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________________ किरण ६] स्याद्वाद २०४ शाश्वत और अशाश्वतवाले प्रश्नको विचारिए- (४) क्या लोक शाश्वत और अशाश्वत दोनों रूप (१) क्या लोक शाश्वत है ? हाँ, लोक शाश्वत नहीं है ? आखिर उमका पूर्ण रूप क्या है ? हाँ, लो है । द्रव्योंकी संख्याकी दृष्टिसे, अर्थात् जितने सत् कका पूर्ण रूप अवक्तव्य है. नहीं कहा जासकता। कोई इसमें हैं उनमेंका एक भो सत् कम नहीं हो सकता शब्द ऐसा नहीं जो एक-साथ शाश्वत और अशा और न उनमें किसी नये सत्की वृद्धि ही हो सकती श्वत इन दोनों स्वरूपोंको तथा उसमें विद्यमान है। न एक सत दूसरेमें विलीन ही होसकता है। कभी अन्य अनन्त धर्मों को युगपत् कह सके । अतः शब्दभो ऐसा समय नहीं आ सकता जो इसके अंगभूत की असामध्येके कारण जगतका पूर्ण रूप अवक्तव्य द्रव्योंका लोप होजाय या वे समाप्त होजायँ । है, अनुभय है, वचनातीत है। (२) क्या लोक अशाश्वत है ? हॉ, लोक अशा- इस निरूपणमें आप देखेंगे कि वस्तुका पूर्ण रूप श्वत है, अंगभूत द्रव्योंके प्रतिक्षणभावि परिणमा- वचनोंके अगोचर है, अनिर्वचनीय या अवक्तव्य की दृष्टिमे, अर्थात् जितने सत् है वे प्रतिक्षण सदृश है। यह चौथा उत्तर वस्तुके पूर्ण रूपको युगपत् या विसदृश परिणमन करते रहते हैं। इसमें दो कहनेकी दृष्टिसे है। पर वही जगत् शाश्वत कहा क्षण तक ठहरनेवाला कोई परिणमन नहीं है । जो जाता है द्रव्यदृष्टिसे, अशाश्वत कहा जाता है हमें अनेक क्षण ठहरनेवाला परिणमन दिखाई देता पर्यायष्टिसे । इस तरह मूलतः चौथा, पहला है वह प्रतिक्षणभावो सदृश परिणमनका स्थूल दृष्टि- और दसरा ये तीन ही प्रश्न मौलिक हैं। तीसरा से अवलोकनमात्र है। इस तरह सतत परिवर्तनशील उभयरूपताका प्रश्न तो प्रथम और द्वितीयके संयोगसंयाग-वियोगोंकी दृष्टिसे विचार कीजिए तो लोक रूप है । अब आप विचारें कि संजयने जब लोकके अशाश्वत है, अनित्य है, प्रतिक्षण परिवर्तित है। शाश्वत और अशाश्वत आदिके बारेमें स्पष्ट कह (३) क्या लोक शाश्वत और अशाश्वत दोनों दिया कि मैं जानता होऊँ तो बताऊँ और बुद्धने रूप है ? हॉ, क्रमशः उपर्युक्त दोनों दृष्टियोंसे - कह दिया कि इनके चक्करमें न पड़ो, इसका जानना विचार कीजिए तो लोक शाश्वत भी है (द्रव्यदृष्टिसे) उपयोगो नहीं तब महावीरने उन प्रश्नोंका वस्तुअशाश्वत भी है (पयोयदृष्टिसे)। दोनों दृष्टिकोणों- स्थितिके अनुसार यथार्थ उत्तर दिया और शिष्याको क्रमशः प्रयुक्त करनेपर और उन दोनोंपर स्थूल की जिज्ञासाका समाधानकरउनकोबौद्धिक दीनतासे दृष्टिसे विचार करनेपर जगत् उभयरूप ही प्रतिभा- प्राण दिया। इन प्रश्नोंका स्वरूप इस प्रकार हैसत होता है। प्रश्न संजय महावीर १. क्या लोक शाश्वत है? मैं जानता होऊ इसका जानना हाँ, लोक द्रव्यदृष्टिसे शा तो बताऊँ अनुपयोगी है श्वत है, इसके किसी भी सत्का (अनिचय, विक्षेप) (अव्याकृत, अकथनीय) सर्वथा नाश नहीं होता। २. क्या लोक अशाश्वत है ? ___ हाँ, लोक अपने प्रतिक्षणभावी परिवर्तनोंकी दृष्टिसे अशाश्वत है, कोई भी पदार्थ दो क्षण स्थायी नहीं। ३. क्या लोक शाश्वत और हाँ, दोनों दृष्टिकोणोंसे क्रअशाश्वत है ? मशः विचार करनेपर लोकको
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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