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________________ किरण ३] ग्वालियरके किलेका इतिहास और जैन पुरातत्त्व करवाया था । (६) कविवर रइधूको सम्यक्त्वकौमुदीकी खंडित (५) साहू खेममिहके पुत्र कमलसिंहने, दुर्गात- प्रशस्तिसे मालूम होता है कि गोलालारोय फुलमें की नाशक मध्यात्वरूपी गिरीन्द्रको विनष्ठ ममत्पन्न कमद्रवन्दने भी जिनबिम्बकी प्रतिष्ठा गोपाकरने के लिये वनके समान, और रोग-शोक आदि चलमें राजा कीर्तिसिंहके राज्यकालमें सम्पन्न कराई दुःखोंकी नाशक भगवान आदिनाथकी १५ हाथ थी' । परन्तु प्रशस्ति अधूरी होनेसे उनके वंशादिका (१६।। पुट) उंची सातिशय एक विशाल मूर्तिका कोई परिचय नहीं दिया जासका। निमोण कराया था और उसकी प्रतिष्ठा भी बाबा बावड़ीके दाहिनी ओर एक सुन्दर खड़गा बाला कराई थी। मन मूर्ति भगवान पार्श्वनाथकी है, जिसके शिरका १ तासाम्म खणि घंभषय-मार-भारेण, भाग अगुली व पैर खंडित दशामें है। उसके नीचे सिरि भयरवालंकवसम्मि सारेण । म. १५२५ का एक लेख भी अंकित है जिसमें गोलाससार-तण भाय-निम्विरचित्तणा, लारीय वंशके द्वारा भ० सिहकीर्तिके उपदेशसे उक्त घरधम्मकाणामएणेव सितण॥ मंवतमें प्रतिष्ठित करानेका उल्लेख किया गया है. मत्थस्थरयणोहभूसियसदेहेण, नोटबुक सामने न होनसे लेख यहां नहीं दिया दहएगपडिमाणपालणसणेहेण । जासका। इसी लाइनमें पद्मासन व खड्गासन वेल्हाहिहाणेण गमिऊण गुरुतेण, विशाल मूर्तियाँ और भी अंकित हैं। जसकित्तिविणयत्तु मंडियगुणोहेण । (७) वि० सं०१५२१ में साहू पद्मसिंहने महाभो मयदाण-दापग्गिउल्धरण वणदास, कवि पुष्पदन्तका आदिपुराण लिखवाया था, उममे संसार-जलराशि उत्तार-वरजाण । पंथ लिखाकर दान देने वालेकी दातृप्रशस्तिमें पद्मतुम्हं पसाएग भव-दुह-कयंतस्स, सिंहके परिवारका परिचय कराते हुए लिखा है कि ससिपहजिदस्स पडिमा विसुद्धस्म । पद्मसिंहने आदिनाथका एक जिनायतन बनवाया कारायिथा मई जि गोधायले तुग, था और उसकी प्रतिष्ठा भी करवाई थी तथा एक उहुचाधिणामेण तिमि सुहसंग । लाख ग्रंथ लिखवाए थे और चौवीस जिनालय कविरविरचितसम्मइजिनचार-प्रसारिन । (जिनमन्दिर) भी बनवाए थेजैसा कि उक्त प्रशस्ति२ जो देबाहिदेवतिस्थंकरु, की निम्न पंक्तियोंसे प्रकट है:श्राहणाहतिथेस सुहंकर । "एयारह ममि मिरिपोमसिह, तहु पडिमा दुग्गह णिण्णासहि. जिणमाममाणंदणवणसुमिह । जा मिच्छत्तगिरिंद सरासणि । पुरणच जिणायदणु जि विचित्त, जो पुण्ण भष्वह मुहगइ सासपि. पसिहर सुपाडिहेरटू जुन्न । जा महिराय-सोय-दुह-णासणि । सा पुयाहर करधधिहगि, बउविहसंघहंषिणय पयासित, काराचिन णिरुवम अइतुगी। कम्ज़ सयलु जा सिद्ध सुहासिउ । प्रणय अण परिमको लक्खड़, -कविरहधूरचितसम्मत्तगया विधाण प्रशाम्न । सुरुगुरु ताह गणण अह अक्खद। , जेश पइडाषिय जिणबिंबद्द। कर वि पइह तिलड पुगु दियाउ' सम्यक्स्वकामदी, कविरइधकृत । घिक मवि पविहित कालमा छिराउ । देखो, जैन माहिन्यमंशोधक खंड २ अंक पृ० ० ।
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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