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________________ अनेकान्त [ वह हो है और कथंचित अवाच्य ही है, सो यह सब नय. सकता' जवाब दिया है और इसलिये उसे अनिश्चितविवक्षासे है, सर्वथा नहीं। तावादी कहा गया है। स्वरूपादि(स्वद्रव्य, स्वक्षेत्र, स्वकाल,स्वभाव इन) जैनोंको जो सप्तभङ्गी है वह इस प्रकार हैचारसे उसे कौन सा ही नहीं मानेगा और पररूपादि (१) बस्तु है?-कथञ्चित (अपनी द्रव्यादि चार (परद्रव्य, परक्षेत्र, परकाल, परभाव इन) चारसे अपेक्षाओंसे) वस्तु है हो–स्याद त्येव घटादि वस्तु । कौन असत ही नहीं मानेगा। यदि इस तरह उसे (२) वस्तु नहीं है -कथञ्चित (परद्रव्यादि चार स्वीकार न किया जाय तो उसकी व्यवस्था नहीं हो अपेक्षाओंसे) वस्तु नहीं है। है-स्यानास्त्येव घटादि सकती। वस्तु। क्रमसे अर्पित दोनों (सत और असन) की (5) वस्तु है. नहीं (उभय) है -कथञ्चित् अपेक्षासे वह कथंचित् उभय ही है, एक साथ दोनों (क्रमसे अपित दोनों-वदन्यादि और परद्रव्यादि (सत और असत) को कह न सकनसे अवाच्य ही है। चार अपक्षाने) वस्तु है, नही (उभय) ही हैइसी प्रकार श्रवक्तव्य के बाद के अन्य तीन भङ्ग स्यादस्ति नाम्त्य र घटादि वस्तु । (सदवाच्य, असदवाच्य,और मदसवाच्य)भी अपनी (४) उम्त छातय है ?-कश्चित् (एक साथ विवक्षाओंसे समझ लेना चाहिए । विवक्षित स्वयादि और परद्रव्यादि दोनो अपेक्षायही जैनदर्शनका सप्तभङ्गी न्याय है जो विरोधी- असि कडी न जा सकतमे) व तु अवक्तव्य ही हैअविरोधी धर्म युगलको लेकर प्रयुक्त किया जाता है स्यादवाव्यमेव घदादि वस्तु । और तत्तन अपेक्षाओंस वस्तु-धर्मों का निरूपण करता (५) बाल है-अवतव्य है' ?- कश्चिन (स्वहै। स्याद्वाद एक विजयी योद्धा और सप्तभड़ी- द्रव्याभि और एक साथ विरक्षित दोनाव परन्याय उसका अस्त्र शस्त्रादि विजा-माधन है । अथवा द्रव्यादि का अक्षयान कही न जा सकनेस) वस्तु यों कहिए कि वह एक स्वत: सिद्ध न्यायाधीश है और है-श्रवक्तव्य ही है'-यावस्ट वक्तव्यमेव घटादि सप्तभंगी उसके निर्णयका कए साधन है । जैनदशन- वस्तु । के इन स्याद्वाद मप्रभङ्गीन्याय. अनेकान्तवाद आदिका (६) वस्तु 'नहीं-अवक्तव्य है?-कथञ्चित परविस्तृत और प्रामाणिक विवेचन प्राप्तमीमांसा. स्व. द्रव्यादिसे और एक साथ विवक्षित दोनो स्व-पर द्रव्यायम्भूस्तोत्र, युक्त्यनुशासन. मन्मतिसूत्र अष्टशती. दिकी अपेक्षा कही न जा सकनेस) वस्नु नही-अबअष्टसहस्री, अनेकान्तजयपताका. स्याद्वादमतरी क्तव्य ही है' - स्थानास्य वक्तव्य मेव घटादि वस्तु । आदि जैन दार्शनिक ग्रन्थों में समुपलब्ध है। (७) वस्तु है-नही-अबक्तव्य है? कथश्वन संजयक अनिश्चिततावाद और जैनदर्शनके (क्रमसे निस्क पर द्रव्य निमें और एक साथ आपत स्वर द्रव्यादिकी अपेक्षासे कही न जा सकनेस) व स्याद्वादमें अन्तर 'है नहीं और अवक्तव्य ही है।-स्यादस्ति नास्त्यवऊपर राहुलजोने संजयकी चतुर्भङ्गी इस प्रकार क्तव्यमेव घटादि वस्तु । बतलाई है जैनांकी इस साभगीमें पहला, दूसग और चौथा (१) है?-नहीं कह सकता। ये तीन भङ्ग तो मौलिक हैं और तीमग. पोचवों, (२) नहीं है ?-नहीं कह सकता। और छठा द्विसंयोगी तथा सातवां त्रिरुयोगी भङ्ग हैं (३) है भी नहीं भी ?-नहीं कह सकता। और इस तरह अन्य चार भङ्ग मूलभूत तीन भङ्गों के (४) नहै और न नहीं है?-नहीं कह सकता। संयोगज भर हैं। जैसे नमक, मिर्च और खटाई संजयने सभी परोक्ष वस्तुओंके बारेमें 'नहीं कह इन तीनक संयोगज स्वाद चार ही बन सकते हैं
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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