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________________ वर्ष ] अनेकान्त ६० (ङ) विशिष्ट विद्वत्ता और आगमज्ञान तो कितने ही विद्वानों- संक्षिप्त परिचय-पुस्तिका है और देहली जैसे बड़े के लिये स्पर्धाको चीज है। उनके 'तहलका मचा शहर में आने वाले यात्रियों के लिये जैन गाइडकेरूपमें रक्खा' 'मुख्यनेता''मोटे' जैसे आक्षेपारक शब्द और अच्छे कामकी चीज है-साथमें एक नक्शा भी लगा अन्तमें प्रकाशित परिशिष्ट इसमें न होते तो अच्छा हश्रा है जिसने इसकी उपयोगिताको बढ़ा दिया है। था। पुस्तकका योग्य सम्पादन अपेक्षित था जिससे इसके सहारेसे कोई भी यात्री सहजमें ही यह मालूम भाषा-साहित्य आदिको त्रुटियां न रहती। फिर भी कर सकता है कि दिगम्बर, श्वेताम्बर और स्थानकसमाज सोनीजीको विद्वत्ता और सेवाभावनाकी नि- वासी सम्प्रदायोंके कौन कौन मन्दिर, स्थानक, विद्याश्चय ही कायल है। काश ! ऐसे विद्वान साहित्यिक लय, औषधालय, स्कूल, पाठशाला, धर्मशाला, शास्त्रक्षेत्रमें आकर साहित्यसेवामें जुटते तो उनसे बड़ी भण्डार, लायब्ररी तथा सभा सोसाइटी आदि दूसरी सहित्यसेवा होती। संस्थाएँ किस किस मुहल्ले गली कूचे श्रादिमें कहांपर २ रेडियो--- स्थित हैं और उनकी क्या कुछ विशेषताएँ हैं। और लेखक, श्री रा०र० खाडिलकर । प्रकाशक, इस तरह वह इधर उधर भटकने तथा पूछताछ करने काशी नागरी-प्रचारिणी सभा। मूल्य )। के कष्टसे मुक्त रहकर अपना बहुत कुछ समय बचा प्रस्तुत पुस्तकमें रेडियो सम्बन्धी समस्त प्रकारको सकता है और यथेष्ट परिचय भी प्राप्त कर सकता। जानकारी दी गई है। रेडियोका प्रचार, रेडियोका पुस्तक अच्छे परिश्रमसे लिखी गई है, उसके लिये विज्ञान, वेतार विद्या, जाड़ोंमें रेडियो अच्छा क्यों लेखक और उनके सहायक सभी धन्यवादके पात्र हैं। सुनाई देता है ?, रेडियोके विभिन्न वरन, रेडियो यंत्र बाहु-वली--- (राष्ट्रीय काव्य)- लेखक, श्री० में खरावो और उसके उपाय ? रेडियोपर खबरें, हीरक प्राप्तिस्थान सगुनचन्द चौधरी स्याद्वाद विद्यासमयका अन्तर, ब्रिटेनका समय, यूरोपका समय, भारतीय समय, अमेरिकन समय, भारतीय रेडियोका य, लय, भदैनी बनारस, मूल्य II) । भविष्य जैसे गहन वैज्ञानिक विषयोंको लिये हुए उनपर इसमें कवि श्री हीरकने बाहुवलीका चरित्र प्रन्थन करने का प्रयास किया है। भूमिका हिन्दी विभाग पर्याप्त और सरल हिन्दीमें प्रकाश डाला गया है। आज भारतमें रेडियोका प्रचार बराबर बढ़ता जा रहा हिन्द विश्वविद्यालयके प्रो० डा० श्रीकृष्णलाल एम.ए. , है। ऐसे समयमें यह पुस्तक रेडियोका ज्ञान करने के पी. एच. डी. ने लिखी है। संस्कृत शब्दों के बाहुल्यने काव्यकी कोमलता और सरसताको सुरक्षित नहीं रख लिये बड़ी उपयोगी सिद्ध होगी। संयुक्त प्रान्तके शिक्षा पाया फिर भी कविका इस दिशामें यह प्रथम प्रयत्न मन्त्री बा० सम्पूर्णानन्दने 'दो शब्द' वक्तव्यमें इस है। आशा है उनके द्वारा भविष्य में अधिक प्राञ्जल पुस्तकका स्वागत करते हुए लिखा है-'इस छोटी-सी पुस्तकको पढनेसे कोई भी शिक्षित व्यक्ति, चाहे वह पर : रचनाओंका निर्माण हो सकेगा। भौतिक विज्ञानका विशेषरूपसे विद्यार्थी न भी हो. पद्यमय रचना) रेडियो सम्बन्धी आवश्यक बातोंकी काम चलानेभर लेखक पण्डित लाल बहादुर शास्त्री, प्राप्तिस्थान जानकारी प्राप्त कर सकता है। इसे एकबार मंगाकर नलिनी सरस्वती मन्दिर, भदैनी बनारस, मूल्य )॥ अवश्य पढ़ना चाहिए। यह ७१ पद्योंकी सरस और सुन्दर रचना है। ३ जैन इस्टिटय शन्स इन देहली--- इसमें भगवान महावीरका आकर्षक ढङ्गसे संक्षेपमें ले०,वा० पन्नालाल जैन अग्रवाल देहली। प्रकाशक जोवन-परिचय दिया गया है। पुस्तक लोकरुचिके जैनमित्रमण्डल, धर्मपुरा देहली। मू० चार पाने। अनुकूल है और प्रचार योग्य है। यह अंग्रेजीमें देहलीको सभी जैन संस्थाओंकी -दरबारी लाल कोठिया
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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