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कार्तिक, मार्गशीर्ष २००५ :: नवम्बर, दिसम्बर १९४९ वीरसेवामन्दिरका त्रयोदशवर्षीय महोत्सव
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आज मुझे यह प्रकट करते हुए बड़ा ही भानन्द होता है कि भारतके महान् सन्त और आध्यात्मिक नेता पूज्य श्री १०५ शल्लक गणेशप्रसादजी वर्णी न्यायाचार्य वैशाख वदि १ ता० १४ अप्रल १९४६ को अपने सङ्घ-सहित वीरसेवामन्दिर सरसावा (सहारनपुर )में पधार रहे हैं
और वे यहाँ एक सप्ताह तक ठहरेंगे। इस स्वर्णावसरपर वैशाख वदी ५ व ६ ता० १७, १८ अप्रेल दिन रविवार तथा सोमवारको वीरसेवामन्दिरके त्रयोदशवर्षीय अधिवेशनका आयोजन किया गया है। अतः समाजके सब सज्जनोंसे सानुरोध निवेदन है कि वे इस अपूर्व समारोहके शभावसर पर अपने परिवार तथा मित्रों-सहित अवश्य पधारनेकी कृपा करें और वीरसेवामन्दिरके अनेक उल्लेखनीय महत्वके साहित्यिक एवं ऐतिहासिक कार्योंका साक्षात्परिचय प्राप्त करनेके साथ ही पूज्य बणीजीके प्रवचनोंसे यथेष्ट लाभ उठावें । इस महोत्सवको सफल बनानेके लिये स्वागत-समितिका निर्माण होचुका है और उसने सोत्साह अपना कार्य प्रारम्भ कर दिया है।।
अधिष्ठाता वीरसेवामन्दिर सरसावा, जि. सहारनपुर
संस्थापक प्रवर्तक बीम्मेबामन्दिर,मरमावा
दमगरल जुगलकिशोर 'मुग्ख्तार मुनि कान्तिमागर
| किरण दरबारीलाल न्यायाचार्य ११-१२) अयोध्याप्रमाद गोयलीय ।
सञ्चालक व्यवस्थापक भारतीय ज्ञानपीठ, काशी