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________________ - श्रीसरोजिनी नायडूका वियोग ! १ मार्च १९४६को रात्रिके ३॥ बजे हमारे प्रान्तकी गवर्नर श्रीसरोजिनी नायडूका हृदयकी गति रुक जानेसे सदाके लिये दुखद वियोग हो गया! आप स्वतन्त्रभारतमें युक्तप्रान्तकी प्रथम गवर्नर थीं। भारतीय और विश्वकी महिलासमाजके लिये यह गौरवकी बात है। राष्ट्रके स्वतन्त्रता-संग्राममें श्राप सदा गाँधीजीके साथ रहीं और अनेकों बार जेल गई। भारतके लिये आपकी सेवाएँ अद्भुत हैं। विश्वमें आप अपनी विख्यात कविताओं और मधुर एवं प्रतिभाशालिनी वक्तृताओंके कारण भारतकोकिला या बुलबुले हिन्दके नामसे मशहूर थीं। आपके वियोगमें सारे भारतने शोक प्रकट किया और ११ मार्चको सर्वत्र मातम मनाया गया। श्रापके स्थानकी शीघ्र पूर्ति होना कठिन जान पड़ता है। देशकी ऐसी विभूतिके प्रति वीरसेवामन्दिर परिवार अपनी शोक श्रद्धाञ्जलि अर्पित करता है और परलोकमें सद्गति एवं सुख शान्तिकी भावना प्रकट करता है। एक समाजसेवकका निधन ! गत माघ कृष्णा २ सं० २००५को प्रसिद्ध समाजसेवी मास्टर मोतीलालजी संघी जयपुरका शोकजनक देहावसान हो गया ! मास्टर साहब एक निःस्वार्थसेवी और कर्मठ व्यक्ति थे। सहानुभूति और दयासे उनका हृदय भरा हुआ था। उनका सारा जीवन गरीबोंकी मदद करने, असहाय विद्यार्थियोकी सहायता करने और घरघर ज्ञान-प्रचार करने में बीता। उनका कोई ३० हजार पुस्तकोका पुस्तकालय, जिसे उन्होने १९२०मे स्थापित किया और जिसके द्वारा अपने जीवनकालमें २६ वर्ष तक जनताकी सेवा की. जयपुरके पुस्तकालयोंमें अच्छा और उल्लेखनीय माना जाता है। जयपुरके शास्त्रभएडारोसे हस्तलिखित ग्रन्थोंकी सुप्राप्ति प्रायः मास्टर साहबके प्रयत्नांसे ही होती थी। उन्हें इस बातकी बड़ी इच्छा रहती थी कि अप्रकाशित ग्रन्थोका प्रकाशन हो और वे जनता तक पहुँचें। वीरसेवामन्दिर और उसके साहित्यिक कार्योंके प्रति उनका विशेष प्रेम था। विद्वानोके सहयोग सत्कारके लिये उनका हृदय सदा खुला रहता था। वे जयपुरकी ही नहीं, सारे समाजकी एक श्रेष्ठ विभूति थे। उनके निधनसे समाजका एक परखा हुआ और सच्ची लगनवाला सेवक उठ गया ! स्वर्गीय आत्माके लिये वीरसेवामन्दिर परिवार सद्गति एवं शान्तिकी कामना करना हुआ उनके कुटुम्बी जनाके प्रति हार्दिक समवेदना व्यक्त करता है। क्या ही अच्छा हो, मास्टर साहबके अमर स्मारक पुस्तकालयको समाज सुस्थिर और अमर बना दे। लाला रूढामलजी सहारनपुरका देहावसान ! सहारनपुरके लाला नारायणदास रूढामलजी जैन शामियानेवालोंका गत १९ फरवरी १९४९को देहावसान हो गया । आप बड़े हो सज्जन और धार्मिक थे। सबसे बड़े प्रेमसे मिलते थे । वीरसेवामन्दिर और उसके कार्योंसे विशेष प्रेम रखते थे। हम स्वर्गीय आत्माके लिये शान्तिको कामना और कुटुम्बी जनोंके प्रति समवेदना प्रकट करते हैं।
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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