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मनवाद विशेषणपदोंका यथार्थ स्पष्टीकरण और दोनों शंभुषोंमें उनकी तुलना करता हुश्रा प्रकट होना चाहिये। गटके में यह स्तोत्र बहत कुछ अशुद्ध लिखा हुआ हैं स-श, न-ण, ब-ब, जैसे अक्षरोंके प्रयोगका ठीक विवेक न करके बहुधा एकके स्थान पर दूसरा अक्षर लिखा गया है और भी व्याकरण सम्बन्धी कुछ प्रशद्धियां पाई गई हैं जिन्हें प्रायः लिखने तथा मम्पादनके समय यथा शक्ति. ठीक किया गया है। श्राशा है पाठकों को यह स्तोत्र रुचिकर होगा और वे इससे यथेष्ट लाभ उठायेंगे-सम्पादक]
(उपेन्द्र वनादयः) निगकृताऽशेष विपक्ष-वर्ग विभावितानेक सुधम-मार्गम् । निरंजन शान्तमनेकमेकं न पुण्यहीना विनमन्ति शम्भुम् ॥१॥ निरम्बरं नित्यमहं विमोहं प्रमाणनिष्णातमतिप्रणतम् । पुरत्रय-ध्वंसहुताशनाढ्य न पुण्यहीना विनमन्ति शम्भुम।।२।। युगादिदेवं पुरुषोत्तमोत्तमं पिंगद्य तित्रावृत-खप्रमाणम । . हैमद्य ति चन्द्रमरीचिशोभं न पुण्यहीना बिनमन्ति शम्भुम् ॥३। सदावदातापरवक्त्र शोभं शोभालयं तर वलयं विभायम् । सुराऽसुरप्रार्थितसिद्धिहेतु न पुण्यहीना बिनमन्तिशम्भुम् ॥४॥ वृषाश्रयं वृष्यविधानकायं वृष्यापहाध्यानममानबोधम् । वषेशवंद्य वृषभं सनातनं न पुण्यहीना बिनमन्ति शम्भुम् ।।५।। त्रिलोचनं चित्रतनु विदीश समस्तदेवात्मकमष्टर तिम् । दुरक्षरक्षतपाविधानं न पुण्यहीना विनमन्ति शम्भुम् ॥६॥ भुजंगसेव्यं भुवनत्रयेश जितान्तकं मन्मथमानघातम् । भव्यांबुजानीकविबोधनेनं न पुण्यहीना विनमन्ति शम्भुम ७ स्याद्वादविद्याविभवैकमूलं कुमार्गनिर्नाशनलोललीलम् । दक्षाध्वरध्वंसकर वरेण्यं न पुण्यहीन। विनमन्ति शम्भुम् ॥८॥ नगात्मजास्थानचिरन्तनष्ट लोकाप्रबासं भुवनकवासम् । गुणाष्टक व्यक्ति तकात्यकृत्यं न पुण्यहीना विनमन्ति शम्भुम् ।।६।।
(शार्दूलविक्रीडितम) भक्या ये प्रणमन्ति निर्मलधियः शम्भ भवाम्भोनिधेः । संततु मुनिरत्नकीतितपदां सिद्धि प्रांत्यद्भ ताम् । आदौ राज्यमनेकसौख्यनिचयं भुक्त्वा प्रदायार्थिने, नानारत्नधनानि दैन्यविसरे धूलीजलान्यादरात् ॥१०॥
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