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________________ कहानी SHOOR ROO (लेखक -श्रीबालचन्द्र जैन एम० ए० साहित्यशास्त्री) शेगीके सिरहाने बैठी नर्स उसे एकटक देख रही देकर लोग समझ लेते हैं हम नर्सको रोटी देते हैं। ।। थी। 'कितनी शान्ति और सौम्यता है इसके पर तुम जो रातदिन अपनी सुध भूलकर. उन्हें ८ चेहरेपर. किन्तु हाय रे भाग्य । एसा भोला और • जीवनदान देती हो, इसे क्या ये दुनियावाले कभी सरल व्यक्ति भी मानसिक वेदनाओंका शिकार हो समझ पाते हैं. १ नहीं। दूसरोके श्रमको नही समझ गया। उसे सहानुभूति थी रागीसे। मकले ये दुनियावाले और वे समझालेकी कोशिश भी रोगीकी नींद टूटी। मुझे कोई नहीं रोक मकता' तो नहीं करते नर्स !"-रोगीने गहरी साँस ली। -वह बबडाया-दुनियाकी काई शक्ति मुझ रोक दुमरोकी इज्जत, विद्या, बुद्धि और सेवाको तराजूपर नहीं सकती. मैं जाऊँगा दर. इम पापभरी दुनियामे तौलनेवालांकी सेवा तुम क्यो करती हो नर्स!" रोगी बहुन दूर. जहाँ मनुष्यका निशान भी न होगा. उसके उद्विग्न हा रहा था-"उन्हे तड़प-तड़पकर मर क्यों पापोकी छाया भी न होगी. मै जाऊंगा रोगीने नहीं जाने देती, अपने कर्माका फल क्यो नही भोगने उठनेकी चेष्टा की। देता" रागीकी सदय आँखें नसकी आँखोंसे मिल गई। ____“ईश्वरके लिए लेटे रहिए" नर्मने महारा देकर नस चुप थी। उसे पुनः लिटाना चाहा। ___ बोला. बोलो सेवार्का देवी, दुनियाभरके पापियो"ईश्वर ईश्वरका नाम लेनेवाली तुम कौन" का मृत्युशय्यासे जगाकर उनमें जीवनी शक्ति भरकर रोगाने कठोर प्रश्न किया। दुनियाके पापोकी संख्या क्यों बढ़ाती हो" कहनेक 'जी मैं नर्म' नर्मने मृदु उत्तर दिया। साथ ही रोगीने झटकेसे करवट बदली। "तुम यहाँ क्या करने आई " रोगीने फिर पूछा। “जिलाना और मारना तो ईश्वरके हाथकी बात "आपकी मेवा" नर्सका जबाब था। है चन्द्रबाबू . हम तो अपना कर्तव्य करते हैं" नर्सने "सेवा हा-हा-हा!" रोगी ठहाका मारकर हँसा धीरसे कहा। -'तुम सेवा करती हो, दसरांकी सेवा कितना इंश्वर'-चन्द्रका जैसे तीर लगा-"तमने फिर सुन्दर शब्द है सेवा" रोगीने पागलकी हसी-हॅमी। ईश्वरका नाम लिया"-वह तड़प उठा- 'जानती जी. दमरोकी सेवा करना ही हमारा धर्म है. नहीं. मैं ईश्वरका दुश्मन है। ईश्वर । टनियाभर नर्सका यही कर्तव्य है" नर्म डरत-डरते बोली। ठगोंका मरदार" उमने मुंह फेर लिया। तुम इसे धर्म मानती हो नर्म । लेकिन कभी "ऐसा न कहिए। उस दयालु परमात्माको बुरातुमने अपनी भी सेवा की दुनियाने कभी तुम्हारी भला कहकर पापके भागी न बनिए ।" नर्सने सेवाओका मूल्य चुकाया ? थाड़ेसे चॉदीके टुकड़े अनुरोध किया।
SR No.538009
Book TitleAnekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1948
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size35 MB
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