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उनके पुत्र ठक्कुर नीनेक उनकी धर्मपत्नी पाल्हणिने सं० १२१४ के फागुन वदी ४ सोमवारको प्रतिष्ठा कराई । कर्मोंके क्षयके लिये प्रतिदिन नमस्कार करते हैं
अनेकान्त
मूर्त्तिका शिर नहीं है। बाकी तमाम श्रङ्गोपाङ्ग विद्यमान है । चिह्न शेरका है। हथेली कुछ छिल गई है । करीब १|| फुट ऊँची पद्मासन है । पाषाण काला है ।
लेख नम्बर २४
संवत् १२०० अषाड़ वदी ४ शक जैसवालान्वये नायक श्रीसाहुकसस प्रतिमा गोठिता ।
भावार्थ:--- जैसवालवंशोत्पन्न नायक श्रीसाहु कसम सम्बत् १२०० के अपाढ़ वदी ४ शुक्रवारको प्रतिमा प्रतिष्ठा कराई |
मूर्त्तिका शिर और दोनो हाथोंके पहुँचे नहीं हैं। वाकी हिस्सा ज्योंका त्यों उपलब्ध है। चिह्न शेरका है। करीब १।। फुट ऊँची पद्मासन है । पाषाण काला है । लेख नम्बर २५
संवत् १२१३ गालापूर्वान्वये साहु साल्ह भार्या सलषा तयोः सुत पोखन एते प्रणमन्ति नित्यम् । श्राषाडसुदी २ ।
भावार्थ:- गोला पूर्व वंशोत्पन्न शाह साल्ह उसकी धर्मपत्नी सलपा इन दोनोंके पुत्र पांखन इन्होंने सवत १२१३ अषाढ़ सुदी २को प्रतिविम्ब पधराई । ये नित्य प्रणाम करते है ।
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मूर्तिका शिर और दोनों हाथो के अतिरिक्त बाकी धड़ उपलब्ध है। चिह्नकी जगह अष्टदल कमल करीब १|| फुट ऊँची पद्मासन है । पाषाण काला है। लेख नम्बर २६
[ बर्ष
तथा जैसवाल वंशोत्पन्न बाहड़ उनकी धर्मपत्नी सिवदे उनकी पुत्री -सावनी- मालती पदमा - मदनाने उक्त सम्वन्में उक्त महात्माओं के श्रादेशसे अपने द्रव्यका सदुपयोग किया ।
मूर्त्तिके आसन के अतिरिक्त शिर और धड़ कुछ भी नहीं है । सनसे पता चलता है कि प्रतिविम्ब मनोज्ञ थी । चिह्न शेरका है। करीब २ फुट ऊंची पद्मासन है । पाषाण काला है |
संवत् १२९६ फागुन वदी सोमदिने सिद्धान्तश्री सागरसेन श्रर्यिका जयश्री रिषिणी रतनरिषि प्रणमन्ति नित्यम् | जैसवालान्वये साहु बाडभार्या व पुत्री सावनी मालती पदमा मदना प्रणमन्ति नित्यम् । भावाथ:-संवत १२१६ के फागुन वदी सोम'को सिद्धान्तश्री सागरसेन तथा आर्यिका जयश्री और श्री रतनऋषिने वस्त्र - प्रतिष्ठा कराई।
लेख नम्बर २७
सम्वत् २०१० मइतिबालान्वये साहु श्रीसेटो भार्या महिव तयोः पुत्राः श्रील्हा श्रीबर्द्धमान माल्हा, एते श्र ेयसे प्रणमन्ति नित्यम् । वैशाख सुदी १३ ।
भावार्थ:-- वि० सं० २०१० के वैशाख सुदी १३को मडितवालवंशोत्पन्न शाह सेठा उनकी धर्मपत्नी महिव उनके पुत्र श्रील्हा - श्रोवर्द्धमान मालहा ये सब पुण्य वृद्धिके लिये प्रतिदिन प्रणाम करते हैं ।
मूर्त्तिका शिर र दोनो हाथोंकी हथेली नहीं है। बाकी तमाम हिस्सा उपलब्ध है । चिह्न सेहीका प्रतीत होता है। करीब १|| फुट ऊँची पद्मासन | पाषाण काला है। पालिश चमकदार हैं। लेख नम्बर २८
सम्वत् १००० चैत्रसुदी १२ लमेचुकान्वये साहु भाने भार्या पद्मा सुत हरसेन, नायक कदलसिंह, देवपाल्ह एते प्रणमन्ति नित्यम् ।
भावाथः - वि० सं० १२०० के चैतमुदी १२को इस प्रतिविम्बकी प्रतिष्ठा हुई । लमचूवंशोत्पन्न शाहभाने उनकी पत्नी पद्मा. उनके पुत्र हरसेन. नायक दलसिंह देवपाल्ह ये प्रतिदिन प्रणाम करते हैं ।
मूर्त्तिका शिर तथा बायाँ हाथ नहीं है। आसपर दोनों हथेली नहीं है । चिह्न वगैरह कुछ नहीं । करीब १।। फुट ऊंचा पद्मासन है । पाषाण काला है । लेख नम्बर २६
संवत् १२०० अषाड़वदी ८ जैसवालान्वये साहु खोने भार्या जाउह सत साढू तथा पाल्ह वील्हा-श्राल्हेपदमा यसे प्रणमन्ति ।
( क्रमशः