SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त [वर्ष १० भानुकोतिदेवाः, तत् शिप्य मण्डलाचार्य श्रीकुमार- तृतीय पुत्र चिरंजीवी मालिवाहणु, चतुर्थ पुत्र चिरंजीमनदेवाः, तदाम्नामे अग्रोतकान्वय गोइलगोत्रे स्वदेश- वी धर्मदाम, पंचम पुत्रचिरंजीवी अनन्तदास । चौधरी परदेश विख्यातमानु चौधरीछाजू तयोः पुत्र (r:) नान दुतीय पुत्र चौधरीभवानीदास, तस्य भार्या साध्वी पंच मेरुवत्पंच ५, प्रथम पुत्रु अनेकदानदाइकु माणिकही। चौधरीनरसिंघ दुतीय पुत्र चौधरी कुलिचंदु । चौधरीहाल्हा १, द्वितीयपुत्र चौधरी बूढणु २, तृतीयपुत्र चौधरी नरसिंघ तृतीयःपुत्र चौधरी सहणपालु, तम्य भाचौधरी नरपाल ३, चतुर्थपुत्र चौधरी नरामघ, पचम- द्विी, प्रथम भायो माध्वी गाल्हाही, दुतीय भायो मापुत्र चौधरी भोजा ५ चौधरी नरसिंह भार्या शीलतोय ध्वीसमाही, पुत्र त्रयं, प्रथम पुत्र चि.सुषमलु, तस्य भार्या तरंगिणी साध्वी मदनाही, तयोः पुत्रत्रयं, तत्र प्रथम । साध्वी पोल्हणही, दुतीय पुत्र चि० पहाड़मल, तृतीय पुत्र चौधरी नानू भार्या साध्वी प्रोढरही, तयो पुत्रद्वौ, पुत्र चि० जसमलु । एतेषां मध्ये साधु नानृसुत चौधरी प्रथम पुत्र चौधरी अनेक दान दाइकु चौधरी रायमल्ल रायमलु, तेन इदं पार्श्वनाथमहाकाव्यं कारितमिति तस्य भार्या साध्वीद्वौ, प्रथममायो माध्वी ऊधाही, मंकोडीकरचरणं, उगगीवा अहोमुहादिट्ठी। जं सुहापर्वलेहो, तं मुहपावेउय तुम्ह दुजणऊ? ||॥ पुत्र चिरंजीवी अमीचंदु, तस्य भार्या माध्वी जेटमलही, चौधरी रायमल दुतीय पुत्र चिरंजीवी उमिन्धु, ममामिति । शुभंभवतु । किसके विषय में क्या जानता हूँ ? [ ले श्री ला० जुगलकिशोर जी कागजी ] - ::१. में पंचपरमेष्ठीक विषयमें क्या जानता हूँ? प्रवृनिमे स्वयं लगे हैं और अन्यको भी अपनी श्रीअरहंत सिद्ध, प्राचार्य, उपाध्याय तथा सर्व शान्तमुद्राद्वारा उमी मार्गका साक्षात संकेत कर माधु ये पंच परमेष्ठी हैं। ये पांचों ही परम इष्ट हैं। रहे है । इसी कारण दुःखोंसे बचनेका एक मात्र उपाय ये अज्ञानरूपी परिणतिको रोककर कर्मबंधनसे मुक्त पंचपरमष्ठीका ही अनुकरण है। उन्हींका दर्शन व होगए हैं तथा हो रहे हैं। पूर्णसुखी होगए है तथा ध्यान मुलभ है, साध्य है, इष्ट है, कर्मबन्धनसे पूर्णसुग्वी होनेके मन्मुख हैं। ये पांचों ही प्रत्येक रोकनेवाला है। अरहत व सिद्ध भगवान पूर्ण रीतिप्राणीको सुख प्राप्त करनेके लिये एक आदश-मार्ग में अपने विषयमे मब कुछ जानते हैं और परके दर्शानेवाले हैं। इनकी यथार्थ प्रवृत्ति होनेके कारण विषयमें भी सब कुछ जानते हैं। इसी कारण पूर्ण म्मरण, वन्दन, पूजन और दशन सभी प्राणियोंके मुग्वी हैं। उनके सुखका कभी विनाश नहीं होगा। लिये यथाथ प्रवृत्तिकी ओर ही आचरण कराता है। २. मैं अपने विषयमें क्या जानता हूँ? यथार्थ प्रवृत्तिही सत्य है, सुग्च है। अतएव ये मै हूँ। मैं जीवित हूँ। मैं जीवित ही रहूँगा । संसारके बंधनों व दुःखोंसे भयभीत होकर यथार्थकी मेरा मम्बन्ध इस शरीरसे कुछ समय पर्यन्त ही
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy