रकाश"
( ले० - श्री जुगल किशोर जी कागजी )
अन्धकारमय
प्रकाशके अभाव में संसार एक देखने में आरहा है। जड़ पदार्थ स्वयं अन्धकारमय है अतः बिना किसी प्रकाशकी सहायता के प्रकाश
नहीं आते और जबतक किसी प्रकाशके संबंध मे नहीं तब तक अन्धकारमय हुए पड़े रहते हैं । और अन्धकार फैलाते रहते हैं
प्रकाशका सम्बन्ध मिलते ही फैला हुआ अन्धकार तुरन्त नष्ट होजाता है और पदार्थ स्पष्ट देखने में आजाते है
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पूर्णरूपेण खुदाई ही की जा सकी है। जैन केन्द्रों पर तो कुछ भी काम नहीं हुआ। सरकार के पास इतना द्रव्य नहीं कि वह सब काम अपने हाथमें सके जब तक कि जनता उससे सहयोग न करे। यदि वह कभी कुछ करती भी है तो जैन केन्द्रोंका नम्बर बहुत पीछे पड़ जाता है । यह तो जैन समाज के ध्यान देनेका विषय है कि वह अपने सांस्कृतिक केन्द्रों तथा पुराने ढोंकी खुदाई कराकर अपने प्राचीन गौरवको दुनियां के सन्मुख उपस्थित करे काश जैन समाज इस ओर ध्यान देता ।
श्राक्रान्तलोकमलिनीलमशेषमाशु, सूर्याशुभिन्नमिव शावंरमन्धकारम् ।
यह महिमा यह शक्ति उसकी है जो स्वयं स्पष्ट रीतिसे प्रकाशित है और अपने प्रकाशके द्वारा अन्य पदार्थों को भी प्रकाशित करदेता है ।
सूर्य, चन्द्रमा, तारागण, दीपक, मोमबत्ती, विजली श्रादिक पदार्थ स्पष्ट बता रहे हैं कि यह हमारा ही उपकार है कि तुम हमारीही सहायतासे
संसार में अपना मूल्य प्रकट करनेमें समर्थ हो सकेहो हो सकोगे और हो रहे हो ।
कांच की परख अन्य प्रकाशके द्वाराही की जाती है शीशेमें स्वयं प्रकाशकी शक्ति नहीं, प्रकाश से सहायता लेकर स्वयं प्रकाशमान दीखने लगता है प्रकाश लेने अथवा लेकर देनेकी शक्ति तो काँचमें मौजूद है परन्तु स्वयं प्रकाशित होनेकी अथवा दूसरोंको प्रकाशित करनेको शक्ति नहीं है ।
ज्ञानं यथ । त्वयि विभाति कृतावकाशम्, नैवं तथा हरिरादिषु नायकेषु । तेजो महामणिषु याति यथा महत्वम्, वं तु काचशकले किरणाकुलेऽपि ॥
विना बाह्य प्रकाशके अंधकार अवस्थामें सभी पदार्थोंका एकसा मूल्य "अंधकार" ही अंधकार अनुभव-गोचर होता है। चाहे सोना हो चाहे मिट्टी, चाहे मनुष्य हो चाहे विर्यष्च, चाहे कीड़ा हो या टिड्डी-कुछभी क्यों न हो सभी पदार्थ