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किरण १० ]
अपभ्रंशका एक शृङ्गार-वीर काव्य
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भाई अरहदासके यहाँ विद्युन्मालीका अन्तिम केवली- वहाँ जाकर कन्याके साथ परिणय करनेकी प्रार्थना के रूपमें जन्म होगा यह सुनकर हर्षित होकर यह करता है । जम्बू अकेले जाकर विद्याधरसे युद्ध करते नाच रहा है। सातवी रात्रिके चतुर्थ प्रहरमें अरहदाम हैं। मृगाङ्कराजा कन्या जम्बूस्वामीको समर्पित कर देता की प्रियाने जम्बूफल आदि वस्तुएँ स्वनमें देखीं । स्वप्नों है । पीछेसे श्रेणिकराजकी सेना भी देशान्तरोंमें का फल बताते हुए मुनि कहते है कि उमके एक पुत्र भ्रमण करती हुई पहुँच जाती है। रत्नशेवर(-सिंहहोगा जो सोलह बरस रहकर दीक्षा लेगा। समया- चूल) विद्याधरकी हार होगी मा प्रनीत होने लगता नुकूल जम्बू जन्म लेते हैं और शीघ्र विद्याध्ययन है (मन्धि ५)। समाप्त करते हैं। जम्बूफल स्वप्नमें उनकी माताने देखा . छठी मन्धिका प्रारम्भ कुछ प्राकृत पद्योंमें की गई था इसलिये उनका नाम जम्बूस्वामी रखा गया। कविवीरकी कवि-प्रतिभाकी प्रशसासे होता है। उस जम्बृस्वामी अत्यन्त सुन्दर थे नगरकी रमणियाँ उन्हें सम्पूर्ण मन्धिमे जम्बूस्वामीके युद्ध कौशलका वर्णन देखकर आसक्त होजाती थीं और विरहका अनुभव किया गया है। अन्तमे रत्रशेखरका मृगाङ्कराजा पराकरने लगती थी।
___जित कर देता है और जम्बू सहस्रो भटोको परास्त उसी नगरमें समुद्रदत्त श्रेष्ठ रहता था. उसके कर देत है । युद्धका वर्णन बड़ी क्षमतापूर्वक कविने चार सुन्दर पुत्रियाँ थीं. समुद्रदत्तने उन कुमारियांका किया है । युद्धके प्रसङ्ग में श्रद्धत, बीभत्म व्यापारीका विवाह जम्चस्वामीसे करना निश्चित किया। विवाहकी चित्रण करत हुए कविने माङ्गोपाङ्ग युद्ध वर्णन किया तैयारियों हो रहीं थी इतने में ही वसन्त ऋतु आ है। आठ सहस्र विद्याधगंका उसने परास्त कर दिया। पहुंची, सब लोग वमन्नात्मवके लिए राजाद्यानमे अन्तम पराजित रत्नसिहको वह क्षमा कर देता है। जात। क्रीम्याक उपरान्त सरति खेदको दर करनेके विद्याधर रत्नमिह पाँचसो विमान लेकर जम्बके साथ लिए मगेवर जलक्रीडा सब करते है सब लोग जब उसे मगध पहुंचाने चल-देता है। विमान नांदकुमल वस्त्र श्राभूपणाको पहनकर नगरकी ओर जा रहे थे (गम्मायकुरुल) शिवरपर पहुंचता है जहाँ मगधेशी कि एक प्रमत्त गज आकर सबका त्रस्त कर देना है सेनाका स्कधावार था जम्बूने उतरकर उनसे भेट की। जब मब भयभीत होकर भाग रहे थे जम्ब उसे वीरता गगनगात सबका राजासे परिचय कराता है मृगाड़की पूर्वक परास्त कर देते है (मन्धि ४)।
पुत्रीमे शुभ मुहूनमें जम्बूका विवाह होता है। जम्बू
जिम ममय अपने नगरमे प्रवेश कर रहे थे उपवनमे __ वीरताके इम कार्यसे प्रसन्न होकर राजाने जम्बूकुमारका अपने बराबर आसन दिया। जब यह
महर्षि सुधर्मस्वामी पश्च शिष्या सहित आते हैं।
महर्षिका जम्बूस्वामी भक्तिपूर्वक नमस्कार करते है राजसभा चल रही थी उसी समय आकाशसे. एक विमान वहाँ पहुंचा और एक विद्याधर सम्मुख उप
(मन्धि ६-७)। स्थित हश्रा। उसने अपना निवास सहसमिग' नगरी मुनिसे जम्बूस्वामी अपने पूर्व-भावोंका वृत्तान्त .मे बताया तथा उसका नाम गगनगति था। उसने सुनत है और तदनन्तर घर आकर माता पिताको बताया कि केरल नगरीके राजा मृगाङ्कने उनकी बहिन प्रणाम करके प्रव्रज्याव्रत लेनेका विचार करते हैं। मालतासे विवाह किया है और उसकी पुत्री विलाम- पुत्रके एसे वचन सुनकर माता म वर्ती अत्यन्त रमणीय है। हंसद्वीपमे निवास करने जम्बूका वह समझाना है कि उसके वैराग्य लेनेस कुल वाले विद्याधरसे रत्नसिहने मृगाङ्कसे उस कन्याको विलीन हो जावेगा । इसी समय सागरदत्तके द्वारा मॉगा । राजाके न देनेपर उसने केरलनगरीपर कुमारी प्रपित व्यक्ति पाकर जम्बूका विवाह निश्चित करता है को लेनेके लिए धावा कर दिया। वह विद्याधर जम्बूसे और सागरदत्तकी चार कन्याओसे जम्यूका विवाह