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किरण ७८]
अहिंसा और सत्याग्रह लिया जाय तो यह तो आत्महत्यावाली निराशता है इसका ध्यान हरसमय रखना आवश्यक है । आत्महुई । हाँ, देश, काल, समय, परिस्थिति आवश्यकता वत् ववभूतानि “यही तथ्य है। यदि चीटी काटनेसे साधन एवं और सभी संबन्धित बातोंका व्यावहारिक हमें तकलीफ होती हो तो हमें यह समझना चाहिए ध्यान रखना हर हालतमें जरूरी है । इसीमें त्रुटि कि दूसरेको भी तकलीफ होसकती है। यदि हम मारा होनेसे या कभी रह जानेसे कोई काम नहीं हो पाता जाना ठीक नहीं समझते तो दूसरेको मारना निन्द्य संसारके सारे संघर्षोंका भी यही मूल कारण है। है। यदि हम अपना एक पैसा फिजूल किसी द्वारा आजसे दो ढाई हजार वर्ष पहलेक बने आचरण लिया जाता हश्रा पसन्द नहीं करते तो दसरोंका भो एवं व्यवहारों या रीति-रिवाजोंको हम अब भी उसी इसतरह पैसा हमारेलिए लेना चोरीअसत्य एवं हिंसा तरह पकड़े हुए और जकड़े हुए है जिसका कोई हद्दा है। अन्याय, अनर्थ, अनीति या अत्याचार चाहे वह हिसाब नहीं। जैसे बहुत दिनों तक गदड़का व्यव.
व्यक्तिद्वारा हो समाजद्वारा हो या सरकारद्वारा हार करनेवाला भिक्षक अच्छा कपड़ा देने पर भा हो सहन करना कायरता या कमजोरी ही है। इसका उसे जल्दी या आसानीसे नहीं त्यागता वही हालत यथाशक्ति विरोध करना ही अहिंसा एवं सत्याग्रह है हमारी होरही है। मिथ्या मोह माया एवं भावुक महात्मा गाँधीकाभी मतलब इसी अहिंसा एवं सत्याभ्रममें हम दिशासे विदिशा होजाते है फिर दुनिया प्रहसे है। पूर्ण क्षमाभाव या पूर्ण अहिंसक तो पूर्ण भरको दोष देने लगते है यह ठीक नहीं अहिंसा और
ज्ञानी ही होसकता है। परन्तु सांसारिक अवस्थाओं में सत्याग्रह हमे ठीक सच्चा मागे प्रदशित करत ह अपनेसे जितना निभ सके उतना तो सभीको लोक-कल्याणकी भावनाकी कसौटीपर किसीभी समय
निभाना सुख शान्तिको बढ़ाने बाला ही है। कसकर किसी सत्याऽसत्यका निर्णय आसानीसे
इसीसे व्यक्तिका, देशका एवं भनवमात्रका कल्याण किया जासकता है यदि मनमें मैल नहो। वास्तवमें
हो सकता है। भावोंको शुद्धता ही अहिंसा और अशुद्धता हो हिंसा