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________________ २२० अनेकान्त [वर्ष १० साहाय्य मिलना चाहिए था वह भी नहीं मिला। कोठियाजीकी प्रतिभा और पं. परमानन्दजोकी अन्वेफिर भी वह प्रसन्न है और कायमें रत है। उस षक अभिरुचि चमक उठी है। भगवान् । निस्स्वाथसेवी विद्याव्यसनी नररत्नका नाम है- प्रार्थना है कि मुख्तार सा० शतायु हों और यह जुगलकिशोरजी मुख्तार | उनका सान्निध्य पाकर त्रिमूर्ति जिनवाणीकी सेवामें सदा संलग्न रहे। ब्रह्मचर्य (प्रवक्ता श्री १०५ पूज्य तुल्लक गणेशप्रसादजी वर्णी न्यायाचार्य) [सागर-चातुर्मासमें दिया गया वर्णोजीका एक दूसरा प्रवचन ] 'सर्व पदा हस्तिपदे निमग्नाः' हाथीके पैरमें सबके शुक्लपक्षमें ब्रह्मचर्यका नियम ले चुका था । अनजापैर समा सकते है। ब्रह्मचयेके निरूपणसे ही सबका नमें हम दोनोंका विवाह होगया। मैंने उससे निरूपण हो जाता है। 'ब्रह्मचर्य' इस नामसे ही आ- सेवनका अभिप्राय प्रकट किया तब उमने कहा कि नन्द आता है तब उसके पालन करने में क्यों नहीं मेरे तो कृष्णपदमें ब्रह्मचर्यका नियम है। मैं शान्त रह आवेगा। जो अखण्ड असि-धारा-व्रत धारण करता गया। शुक्लपक्षमें स्त्रीने अपना अभिप्राय प्रकट है उसके प्रभावका क्या कहना है ? एक स्त्री कुएपर किया तब मैंने कहा कि मैं शुक्लपक्षमें ब्रह्मचयमे पानी भरने गई । उससे जीवानी नीचे गिर गई। रहनेका नियम कर चका हूँ। स्त्री शान्त रह गई। बेवारी घबड़ा गई । एक साधक पास पहुंचो, हम दोनों प्रारम्भसे ही साथ-साथ रहते है, पर बोली-मेरा यह पाप कसे छूटेगा ? माधने कहा किसीके हृदयमें विकार उत्पन्न नहीं होता । यही कि-"यदि तुम्हारे यहाँ अमिधारा-व्रत धारण असिधारा-व्रत है।' असिधारा-व्रतके प्रभावसे उम करनेवाले स्त्री-पुरुष भोजन कर जायें तो तेरा स्त्रीका काला चन्देवा सफेद होगया। इसमें आश्चयह पाप छूट जाये।" 'अमिधारा-व्रत है क्या ?'- यकी क्या बात है ? अरे ! उसमे ती संसारकी स्त्रीने पूछा। यह उसीस पूछ लेना, पर इतना मै अनन्त कालिमा नष्ट हो मकती है। जिस समय बताए देता हूँ कि जिस दिन तेरा पाप छूट जायगा आपको ब्रह्मचयका रसास्वाद हो जायगा उस समय उस दिन तेरे चोकेका चन्देवा कालेसे सफेद होजाय- आपका आनन्द शब्दों द्वारा नहीं कहा जा सकेगा। गा। उम स्त्रीने अच्छे-अच्छे साधुओंको भोजन यह, जिसे कि आप आनन्द समझते है, अानन्द कराया, पर चन्देवा कालेसे सफेद नहीं हुआ। बीम वर्ष बाद दो स्त्री-पुरुषोंको उमने भोजन कराया पर आप उसमें इतने आसक्त हो रहे है कि कुछ जिससे उसका चन्देवा मफेद होगया। उसने कहते नहीं बनता। पटियां पाड़ ली और मुह पर या आपके असिधारा-व्रत है ? उन्होंने तेल चपड़ लिया, बस मुन्दरता बढ़ गई । अरे ! कहा 'हाँ' । उसने पूछा- "असिधारा-व्रत जिससे सन्दरता बढ़ती है वह तो तुम्हारे पास है क्या कहलाता है ?" तब उन्होंने कहा-कि 'यह ही नहीं। आप लोग विषयको रोटी-भाजी समझ रहे लड़की, जो आज मेरी स्त्री है, बाल्य अवस्था है, कुछ तो विवेक रखिये। मैं यह नहीं कहता कि आप में किसी आयिकाके पास कृष्णपक्षमें ब्रह्मचयका घर-द्वार छोड़कर बाबा बन जाओ। मेरे कहनेका नियम ले चकी थी और मैं भी एक मनिराजके पास अभिप्राय इतना ही है कि भाप स्वस्त्रीमें संतोष
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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