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________________ किरण १] भगवान महावीर, जैनधर्म और भारत इत्यादि । इतना ही नहीं, वह हर एक नई बातको या आधुनिक भाषामें इस वैज्ञानिक तरीकोंको छोडहर संभावित पहलू-हर दृष्टिकोणसे देखनेकी कर अपना बड़ा ही नुकसान किया है। जब पश्चिमी सख्त ताकीद या हिदायत देता है । एव देश, देशोंने इसको अपनाकर अपनी हर तरफ उन्नति की, काल तथा व्यावहारिकताके अनुसार ही हमने इसे भगाकर अवनति की। आज जरूरत है उन्हें उपयोगमें लानेको कहता है ताकि कमसे इसे फिरसे जीवन और समाजके हर पहलूमें उचित कम गलती हो सके। किसी नई बातको जिसके एवं व्यावहारिकरूपसे अपनाने और काममें लाने बारेमें पूरी जानकारीकी जरूरत है उसे एक की-यदि हम सचमुच स्थायी और सुव्यवस्थितरूपसे बार सहसा मान लेने या एकतर्फा धारणा कोई भी उन्नति करना और करते जाना चाहते है तो। उसके बारेमे बना लेनेकी हानियों एवं कटु प्रभावों- जैनधर्मने धार्मिक विभिन्नताओं या मतभेदोंको से सचेत करता है तथा हर गंभीर प्रश्नको हर पहलू- कभी भी संघर्षणात्मक रूप नहीं दिया। हां, तात्विक से सोच विचार जॉचकर और अपनी हर शंकाएं या तार्किक खंडन मंडनका अवश्य व्यवहार यथासंभव निवारण करके ही स्वीकार करने या किया। इतना ही नहीं अपने अनुयायियोंको बराबर फिर आगे बढ़नेको कहता है। इसे ही हम "अने- यह कहता है कि हर एक धर्मका अनुशीलन,मनन कान्त” कहते है । आजका आधुनिक विज्ञान एवं मथन करना चाहिये और तब बुद्धि और तकका Science और इसके सारे कारवार मशीनपुर्जे व्यवहार करके जो कुछ ठीक जचे उसे मानना एवं इसी अनकान्तके व्यावहारिकरूप है जो अन्यथा स्वीकार करना चाहिये । तभी हम गलतियां कम-सेसंभव नहीं होसकते थे। एक मशीनका पुर्जा बनानेके कम करेंगे और जानकारी अधिकसे अधिक होगी लिए उसकी ड्राइंग (नकशा) कई तरफसे देखकर और इसतरह ही विश्वास या धारणा होगी वह भी । बाहरसे या बीचसे काटकर Sectional) बनाई अधक-से-अधिक सुदृढ एवं स्थायी होगी। यह स्थाजाती है तब उसका पूरा-पूरा Detail विवरण और यित्व एवं परिष्कृतपना किसी भी व्यक्ति या समाजानकारी प्राप्त होती है जिससे वह पुजा कारखानेमें जकी उन्नतिके लिए अत्यन्त जरूरी है। इस रीतिको ठीक-ठीक with preonsion बन सकता है। यही छोड़कर हमने जबसे एक दूसरेकी बातें जाननेकी बात और मभी कामोंके लिए भी है-कि किमी भी मनाही करदी और अलग-अलग रहने लगे तभीसे वस्तु या प्रश्नका या विचारणीय विषयका हर पहल फट वैर, विरोध और संघर्षणोंकी वृद्धि हुई और और दृष्टिकोण या हर तरफसे देखना और विचा- होती गई एवं हमारा दिन-ब-दिन मानसिक, शारीरना उसके विशद या अधिक-से-अधिक ठीक रिक एवं नैतिक हास होता गया और हमारा जानकारीके लिए अत्यन्त जरुरी है-इसके वगैर वैयक्तिक पतन होते-होते सामाजिक एवं राष्ट्रीय पतन जो भी जानकारी होगी वह सर्वागीण पूण, सही भी पर्णरूपसे होगया। इस मनोवृत्तिको दूर करके ही और दुरुस्त न होकर एकांगी और defective हम उन्नति कर सकते हैं और तभी हमारी सर्वाङ्गीण अपूण और विकृत या अधकचरी होगी। विज्ञान या सवतोमुखी विकास होसकता है अन्यथा नहीं। या वैज्ञानिक तरीकोंका जिस विषयमें भी उपयोग य द किसी तरह कुछ हुआ भी तो वह स्थायी' या किया जायगा वही तरतीबबार और अनेकान्तरूपी असली न होकर थोड़े समयके लिये और नकली ही होगा। तभी हमें वस्तुओंका सच्चा स्वरूप एव गुण होगा। हमें धार्मिक खंडन-मंडनको केवल जवानी ठीक-ठीक मालूम होसकेगे। हमने इसी अनेकांत जमा-खर्च ही तक सीमित रखना चाहिये उसे संघ
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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