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अनेकान्त
[वष १०
की एक विशाल परिकरवाली धातुप्रतिमा ही मूलनायकरूपमें प्रतिष्ठित है। इसी मन्दिरमें अभी विद्यमान है।
कुछ वर्ष प्राप्त एक विशाल सपरिकर सुन्दर महावीर ___ उपलब्ध सबसे प्राचीन धातुमूर्तियोंमें बड़ौदा प्रतिमा व २ बड़े पीतलके घंट सं० १२३८ के राज्य के पुरातत्व विभागकी ३ एवं महूटीके कोट अवलोकनमें आये है। पार्क मदिरके महन्तके पास १, कुल ४ प्रतिमाए है।
___सबसे बड़ी धातु प्रतिमायेंजैन चित्रकलाके ममज्ञ श्रीयुत साराभाई नबाबके
__ आबूके निकटवर्ती अचलगढ़के श्वेताम्बर जैन लेखानुसार इनमेंसे एक तो ई० की प्रथम शताब्दीकी
मन्दिरोंमें धातुकी ५१ विशल मतियें हैं जिनमें से इसपर लेख भी खदा है जिसमें कल्पसूत्रोक्त चौमख मलनायककी बड़ी मर्तियोंका वजन प्रत्येक वैरिंगणका उल्लेख है। डा० हीरानंदजी शास्त्रोने इसे
का ५२० मनका कहा जाता है। समस्त प्रतिमाओं बौद्ध प्रतिमा १७ वीं सदीकी लिखा था जिसका
का वजन १४४० या १४४४ मन कहा जाता है। प्रतिवाद ब्लौकके साथ जैनसत्यप्रकाश व.५ अ.
मुनि जयंतविजयजीके अनुमार १२० मनवाली ५-६ में प्रकाशित है।
मतिये तो कुभलमेर, डुगरपुरादिसे आई है अतः वैसे गप्तकालकी कई जैन धातु मतिएं उपलब्ध उनका वजन तो पका तोलका (८० रु. सेर ) है है जिनमें एक बीकानेरके चिन्तामणजोक मांदरम है। पर १४४४ मनकी कहावत है। वह गुजरातीवजन इसी मंदिरके भूमिगृहम मीरोहोकी ५०५० धातु (४० रु० सेर ) की होना संभव है। मेरी जानकारी स जिनमें ७-८ शताब्दोकी भी धातुमति हैं। मे इतने वजन वालो धातु मतिये अन्यत्र नहीं है । सोरोही राज्य के बंसतपुरसे प्राप्त व वत्तमानमें पिंड- वैसे सरिकर बड़ी धातु मर्तियाँ श्रावूके मंदिरमें भी वाड़ामें अवस्थित प्राचीन धातुमतियोमे ८ मति ८वीं मिलती है। शतीकी है। इनमेस एक पर सं०७४४ लेख भी ह लहाडियाजीका यह लिखना मही है कि द्रव्यके जिसके सम्बन्धमे मुनि कल्याणविजयजीका लेख
लोभवश इन प्रतिमाओंको उठा लेजानेवाले बहत नागरी प्रचारिणी मभाके त्रैमासिक पत्रक नवीन मिलते हैं। इन पीतलकी प्रतिमाओंको सोनेकी मानसंस्करण भा. १८ अं.२ मे प्रकाशित है।
कर पुराने जमानेमे इनपर भी अत्याचार गुजारा गया बड़ौदा आदिकी प्राचीन धातु मतियोंके सम्बन्ध
था। इसके कतिपय ऐतिहासिक उल्लेख पाठकोंको में भाई नबाबका एक लेख भारतीयविद्या व.१ अं.
जानकारीके लिए यहां दिये जा रहे हैं। २व जैनसत्यप्रकाश व.६ अ.११-१२ में प्रकाशित है, जिज्ञासु उन्हें पढ़कर विशेष जानकारी प्राप्त कर
१. संवत् १६३५ मे तुरसमखानने सीरोहो सकते हैं।
लूटी तब वहाँके जैन मंदिरोंकी १०५० धातुआठवीं नवीं सदीकी कई लेखवाली प्रतिमाएं उन्हें गलाकर मोना निकलवानेके मति हमारे अवलोकनमे भी आई है पर उनमें उद्देश्यसे साथ ले ली और सम्राट अकभरको संवतका स्पष्ट उल्लेख नहीं। केवल लिपि व उनको भेंट किया। दूरदर्शी सम्राटने उन्हें एक कमरे कलाको पिसे हो निर्णय किया गया है। १० वीं में बांध करके रखदेनेकी आज्ञा देदी। फलतः कई सदीकी कई संवतोल्लेखवाली प्रतिमाये भी प्राप्त महीने वे वहीं पड़ी रहीं। श्रावक लोक उन्हें प्राप्त हुई हैं। अभी पालीके शाँतिनाथमन्दिरमें सं०६४४ करनेका विचार करते रहे पर सम्राटके पास जाकर की धातुप्रतिमा देखने में आई एवं गुप्तकालकी एक ले आनेके आत्मविश्वास व साहसकी कमी थी। बड़ी प्रतिमा श्रीभालनगरके महावीरजिनालयके अंतमें बीकानेरके मंत्रीश्वर कमचंद्रने महाराजा