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________________ Regd. No. A-731. भारतकी महाविभूतिका दुःसह वियोग! भारतकी जिस महाविमूति महात्मा मोहनदास कर्मचन्दजी गान्धीके आकस्मिक निधन-समाचारोंसे सारा विश्व एक दम व्याप्त हो गया है, सर्वत्र दुःखकी लहर विद्य द्वेगसे फैल गई है. चारों ओर हाहाकार मचा हुआ है-शोक छाया हुआ है और विदेशों तकमें जिस अघटित-घटनाको महा आश्चर्यको दृष्टिसे देखा जा रहा है तथा उसपर शोक मनाया जा रहा है, उस दुःखप्रद दुःसमाचार को अनेकान्तमें कैसे प्रकट किया जाय, यह कुछ समममें नहीं आता! इस दुःसह वियोगके कारण हृदय दुःखसे परिपूर्ण है, लेखनी कांप रही है और इसलिये कुछ भी ठीक लिखते नहीं बनता बुद्धि इस बातके समझने में हैरान और परेशान है कि जो महात्मा दिन-रात अविश्रान्तरूपसे भारतकी ही नहीं किन्तु विश्वको नि:स्वार्थ भावसे सेवा कर रहा हो, सदा ही मानव-समाजको उन्नतिके लिये प्रयत्नशील हो, हृदय में किसीके भी प्रति द्वेषभाव न रखना हो, एकनिष्ठासे अहिंसा और सत्यका पूजारी हो; अहिसाकी अमोघ-शक्ति से, बिना रक्तपात के हो जिसने भारतको स्वराज्य दिलाया हो और जिसको सारी शक्तियां उस साम्प्रदायिक विषको लोक-हदयोंसे निकालने में लगी हों जो समाजको मूर्छित पतित और मरणोन्मुख किये हुये है, उस महापुरुषको मार डालने का विचार किमी मानव हृदयमें कैसे उत्पन्न हुअा ? कैसे उस लोकपूज्य लोकोत्तर परोपकारकी मृतिको तोड़ने के लिये किसी सजीव प्राणी का कदम आगे बढ़ा? और कैसे ३० जनवरीकी सन्ध्याके समय पांच बजकर पांच मिनिटपर ईश-प्रार्थनाके लिये जाते हुए उस धर्मप्राण निःशस्त्र निरपराध वृद्ध महात्मापर तीनबार गोली चलाने के लिये किसी युवकका हाथ उठा!!! मालूम नहीं वह युवक कितना निष्ठुर, कितना कठोर, कितना मिदय और कितना अधिक मानवतासे शून्य अथवा अमानुषिक हृदयको लिये हुए होगा. जो ऐसा घोर पापकर्म करने में प्रवृत्त हआ है, जिसने सारे मानव-समाजको उसके नित्यके प्रवचनों सदुपदेशों सलाह-मशविरों और सक्रिय सहयोगोंसे होने वाले लाभोंसे एकदम बंचित कर दिया है। और इसलिये जिसे मानवसमाजका बहुत बड़ा हितशत्रु सममना चाहिये। गांधीजीने उस मराठा युवकका-जिसका नाम नाथूलाल विनायक गोडसे बतलाया जाता है कोई बिगाड नहीं किया. कोई अपराध नहीं किया और न उसके प्रति कोई दुव्यवहार ही किया है, फिर भी वह उनके प्रति ऐसा अमानुषिक कृत्य करने में प्रवृत्त हुआ अथवा मजबूर हुआ। जरूर इसके पीछे-पुश्तपर कोई भारी षडयन्त्र है-कुछ ऐसे लोगोंकी बहुत बड़ी साजिश है जो सारे राजतन्त्रको ही एकदम बदलकर स्वयं सत्तारूढ होना चाहते हैं और इसलिये जो गान्धीजीको अपने मार्गका प्रधान कण्टक समझ रहे थे। इस हृदयविदारक दुर्घटनासे भविष्य बडा ही भयंकर प्रतीत हो रहा है। अत: शासनारूढ़ नेताओं को शीघ्र ही षडयन्त्रका पता लगाते हुए अब आगे बहुतही सतके एवं सावधान रहनेकी जरूरत है और बड़े प्रयत्नके साथ गांधीजीके उस मिशनको पूरा करनेकी अावश्यकता है जिसे वे अभी अधूरा छोड़ गये हैं। गांधी जी तो भारत के हितके लिये अन्तमें अपना खून तक देकर अमर हो गये। अब यह उनके अनयायियोंका परम कर्तव्य है कि वे उनके मिशनको सब प्रकारसे सफल बनायें। इसी में भारतका हित है और यही महात्माजीका वास्तविक अर्थो में श्रमर स्मारक होगा। -सम्पादक मु० प्रका०५० परमानन्दशास्त्री भारतीयज्ञानपीठ काशीके लिये अजितकुमार द्वारा अकजङ्कप्रेस सहारनपुरमें मुद्रित
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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