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अनेकान्त
वर्ष १०
माथ रहनेसे उसमे जो हलन-चलन इत्यादिकी या काले पर्दे की तरह ढकनेवाले न होकर शीशेकी मानसिक या शरीरिक क्रिया करनेकी शक्ति रहती है तरह पारदर्शक होते जाते है। और यह बात जितनी उसके कारण हरदम उसके (आत्माके)प्रदेशोंमें विद्य- अधिकाधिक होती जाती है आत्माका ज्ञान विकमान पुद्गलोंके संगठन-पुद्गलस्कन्धोंकी बनावट मित, निर्मल और शुद्ध होता जाता है । (इसके बारे या एटोमिक बनावट या हरएक ऐटमकी ण्टोमिक में जैनशास्त्रों में बड़ा विस्तृत विवरण है जिसे कोई बनावट में हर वक्त परिवर्तन या हेर-फेर जारी रहता भी जाननकी चेा करनेसे जान सकता है) ऐमी हैया होता रहता है और यही मब जन्म, मृत्यु, अवस्थामें या इसतरह परिवर्तन होते-होते एक बीमारी श्रादि तथा एक जगहसे दूसरी जगह पाने,
समय ऐसा आता है जबकि किसी खाम आत्माके जाने,किसी खाम व्यक्तिका जन्म किसी खास स्थान
अन्दर (उसके आत्म-प्रदेशोंमें) विद्यमान पद्गल में किसी खास व्यक्तिके यहां होने तथा स्वभावादि
स्कन्ध प्रायः एकदम पारदर्शक हो जाते है और की विशेषताका कारण है।
तब निर्मल "केवलज्ञान” आत्माके अंदर झलक ___ इन कर्मपुद्गलोंकी बनावटम वस्तुस्वरूपकी जाता है जिमका तुरन्त असर यह होता है कि कर्म ठीक-ठीक जानकारी तथा ज्ञानका विस्तार और प्रा. उसके आत्मप्रदेशमें और भी कम होने शुरू हो चरण वगैरहका असर, ज्ञानको (मम्यग्ज्ञान) की जाते है और वह आत्मा अन्तको सवकर्मोसे रहित हालतमें जबकि शरीरधारी मानवका ध्यान अपनी होकर अपने ऊध्वगमनस्वभावसे लोकके अग्र
आत्माके अन्दरकी तरफ झुकना या लगना प्रारंभ भागमें जाकर स्थित होजाता है, जहां फिर उसके हो जाता है तब उसके प्रदशाम द्यिमान पुद्गलोका साथ कमपद्गलाका सम्बन्ध नहीं हो सकता। बनावट या पद्गलस्कंधोंकी बनावटमें ऐसा परि- आत्माकी इस परमशुद्ध अवस्थाको ही मुक्ति अथवा वर्तन होने लगता है कि व धुधले और अंधकार मोक्ष कहते है।