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________________ २२६ अनेकान्त [वष १० सिद्धान्त मनुष्यको ऊपर उठाता है। उन्होंने बताया जनताके समक्ष रखनेकी। आज हमारे मन्दिर तथा कि अहिंसा ही सत्य है और संसारका कल्याण तीर्थस्थान भी हैं, हम उनकी पूजा-भक्ति भी करते हैही अहिंसासे हो सकता है। ___ मंदिरोंमें हमारे तीर्थंकर भी है जो कि हम सबकी आत्माओंको निर्मल करते है । परन्तु यदि किसी अहिंसाके सर्वप्रथम प्रचारक जैन तीर्थकर । वस्तुकी कमी है तो वह है हमारा अपना प्रमाद । परन्तु आजके संसारमें सबका यही मत है कि अभी हाल ही जो समस्त भारतवर्षीय विभिन्न अहिंसाके सिद्धान्तका महात्मा बुद्धने आजसे २५०० धर्म सम्बन्धी कान्फ्रन्स हई उसके अन्दर मैं ही एक वर्ष पूर्व सर्व प्रथम प्रचार किया। किसी इतिहासके ऐसा व्यक्ति था जिसने भगवान महावीरका नाम जाननवालेको इस बातका बिलकुल भी ज्ञान नहीं है लिया और यह नाम वहांके अधिकांश व्यक्तियोंके कि भगवान बुद्धसे लाखों तथा करोड़ों वर्ष पूर्व एक लिये नया-सा ही था। नहीं बल्कि अनेक जैन तीर्थंकरोंने इस अहिंसा सिद्धान्तका प्रचार किया। परन्तु यह सब बातें भारतमें भी जैनधर्मके ज्ञानकी कमी संसारके ज्ञानमें नहीं है। उनको इस बातका बिल. आज हमारे स्कूलोंमें कालिजोंमें विश्वविद्यालयों कुल भी ज्ञान नहीं है कि जैनधर्म बद्धधर्मसे करोड़ों में जैनधर्मका बिल्कुल भी नाम नहीं है। यदि हम वर्ष पूर्वका धर्म है । वास्तवमे इसके लिए उनका कुछ यह चाहते है कि हम जैनधर्मको विश्वमें फैलायें तो दोष भी नहीं है। जोनियोंने इस विषयमें कुछ भी हमको पूर्ण रूपसे सठिन होना पड़ेगा। परिश्रम नहीं किया है । इतिहासके विषयमें तो जैनधमका अस्तित्व ही कुछ नहीं है। जैनजनगणनापर जोर जैनधर्म भारतका एक प्राचीन धर्म है आजके स्वतंत्र भारतमे मर्व प्रथम पहली जनमैंने अपने मित्र श्रीछोटेलालजी जैन कलकत्ते । गणना १६५१में होनी है। आप सबका कर्तव्य है कि आप सब उसमें अपनेको तथा अन्य समस्त व्यक्तियों को जो वालोंके सहयोगसे कितने ही प्राचीन जनक्षेत्रा व जैनधर्मको मानते हों जैन लिखावें। आपका कर्तव्य शिलालेखोंके Slides तैयार करके इस बातको प्रमा यह नहीं है कि आप अपनको दिगम्बर, श्वेताम्बर णित करनेके प्रयत्न किये है कि जैनधम एक प्रचीनधर्म या स्थानकवासी जैनके भेदभावको डाले, परन्तु है जिसने भारतकी संस्कृतिको बहुत कुछ दिया है। आपका कर्तव्य यह है कि आप अपनेको विश्वधर्मपरन्तु आज अभी तक संसारकी दृष्टिमें जैनधर्मका जैन-धर्म-का अनुयायी समझे। आप अपनेको एक महत्व नहीं दर्शाया गया है, उनके विचारमे यह एक इतिहासका छात्र समझे। मेरी आपसे यह अपील २० लाख मनुष्योंका छोटा-सा धर्म है। परन्तु यदि है कि आप इस कार्यमें देहलीको प्रमुख जैन सं. आप सोचेंगे तो आप इस निष्कर्षपर पहुँचेंगे कि स्थाओं तथा देहलीसे बाहरकी प्रमुख जैन संस्थाओं आपका जैनधर्म एक विशाल धर्म है और आप जैन से लाभ उठाएँ और उनको इस बात्तके लिये प्रेरित करें नातिको वह महान् धर्म अपने पूर्वजोंस मिला है। कि वह आपसी भेदभावको मिटाकर सच्च जैनअहिसा धमके वास्तविक रूपको संसारमें चमका दें। आपका पर जैनियोंका copyright सम्पूर्ण अधिकार है- यह कतव्य है कि आप जैनधर्मको स्वतन्त्र भारतका परन्तु हमारा समस्त साहित्य आज नागरी, सस्कृत एक महान धर्म प्रदर्शित करें। श्राजका भारत राज्य जैनितथा कनाड़ी भाषामें है आवश्यकता हे उस साहित्य योंका गढ़ है । भारतके प्रत्येक कोने-कोनमें जैन जाति को संसारकी समस्त भाषाओंमें प्रकाशित करनेकी और व्याप्त है। यदि आप वास्तव में जनवम व जैनजाति
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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