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किरण ३]
शौच-धर्म
उनकी प्राप्ति नहीं होजाती। पर किया क्या जाय ? पर मवार रहकर उन्हें अपने बन्धनमे रग्वना ।" यह अनादिकालमे जो यह मोह साथमें लगा हुआ है कहानी है तो हसानकी ही, पर वास्तव में विचार वही दुनियाको नाच नचा रहा है । एकने कहा है- करो तो यह स्त्रियां है बड़ीके तुल्य । इनहींके 'मोह महा रिपु-वैर कियो अति सब जिय बन्धन डारी, चक्करमं पड़कर मनुष्य एकमे दो, दोसे तीन, घर कारागृह बनिता बेडी परिजन जिय रखवारा तीनसे चार और इसी तरह अनेक होता रहता है
मोहरूपी प्रबल वैरीने ऐसा भारी वैर किया अपने आपको एक बड़े परिवारक बीचमे इन्हींकी कि सर जीवोंको बन्धनमें डाल दिया है। घरको कृपासे पाता है। संसार ही एसा है दोष किसे
काराग्रह बनाया है, स्त्रीको बेड़ी और परिवारक दिया जाय ? संमारका स्वभाव ही ऐसा है जो • लोगोंको रक्षक-पहरेदार बनाया है । यथार्थमें यह 'बोले मो फम ।'
स्त्री एक बेड़ीके समान है। लोकमन दाऊकी यह एक जगलमं एक माध रहता था। बड़ा तपस्वी कहानी याद आती है। वह कहा करता था कि था। जिस जो कह द उम उमकी प्राप्ति अवश्य हो "ब्रह्माके पेट में चारों वर्णके मनुष्य भरे हुए थे। उनम जानो। एक राजाक लड़का नहीं था। वह माधुके पास उन्हे जब कष्ट होने लगा तो उन्होंने ब्राह्मणान कहा आया। माध उसकी निमं प्रसन्न हो गया। राजान देखा, मुझे कष्ट हो रहा है आप लोग बाहर निकल पत्रका वरदान मांगा। माधुन स्त्रोकार कर लिया। राजा जाओ तो अच्छा है। ब्राह्मणोंने पूछा, बाहर जाकर अपने घर गया। अब जब रानी ऋतुमती होनके बाद क्या करेंगे ? ब्रह्माने कहा दुनियास पुजना और गभधारण करनेमे तत्पर हुइ नव दुनियामे कोई मरा क्या करोगे । पृथ्वीके देव बनकर रहा । ब्राह्मण ही नहीं, उसके गर्भ पिस भेजा जाय। मेरी बात बाहर निकल गये। अब क्षत्रियोमे कहा, तुम भी भठी न पद जाय इमनं. व्यालसे माध म्वयं मरकर बाहर निकल जाओ तो हमारी पीड़ा कम हा उमक गर्मम पहुँच गया। जब नौ महीना गर्भके दुःख जाय । क्षत्रियोंने कहा, ऐसा सुन्दर स्थान बाटकर महता उम अपनी सब गल्ती अनभयम आन लगो। कहां जायें ? क्या करेंगे? ब्रह्मान कहा मवपर पर अब कर हो क्या मकना था । ६ माह बाद पुत्र राज्य करना, राज्यके लोभसे क्षात्रय बाहर निकल हा। पर वह पूत्र अपनीमाधु अवस्थाका ख्यालकर आय। अब वैश्योंसे कहा, भैया! तुम लोग भी बुढ़ किमोस छ बालना नहीं था। गूगा माना जाने लगा। पर दयाकर बाहर होजाओ तो अच्छा है। बाहर राजान इतनेमे ही मंतोष कर लिया। चलो बोलता जाकर क्या करेंगे? खूब धन कमाना और मजम श नही, न बालने दो। निपूता तो नही कहलाऊंगा। आराम करना, ब्रह्माने कहा । धनकं लोभम वैश्य लटका बडा हुआ। एक दिन वह उद्यानमें क्रीड़ाके भी बाहर हुए। अब रहे शूद्र । सो जब शूद्रांम अथ गया। एक पेड़ के नीचे खड़ा था। उसी समय बाहर निकलनेको कहा तो उन्होंने कहा, जिननं एक शिकारी वहाँ आया । उस शिकारीको उम अच्छे-अच्छे काये थे सो तो उन तीननं हथया लिये. दिन शिकारमे कुछ भी नहीं मिला था। निराश हम लोग क्या करेंगे ? ब्रह्माने उन्हें प्रेमस ममझाया होकर अपने घर को लौट रहा था। इतनेमे उस वृक्ष कि तुम सबकी सेवा कर दिया करो, मवामे बड़ा पर एक चिड़िया बोल उठी । शिकारीका ध्यान पुण्य है। अच्छा कहकर शूद्र भी बाहर भागय । उन चिड़ियोंपर गया और उसने उम वृक्षपर अब भीतर रह गई स्त्रियां । उनसे भी कहा आप जाल डालकर सब चिड़ियोंको फंसा लिया। यह -लोग भी कृपा करो तो अच्छा हो । हम अबला दबकर राजाका लड़का बोल उठा, 'बोले सो फंस'
आपका आश्रय छोड़कर कहां जायंगी सा राजाक लड़कंक मखसे यह शब्द सुनकर शिकारी स्त्रियोंन पूछा । ब्रह्माजीने उत्तर दिया कि मोंक शिर- शुभ खबर देनेके लिये राजाके पास दौड़ा गया