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________________ १८० अनेकान्त [वर्षे १० - - जो उसकी प्रकृतिके अनुकूल पड़े तो वह जिन्दा रह नियोंके अनुसार अथवा बातावरण जलवायु संगति सकता है या अस्वस्थतासे निकल कर स्वास्थ्य लाभ खान-पान वगैरहके अनुसार होती हैं। जैसे कि रमाकर सकता है। यनोंमें एक दूसरेके साथ मिलने-मिलानेपर होती किसीकी सौ वर्गणाओंमेंसे यदि यह मान लिया है। फर्क केवल इतना ही है कि एकको हम जीवित रूपमें हाड़, मांस, खून वगैरह करके देखते और जाय कि पूर्ण स्वास्थ्यके लिए कम-से-कम ७५ जानते हैं जबकि दूसरेको निर्जीव ममझते और मानते वर्गणाओंकी समानता स्थानीय वातावरणकी वगणाओंके साथ होना जरूरी है तो ऐसा होने पर हैं । परन्तु मूलभूत धातुएं (clements)सभीमें वे ही हैं। इन्हीं मलभत धातु ओंके सम्मिश्रणके जेरेअसर वह व्यक्ति शक्तिशाली स्वास्थ्यवाला होगा जब कि (प्रभावके अंतर्गत) बेजान(inorganic and inaniइससे कम होने पर उसपर बीमारियोंका दौरा imate) वस्तुएं भी हैं और जानदार(organic and होगा । बीमारियां भी वर्गणाओंके अनुरूप ही animate) वस्तुएं भी है। हाँ, अधितर जानदार होंगी । फिर यदि यह मान लिया जाय कि उस वस्तुओंकी वर्गणाओकी बनावट अधिक उलझनोंसे वातावरण में केवल जीवित मात्र रहने के लिए कम-से पूर्ण एवं कम्प्लेक्स (complex) होती है बनिस्वत कम पचास या पचास फी सदी वगणााका बेजान (ILOganic) वस्तुओं (substances) के। समानता आवश्यक है तब यदि इमक ऊपर समा- इसलिये पारम्परिक क्रिया-प्रक्रिया (action and नता हुई तब तक तो वह जीता रहेगा और जहां reaction) का भी उमी तरह गूढ या कम्प्लेक्म इस संख्यासे कमी हुई कि तत्काल उसकी मृत्यु (complex) होना स्वाभाविक है। फल (effect) हो जायगी । दवाओं या उपयुक्त उपचारसे अथवा भी उसी तरहका होता है । हरएक प्रकृतिकी वगबातावरण या स्थानके परिवर्तन द्वारा समान वर्ग- णाओंकी बनावट और उनका अपना गुट्ट अलग णाओंकी संख्यामें काफी वृद्धि होसकती है और होता है । जैस कोध उत्पन्न करनेवालो वर्गणाओंकी होती है और इनका असर हम नित्य प्रत्यक्ष बनावट एक तरहकी होगी, लोभकी एक तरहकी और देखते है। कुशीलकी दूसरे तरहकी। इत्यादि । इसी तरह या इसके उलटा होनेस विपरीत बात अच्छे गुणोंके लिये भी समझना चाहिये । एक गुण भी हो सकती है। यही बात मानवके पूर जीवन या औगणके लिये एक ही तरह की बनावटकी पर्यन्त होती रहती है। कहींका वातावरण या जल- वर्गणा हर शरीर में हर जगह होंगी। जैसे गंधककी वायु किसीके लिये लाभकर और कहींका हानिकर तेजाबकी बनावट सभी जगह एक-सी ही होगी या होता है-इन सबका कारण स्थानीय पुद्गलवगे- लोहेकी वर्गणाओंकी बनावट एक ही तरहके लोहेके णाओंकी लाभकारक या हानिकारक रचना है । जैसे लिये हर जगह हर समय एक-सी ही रहेगी। जिस किसीधातुके साथ गंधककी तेजाब(sulphuric acid) पथ गधकका तजाब(sulphuric acid) तरह इन धातुओंकी वर्गणाओंकी बनावटमें विभिन्नता लगा दी जाय तो उसका असर तुरंत पड़गा जबकि आनेस इनके मलरूप, गुण और नाम ही बदल जाते तेजाबके अलावा बाकी दूमरे किसी तरल पदार्थका हैं उसी तरह जीवधारी मानवोंकी वर्गणाओंका भी उतना असर नहीं होगा। मतलब यह कि गंधकके हिसाब-किताब है। किसी भी समय किसी बाहरी तेजाबकी वर्गणाओंकी बनावट ऐसी है कि उसका या आन्तरिक प्रभाव द्वारा क्रोधकी वगेणाएं क्षमामें, असर उसी तरहका पड़ता है जबकि किसी और करुणामे या किसी भी दूसरे गुण अथवा अवगुणमें दूसरे तरल पदार्थका वैसा नहीं। मनुष्य ही क्यों, परिणत हो मकती है और होती रहती हैं। हर एकका जीवमात्रके शरीरके साथ भी क्रिया-प्रक्रिया उन्हीं स्थायित्व उनकी बनावट के स्थायित्वपर एवं प्रभाव
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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