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अनेकान्त
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भ० लक्ष्मीचन्द्र के शिष्य ब्रह्मज्ञानसागरके पठनार्थ आर्या विमलश्रीकी चेली और भ० लक्ष्मीचन्द्र द्वारा दीक्षित विनयश्रीने स्वयं लिखकर प्रदान की थी। इसके सिवाय, ब्रह्मनेमिदत्तने अपने आराधनाकथाकोश, श्रीपालचरित, सुदर्शनचरित, रात्रिभोजनत्यागकथा और नेमिनाथ पुराण आदि प्रन्थों में श्रुतसागरका आदर पूर्वक स्मरण किया है। इन प्रन्थोमे आराधनाकथाकाश सं० १५७५के लगभगकी रचना है और श्रीपालचरित सं० १५८५में रचा गया है। शेष रचनाएँ इसी समयके मध्यकी या आसपासके समयकी जान पड़ती हैं।
ब्रह्मश्रुतसागरकी अब तक ३६ रचनाओंका' पता चला है जिनमेंसे ८ टीकाप्रन्थ हैं और शेष सब स्वतन्त्र कृतियाँ हैं उनके नाम इस प्रकार हैं:
१ यशस्तिलकचन्द्रिका, २ तत्त्वार्थवृत्ति, ३ तत्त्वत्रयप्रकाशिका, ४ जिनसहस्त्रनामटीका, ५ महाअभिपेकटीका, ६ षट्पाहुडटीका, ७ सिद्धभक्तिटीका, ८ सिद्धचक्राष्टकटीका,
ज्येष्टजिनवरकथा, १० रविव्रतकथा, ११ सप्तपरमस्थानकथा, १२ मुकुटसप्तमकोथा, १३ अक्षयनिधिकथा, १४ षोडशकारणकथा, १५ मेघमालाव्रतकथा, १६ चन्दनषष्ठीकथा, १७ लब्धिविधानकथा, १८ पुरन्दरविधानकथा, १६ दशलाक्षिणीव्रतकथा, २० पुष्पाञ्जलिव्रतकथा, २१ अाकाशपञ्चमीकथा, २२ मुक्तावलिव्रतकथा, २३ निदुखसप्तमीकथा, २४ सुगन्धदशमीकथा, २५ श्रवणद्वादशीकथा, २६ रत्नत्रयव्रतकथा, २७ अनन्तव्रतकथा, २८ अशांकरोहिणीकथा, २६ तपोलक्षणपंक्तिकथा, ३० मेरुपंक्तिकथा, ३१ विमानपंक्तिकथा, ३२ पल्यविधानकथा । (इन कथाओमें नं० हसे लेकर ३२ तकक ग्रन्थ 'ब्रतकथाकांश' नामसे एक ग्रन्थमें सग्रह कर दिये गये है; परन्तु वे एक ग्रन्थके अङ्ग नहीं हैं उनमे भिन्न भिन्न व्यक्तियोके अनुरोध एवं उपदेशादि द्वारा रचे जानेका स्पष्ट उल्लेख निहित है इसीसे यहाँ उन्हें एक ग्रन्थका नाम न देकर स्वतन्त्र २४ ग्रन्थके रूपमे उल्लेखित किया है)। ३३ श्रीपालचरित, ३४ यशोधरचरित, ३५ औदार्यचिन्तामणी (प्राकृत स्वापज्ञवृत्तियुक्तव्याकरण) ३६ श्रुतस्कन्धपूजा। ता० २५-१-४६
सुधार-सूचना अनेकान्तकी गत १८वीं किरणके प्रथम पृष्ठपर प्रकाशित 'मदीया द्रव्यपूजा' नामकी कविताके छपने कुछ अशुद्धियाँ होगई है और कुछ उसके लेग्वक युगवीरजीने उसमें थोड़ा-सा नया संस्कार भी किया है अतः पाठक अपनी-अपनी प्रतिमें उसका निम्न प्रकारसे सुधार कर पढ़नेकी कृपा करें:
प्रथम पद्यमें 'मयं'की जगह मिदं' और 'समर्पयामि इति'की जगह 'समर्पयऽहमिति' बना लेवे । द्वितीय पद्यमे एतच्चाऽऽहदि के स्थानपर एनन्म हदि', 'रसयुतै-रन्नादिपानःसह के स्थानपर 'रसयुतैरनादिभीगेचनैः'. 'त्वपण-चर्थता के स्थान पर त्वर्पण-मोघता' और सद्भेषजाऽऽनय॑वन् के स्थानपर 'मद्भेषजाऽऽनय॑वन्' ऐमा पाठ कर लवे । तृतीय पद्यमे 'तत्तम'की जगह 'तत्तत् किया जाना चाहिये। चतुथ पद्यमे 'शिगैन के स्थानपर 'शिरोऽग्र' और 'एतन्मे तव द्रव्य-पूजनमहो'के स्थानपर एतद्रव्यमुपूजनं मम विभो: बना लेना चाहिये । साथ ही इसके द्वितीय चरणमें द्वितीय पद्यके द्वितीय चरण-जैसा जो व्यर्थका डैश (-) पड़ा हुआ है उसे निकाल कर पूर्वापर अक्षरोको मिला देना चाहिये और अन्तमें लेखकका नाम 'युगवीर' दे देना चाहिये ।
-प्रकाशक
१ नं. १, ५, ६की टीकाएँ प्रकाशित होचुकी हैं नं० २की टीका भारतीयज्ञानपीठकाशीसे प्रकाशित
हो रही है। नं. ३, ४की टीकाएँ और शेष सब ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित हैं।