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________________ जैन धातु-मूर्तियों की प्राचीनता (ले० श्रीअगरचन्द नाहटा ) वीरवाणीके गत १७-१८३ अंकमें श्रीकमलेश- समयसुन्दर महोपाध्यायके घंघाणी तीर्थ के स्तवनाकुमार लुहाडियाका 'धातुओंकी मूर्तियोंकी दुर्दशा शी- नुमार मं. १६६२ के जे. सु. ११ को घंघाणी स्थानमें षेक लेख प्रकाशित हुआ है । उक्त लेखकी अन्य बातों दुधेला तालाबके खोखरदेहरेके भूमिगृहसे ६५ मूर्तिये पर मुझे विचार नहीं करना है केवल धातुकी मूर्तियों प्राप्त हुई थीं जिनमें तीर्थ कर प्रतिमा ४६ थीं। इनमें की प्राचीनताके सम्बन्धमें उन्होंने जो कुछ उल्लेख मूलनायक पद्मप्रभस्वामीकी मूर्तिपर सम्राट सम्प्रति किया है उसीपर यहां विशेष प्रकाश डाला जारहा ने वीरनिर्वाण स. २०३ के माह सुदी रविवारके है। आपका लिखना यह है कि "आप भारतवर्षको आर्यसहस्तिसूरि प्रतिष्ठित करानेका लेख खुदा था। एक एक मूर्तिका अवलोकन कीजिये आपको कहीं भी दूसरी उल्लेखनीय प्रतिमा अर्जुन नामक श्वेतसोने संवत १६००-१७०० से पहिले (की) कोई धातुकी की पाथ्वनाथ प्रतिमा थी जिसे सम्राट चंद्रगुप्तने मूर्ति दृष्टिगोचर नहीं होगी। यह धातुकी मूर्तियाँ बनावाई थी जिसका उल्लेख इन शब्दों में किया अभी २००-३०० वर्षसे ही प्रतिष्ठित होने लगी है।" गया हैयद्यपि धातुसे यहाँ उनका प्रधान आशय चांदो एवं घीसय तीडोतर वीरथी संवतसबल पंडूर । मोनेको मूर्तियोंसे है पर आगे चलकर पीतलको भी पद्मप्रभप्रतिष्ठिया, आर्यसुहस्तीसूर । . आपने उसमे सम्मिलित कर लिया है। जहां तक महातणी शुक्ल अष्ठमी, शुभ महूर्त रविवार । चांदीकी मतियोंका सम्बन्ध है मेरी जानकारीमे लिपि प्रतिमापूठं लिखी, से यांची सुविचार । बहुत कम ही मर्तियें बनी हैं और वे अधिक प्राचीन मुलनायक धीजोवलि, सकल सकोमल देहोजी । नहीं हैं एवं निखालस सानेकी मूर्तिये तो बहुत ही कम प्रतिमा श्वेतसोनातणा, मोटो अचरिज्य एहोजी । होंगी पर पीतल व सोने आदि सर्व या पंच धातुओं अरजनपास जुबारिये, अरजुनी पुरि सिणगारोजी के सम्मिश्रणसे बनी धातुको मूर्तियें ही हजारोंकी तीर्थकर तेवीसमो, मुक्तितणो दातारजी ॥ संख्यामें प्राप्त है एवं उनकी प्राचीनता बहुत अधिक चंद्रगुप्त राजा हुओ, चाणाक्य दिरायो राजोजी । है। परवर्ती उल्लेखोंको सत्य माना जाय तब तो तिण यह बिब भराबियो, सार्या प्रास्म काजोजी॥ सोनेकी मूर्ति बहुत पुराने समयमें बनती थी, सिद्ध (विशेष जानने के लिये देखे प्राचीन जैन इतिहास भा. होता है पर ऐतिहासिक दृष्टिसे प्राप्त मूर्तियोंको । ध्यानमे रखकर विचार किया जाय तो भी धातकी ८, मुनि ज्ञानसुन्दरजी प्रकाशित) मूतिये २ हजार वर्ष पुरानी अवश्य हैं। उपयुक्त वणनसे स्पष्ट है कि सोनेकी धातु प्रतिमा सतरहवीं शतीके श्वेताम्बर विद्वान कविवर करीब २२५० वर्ष पूर्वसे बनती प्रारही है पर खेद है . १ कविवर समयसुन्दरने शत्रुन्जयरासमें लिखा है कि मुसलिम साम्राज्यके अशान्त वातावरणके कारण 'चैत्य करायो रूपातणो, सोना ने विब सारो जी। ये प्रतिमाएं पुनः कहीं भंडारस्थ करदी गई है जिनका अर्थात् भरतक अष्टम वंशजने सोनेका विंब बनवाया था। प्रभो पता नहीं है। वर्तमानमें घंघाणीमें सं०६३७
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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