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________________ अनेकान्त [वर्ष १० देखते हैं कि प्रतिबिम्ब जो जलमे किसी वस्तुका आत्मा और कर्म दो भिन्न-भिन्न वस्तु होते हुये भी पड़ता है वह मिट्टीके कण मौजूद रहनेसे केवल और एक-दूसरेसे न मिलते हुये भी या एक-दूमरेमें धुधला-मिटीके कणोंसे भरा-सा रंग रहनेपर रंगीन मौजद या एक-साथ रहते हये भी एक-दूसरेरूप दिखलाई पडता है पर जैसे-जैसे ये कण साफ या कम नहीं होसकते । न एक दूसरेमें मिल ही सकते हैं होते जायेंगे वैसे २ प्रतिच्छाया या प्रतिबिम्ब भी साफ फिर भी कमद्वारा आत्मप्रदेशमे अमर इस तरहका होता जायगा । मिट्टीके कणोंकी जगह यदि हम किसी पड़ता है जिससे आत्माका ज्ञान या दर्शन जैमा एसी वस्तुके कण पानीमे डाल दें जो पानीको गंदला होना चाहिये या जैसा रहना चाहिये (परम शुद्ध या धूमिल न करें बल्कि उसमें अधिक चमक लादे एवं निर्मल) वह नहीं रहता या नहीं होता । श्रातो जो प्रतिबिम्ब उस हालतमें दिखलाई दंगा वह त्मा यदि परम शुद्ध रहता उसके (श्रात्माके) प्रदेश उस वस्तुके कणांके कारण एकदम शुद्ध तथा निमल या शरीरमें या आत्मा जिस स्थानको घेरे हुए है तो नहीं होगा पर उसको हम प्रकाशयुक्त या किसी उतने या उसी स्थान या प्रदेशमे ये कमके और ही तरहका पावेंगे। इसतरह हम देखते है कि परमागा उपस्थित नहीं रहते तो उसका ज्ञान परम विभिन्न वस्तुओंके कणोको जलमे डालनेसे एक ही निमल और विशुद्ध होता। पर ये परमारण उम चीजका प्रतिविम्ब विभिन्नरूपमे दिखलाई पडेगा। प्रदेशमे उपस्थित रहकर उसके अन्दर प्रतिबिम्बत एसा होनेमे न ता जलका दोप है न उस चीजका वस्तुओका रूप जैसा दिखलाई देना चाहिये वैमा जिसका प्रतिबिम्ब जलम पड़ रहा है और न प्रति- नहीं दिखलाई देने देते। बिम्बका ही जो हर वक्त हर हालतमे है या रहता आधुनिक विज्ञानमें जा Scattering of है। एक ही किस्मका पर केवल मिट्टी आदिके कणोंके rays वगैरहके बारेमें वैज्ञानिकोंन बातें बतलाई है जलमें मौजूद रहनेसे प्रतिबिंबमे भी वे मौजूदरहते है। उन्हे जाननेवाला इस विपयपर गौर कर विभिन्न और इसी कारण कोई भी प्रतिबिंब निर्मल नहीं एवं वस्तुओंके अणुओं atoms का प्रभाव प्रकाशसाफ नहीं दर्शित होता । ये कण प्रतिबिंबके साथ किरणोंपर क्या पड़ता है उसे समझकर काफी घल-मिल नहीं जाते, न प्रतिबिंब ही उनसे घुल-मिल जानकारी प्राप्त कर सकता है। कर एकाकार हो जाता है। ये दोनों दो चीजें हैं। और आत्मा चेतन है और जल, मिट्टी इत्यादि वस्तुकिसी भी हालतमे एक दूसरेसे मिलकर एक नहीं हो ओंके कण या किसी चीजका प्रतिबिम्ब (जो जलम सकतीं मिट्टा वगैरहके ये कण प्रतिबिंबमें न तो सट पड़ रहा हो) ये सब अचेतन या जड़ है। ऐमी जाते हैं न प्रतिबिम्बके ऊपर उनका कोई एक दूसरेको बदल देनेवाला प्रभाव Actino & reacticn ही हाललमें इन वस्तुओंका दृष्टान्त देकर आत्माकी बातें ठीक-ठोक समझाना या समझना भी एकदम श्राहोता है, उनके रहनेसे प्रतिबिंब विकृत भी नहीं होता सान नही। फिर भी कुछ यत्न और कोशिशसे वह तो हर हालतमे हर वक्त अपने स्वाभाविक रूपमे ही रहता है। फिर भी हम देखते हैं कि इन कणोंके काफी जानकारी इस तरह हासिल की जा सकती है। जलमें रहनेसे वे प्रतिबिम्बमें भी रहते हैं और इसी आत्मा और पद्गल इस संसारमें सर्वदासे कारण प्रतिबिम्ब जैसा दिखलाई देना चाहिये वैसा मौजद हैं और हर जगह दोनों ही मौजूद हैं। नहीं दिखलाई देता। जिन प्रदेशोंमें जगहोंमें या जितने आकाश स्थलमें इसी तरह यदि प्रास्माको हम प्रतिबिम्बकी आत्मा विद्यमान है या आकाशका जितना थोड़ा या जगह मान लें और कर्मपर मोंको मिट्टी आदि ज्यादा प्रदेश किसी एक श्रात्माने छेक रखा है उसके तरह तरह की चीजोंके कण तो हम समझ सकेगे कि भीतर पद्गल परमाणु भी वर्तमान है ऐसा सभी
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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